कोलंबो: चीन (China) के विस्तारवादी रुख को देखते हुए कई देश उससे दूरी बनाने में लगे हैं और इस सूची में श्रीलंका (Sri Lanka) का नाम भी जुड़ सकता है. श्रीलंका ने साफ किया है कि वह नई विदेश नीति के तौर पर ‘पहले भारत दृष्टिकोण’ अपनाएगा और नई दिल्ली के सामरिक सुरक्षा हितों की रक्षा करेगा. 


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श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज (Foreign Secretary Jayanath Colombage) ने डेली मिरर को दिखे इंटरव्यू में कहा कि श्रीलंका अपनी नई क्षेत्रीय विदेश नीति के तौर पर ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति अपनाएगा. इसका मतलब है कि श्रीलंका ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए हानिकारक हो.


कभी ऐसा नहीं होने देंगे
कोलंबेज ने आगे कहा, ‘चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है. 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी. इसका अर्थ यह है कि हम दो आर्थिक दिग्गजों के बीच हैं’. विदेश सचिव ने एक तरह से चीन को निशाना बनाते हुए कहा कि श्रीलंका कभी यह नहीं चाहेगा और कभी ऐसा नहीं होने देगा कि कोई एक देश उसका इस्तेमाल किसी दूसरे देश विशेष तौर पर भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए. 


स्पष्ट है विदेश नीति
चीन द्वारा हंबनटोटा बंदरगाह में निवेश पर कोलंबेज ने कहा कि श्रीलंका ने हबंनटोटा की पेशकश पहले भारत को की थी, और भारत के इंकार के बाद यह चीनी कंपनी को सौंपा गया. अब हमने हंबनटोटा बंदरगाह की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी चाइना मर्चेंट होल्डिंग कंपनी को दे दी है और उसे व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे (President Gotabaya Rajapaksa) की विदेश नीति स्पष्ट है. वह ‘इंडिया फर्स्ट' नीति के तहत आगे बढ़ना चाहते हैं.


मोदी सरकार ने बदली स्थिति
कोलंबेज श्रीलंका के पहले ऐसे विदेश सचिव हैं, जिनकी सैन्य पृष्ठभूमि है. वह 2014-16 के बीच श्रीलंका नेवी के चीफ रहे थे. जयनाथ कोलंबेज का यह बयान एक तरह से चीन के लिए झटका है, जो यह मान बैठा है कि ‘कर्ज नीति’ के बल पर वह श्रीलंका का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है. पिछले कुछ वक्त में चीन ने श्रीलंका को अपने खेमे में लाने की काफी कोशिश की है. कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वह काफी हद तक इसमें सफल भी हो गया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से स्थिति तेजी से बदल रही है. श्रीलंका को अब यह अहसास होने लगा है कि उसका हित भारत के साथ ही संभव है.