दुनिया में पहली बार बच्चों में मिली ये बीमारी, डॉक्टरों को पहचानने में लग गए 2 महीने
Children`s Disease: दुनिया में अपनी तरह के पहले मामले को ठीक करने में डॉक्टरों ने दिन रात एक कर दिया और मथुरा के बच्चे में पहली बार पाई गई अनोखी बीमारी का इलाज किया. डॉक्टरों के लिए ये रिकॉर्ड है और 6 महीने का ये छोटा सा बच्चा अयान मौत को हराकर मां की गोद में मुस्कुरा रहा है.
Children's Disease: दुनिया में अपनी तरह के पहले मामले को ठीक करने में डॉक्टरों ने दिन रात एक कर दिया और मथुरा के बच्चे में पहली बार पाई गई अनोखी बीमारी का इलाज किया. डॉक्टरों के लिए ये रिकॉर्ड है और 6 महीने का ये छोटा सा बच्चा अयान मौत को हराकर मां की गोद में मुस्कुरा रहा है. ये अयान के परिवार के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है.
ये बच्चा दो महीने से ज्यादा वक्त के लिए अस्पताल में भर्ती रहा है. महज दो महीने की उम्र में ये नोएडा के फोर्टिस अस्पताल पहुंचा और इसकी बीमारी पहचानने में डॉक्टरों को दो महीने लग गए. आखिर बच्चे को ऐसी कौन सी बीमारी थी? ये जानने और समझने में डॉक्टरों ने दुनिया के तमाम टेस्ट करवा लिए. बच्चा एक ऐसी परेशानी का शिकार निकला जो दुनिया में पहले किसी बच्चे में नहीं पाई गई.
इस बच्चे की बीमारी थी मेनेंजाइटिस यानी दिमागी बुखार के साथ फंगल इंफेक्शन. बीमारी का मेडिकल नाम है CMV Menengitis के साथ Rhodoturula fungal infection (रोडोटुरुला इंफेक्शन). आमतौर पर बच्चों में बैक्टीरियल मैनेंजाइटिस पाया जाता है लेकिन इस बच्चे को वायरल मेनेंजाइटिस हुआ था.
अब आपको शुरु से बताते हैं कि ये बच्चा क्यों संसार का सबसे अनोखा बच्चा है. 2 महीने की उम्र में इस बच्चे को बुखार हुआ और दौरे पड़े. डॉक्टरों को शक हुआ कि इसे बैक्टिरियल मैनेंजाइटिस है – दवाओं से इलाज शुरु हुआ. दौरे तो बंद हो गए लेकिन बुखार नहीं गया. डॉक्टरों ने बच्चे की रीढ़ की हड्डी से लिक्विड लेकर उसका टेस्ट करवाया तो पता चला कि इसे दिमागी बुखार तो है यानी मैनेंजाइटिस तो है – लेकिन आमतौर पर पाया जाने वाला बैक्टिरियल नहीं, CMV Menengitis है.
ये बीमारी कमजोर इम्यूनिटी वाले या एचआईवी के शिकार बड़ों में पाई जाती है. बच्चे के सभी टेस्ट करवाने पर भी एचआईवी या कमजोर इम्युनिटी का कोई पता नहीं मिला. बुखार जाने का नाम नहीं ले रहा था. इसका इलाज करने के लिए बच्चे को ग्लैंसीकोविर इंजेक्शन वाली काफी स्ट्रांग दवाएं दी गई और बच्चे पर लगातार निगरानी रखी गई. ये दवाएं इतनी स्ट्रांग थी कि बच्चे को नुकसान होने का खतरा था.
लेकिन बच्चे का बुखार कम नहीं हुआ. इलाज करने वाले बच्चों के डॉक्टर डॉ आशुतोष सिन्हा के मुताबिक एक बार फिर बच्चे की रीढ़ की हड्डी से लिक्विड लिया गया. इसे मेडिकल भाषा में सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूइड कहते हैं. इस बार फंगल इंफेक्शन का पता चला. बच्चे में पाया गया इंफेक्शन Rhodoturula fungal infection (रोडोटुरुला इंफेक्शन) भी काफी दुर्लभ था. इसके इलाज के लिए Amphoterecin B एंफोटेरेसिन बी दवा दी गई. कोरोना की बीमारी के दौरान पाई गई ब्लैक फंगस की समस्या के इलाज के लिए इस दवा का काफी इस्तेमाल हुआ है.
तब जाकर बच्चे का बुखार ठीक हुआ. दो महीने तक अलग-अलग दवाएं बच्चे को देने के लिए उसकी छोटी सी नसों में बार बार कैन्युला लगाना संभव नहीं था. ऐसे में सर्जरी करके बच्चे में कीमोपोर्ट लगाया गया. कैंसर के मरीजों को बार-बार कीमोथेरेपी देने के लिए कीमोपोर्ट लगा दिया जाता है. जो इस बच्चे में लगाया गया. इसके लिए खास छोटे साइज का कीमोपोर्ट मंगाकर लगाया गया.
बच्चे की उम्र अब 6 महीने है और बच्चा डॉक्टरों के पास इलाज के लिए कुछ समय तक आता रहेगा - लेकिन अब वो खतरे से बाहर है. बच्चे के पिता यूपी पुलिस में आपरेटर हैं लिहाजा सरकारी खर्च के तहत 2 महीने के इलाज में पिता आनंद सोनी ने 7 लाख रुपए खर्च किए. अयान अपने पिता आनंद की पहली औलाद है .
हालांकि डॉक्टरों को अभी तक ये नहीं पता कि इस बच्चे को ये बीमारी क्यों हुई. लेकिन अब डॉक्टरों के पास भविष्य में इलाज के लिए नया रास्ता है.