नई दिल्ली: अगर आपने पुरानी फिल्में देखीं होंगी तो उसमें साहूकार का किरदार आपको जरूर याद होगा. गांव का वो साहूकार अक्सर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर पैसे देने के एवज में उनके घर और गहने गिरवी रख लेता था और आखिर एक दिन उन्हें हड़प जाता था. इसी तरह वो सूदखोर उधार लेने वालों को अपना गुलाम बना लेता था. कोरोना महामारी के दौरान कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) बनाने वाली विदेशी कंपनिया भी भारत में ऐसा ही चाहती थीं.


'विदेशी कंपनियों की दादागिरी'


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ये बात हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि कोरोना की वैक्सीन (Corona Vaccine) बनाने वाली इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के इरादे ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) जैसे हैं. उदाहरण के लिए बता दें कि PFIZER ने अर्जेंटीना (Argentina) की सरकार के सामने ये शर्तें रखीं थी कि वैक्सीन के बदले में उसे सारा पैसा इंटरनेशनल बैंक में एडवांस में जमा कराना होगा.


कई देशों को किया ब्लैक मेल


उन्हें कंपनी के लिए एक इंश्योरेंस पॉलिसी (Insurance Policy) भी लेनी होगी. देश की राजधानी में एक मिलिट्री बेस (Military Base) बनाना होगा, जिसमें दवा सुरक्षित रखी जाएंगी. वहीं और एक शर्त ये थी कि एक दूतावास बनाया जाएगा, जिसमें कंपनी के कर्मचारी रहेंगे ताकि उनपर उस देश के कानून लागू न हो सकें. कुछ ऐसी ही शर्तें ब्राजील और कई दूसरे देशों के सामने भी रखी गईं थीं. 


भारत ने किया अपने वैज्ञानिकों पर भरोसा


पूरी दुनिया में विएना (Vienna) की संधि की वजह से दूसरे देश में रहने वाले राजदूतों पर उस देश के कानून लागू नहीं होते, जहां उनकी नियुक्ति की जाती हैं. लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि यहां वैक्सीन कारोबार भारतीय कानून और शर्तों के मुताबिक करना होगा. और भारत ने किसी दबाव में आने के बजाए अपने वैज्ञानिकों और अपनी दवा कंपनियों पर भरोसा किया.