नई दिल्ली: नवरात्रि के चतुर्थ दिन, मां कुष्मांडा (Godess Kushmanda) जी की पूजा की जाती है. उनकी आठ भुजाएं हैं. जो हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं. वे शक्ति की चौथा स्वरूप है, जिन्हें सूर्य के समान तेजस्वी माना गया है.


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मां कुष्मांडा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मां दुर्गा ने असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा (कुम्हड़े) का अवतार लिया था. मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी. पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है. माना जाता है कि ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है. हालांकि अब अधिकतर जगहों पर बलि प्रथा बंद कर गई है. 


संकटों से मुक्ति दिलाती हैं मां कुष्मांडा 
मान्यता है कि मां कुष्मांडा की विधि विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. मां कुष्मांडा संसार को अनेक कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं. इस दिन लाल रंग के फूलों से पूजा करने की परंपरा है,क्योंकि मां कुष्मांडा को लाल रंग के फूल अधिक प्रिय बताए गए हैं. मां कुष्मांडा की पूजा करने के बाद दुर्गा चालीसा और मां दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए.


मां कुष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है. पूजा में सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें. इसके बाद अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए. इनकी पूजा के बाद कुष्मांडा देवी की पूजा शुरू करें. मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं. इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें. सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें. कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवे का भोग लगाएं और प्रसाद वितरित करें.


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