वरिष्‍ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की बेंगलुरू में नृशंस हत्‍या ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. मंगलवार रात को 55 वर्षीय इस पत्रकार की घर के दरवाजे पर मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्‍या कर दी. गौरी से तकरीबन दो दशक पहले मेरी पहली मुलाकात हुई थी. 1998 में मेरा ट्रांसफर बेंगलुरू में हुआ था. तब गौरी एक कॉमन फ्रेंड के माध्‍यम से मुझे जानती थीं. उन्‍होंने निस्‍वार्थ भाव से राजाराजेश्‍वरी नगर में अपने डूप्‍लेक्‍स अपार्टमेंट में मुझे बिना किसी किराए के रहने के लिए कहा. बस इसमें एक ही शर्त थी कि इसके बगीचे और खूबसूरत पौधों की देखभाल करनी थी. 


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हालांकि हाउस कीपिंग का काम करने वाले युवा दंपति के पास भी बगीचे की देखभाल का जिम्‍मा था. लेकिन उन्‍होंने नारियल और केले के पेड़ और विविध प्रकार के खूबसूरत फूलों की निजी तौर पर देखभाल के लिए कहा. इसके बाद हर हफ्ते कम से कम एक बार इस संबंध में मुझसे बात करतीं और हर पौधे और बगीचे के बारे में पूछतीं. 


गौरी लंकेश बेहद आत्‍मनिर्भर महिला थीं. इस डूप्‍लेक्‍स अपार्टमेंट और शहर में अभिभावकों के पास एक विला होने के बावजूद वह बेंगलुरू के बाहरी मैसूर रोड इलाके में अकेली रहती थीं. उसके बाद ETV कन्‍नड़ की दिल्‍ली में ट्रेनिंग लेने जाने से पहले वह डूप्‍लेक्‍स में नियमित रूप से आकर पौधों की देखभाल जरूर करती थीं. गौरी की मूर्तिकार मित्र पुष्‍पमाला भी राजाराजेश्‍वरी नगर में रहती थीं. दोनों को ही उत्‍तरी कर्नाटक के व्‍यंजन बनाने का शौक था. वे घंटों किसी भी टॉपिक पर बात कर सकती थीं. अपने पिता की तरह ही गौरी एकदम निर्भीक थीं और किसी से नहीं डरती थीं.



अपने पिता के स्‍थानीय अखबार अखबार लंकेश पत्रिका के ऑपरेशन का जिम्‍मा वही संभालती थीं. निर्भीक खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर इस अखबार में कोई विज्ञापन नहीं होता. इस अखबार को पांच सरकारों के सत्‍ता से बाहर होने के लिए जिम्‍मेदार माना जाता है. मुझे याद है कि 1999 में लंकेश पत्रिका के ऑफिस में आकर लोग सात रुपये में इस अखबार को खरीदते थे. 


गौरी लंकेश की बेंगलुरू में अपनी मित्र मंडली थी. इनमें से अधिकांश पत्रकार थे. वे वीकेंड में किसी क्‍लब या लाउंज में नहीं बल्कि घर में पार्टी करते थे. वह कभी किसी कन्‍नड़ फिल्‍म को मिस नहीं करती थीं और हमेशा पहले दिन का फर्स्‍ट शो देखती थीं. 


उनकी बहन जोकि फिल्‍म निर्माता थीं, नंदिता दास के साथ रिहर्सल के लिए डूप्‍लेक्‍स अपार्टमेंट में आती थीं. हर तरह की सुविधाएं होने के बावजूद वह तड़क-भड़क से दूर आम आदमी की तरह रहती थीं. मैं उनके घर में तकरीबन एक साल रहा. उन्‍होंने मेरे आग्रह के बावजूद कभी भी एक भी पैसा किराए के रूप में नहीं लिया. उन दिनों में बेंगलुरू में किराए पर मकान लेना काफी कठिन काम था. किराएदारों को एडवांस में एक साल का डाउन पेमेंट पहले ही देना पड़ता था.  


-संजय बरागटा
संपादक-इंटीग्रेटेड मल्‍टीमीडिया न्‍यूजरूम, जी मीडिया. 
(लेखक ने गौरी लंकेश के साथ तकरीबन दो दशक पहले हुई पहली मुलाकात के संस्‍मरण साझा किए हैं)