नई दिल्ली: सरकार रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रही है, देश की सुरक्षा में तैनात जवानों को बेहतर सुविधाएं दिए जाने का दावा किया जा रहा है. लेकिन, नौकरी छोड़ने वाले जवानों की बढ़ती संख्या कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. पिछले तीन साल में पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड लगभग 4 गुना तक बढ़ गया है. बेहतर करियर की चाह में पिछले 3 साल में 14,587 अधिकारियों और जवानों ने स्वैच्छा से अर्धसैनिक बलों की नौकरी छोड़ी है. यह आंकड़ा साल 2015 से 2017 का है.


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गृह मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल के 14,587 जवानों और अधिकारियों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट लिया है. जबकि 2015 में यह आंकड़ा 3425 ही था. 




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क्या कहते हैं आंकड़े
आंकड़ों को बारीकी से देखा जाए तो सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड सबसे ज्यादा है. 2015 में सीआरपीएफ के 1376 जवानों ने नौकरी छोड़ी, जबकि 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 5123 पर पहुंच गया. यही हाल बीएसएफ के जवानों का भी रहा. आंकड़े बताते हैं कि 2015 में 909 बीएसएफ जवानों ने नौकरी छोड़ी, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 6400 को पार कर गया. 
 


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सुरक्षा के लिहाज से अहम हैं सीआरपीएफ और बीएसएफ
आपको बता दें कि इन दोनों ही फोर्सज (सीआरपीएफ और बीएसएफ) को बॉर्डर पर सुरक्षा के साथ देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से भी बहुत अहम माना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक बीएसफ पर बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में देश की सुरक्षा का जिम्मा होता है. 2015 से 2017 के बीच 7324 लोगों ने बीएसएफ की नौकरी छोड़ दी. दूसरी तरफ देश की आंतरिक सुरक्षा खास तौर पर नक्सल प्रभावित और जम्मू-कश्मीर इलाकों में सुरक्षा का जिम्मा सीआरपीएफ के जवानों पर होता है. पिछले 3 साल में सीआरपीएफ के 6501 जवानों/अधिकारियों ने स्वैच्छा से रिटायरमेंट लिया.
 


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ये हो सकता है कारण
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जवानों और अधिकारियों के नौकरी छोड़ने का ये सिलसिला 2024 तक जारी रहने वाला है. एक अधिकारी का कहना है कि बहुत से जवान और अधिकारी बेहतर करियर के लिए प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां तलाश रहे हैं. सिक्योरिटी एजेंसी और ऐसे दूसरे करियर विकल्प भी जॉब छोड़ने के कारणों में से एक हैं.