Parsi Population: देश में पारसियों की आबादी लगातार घट रही है. इसके पीछे एक बड़ा कारण इस वर्ग के लोगों की शादी में कम दिलचस्पी होना है. सबसे कम आबादी वाले इस अल्पसंख्यक समुदाय के करीब 30 प्रतिशत विवाह योग्य लड़के अविवाहित हैं. यही वजह है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की "जियो पारसी'' योजना के तहत पारसी लड़के और लड़कियों को शादी के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से ‘ऑनलाइन डेटिंग’ और काउंसलिंग पर खास जोर दिया रहा है.


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मंत्रालय की इस योजना को चलाने वाली संस्था 'पारजोर फाउंडेशन' की निदेशक शेरनाज कामा ने कहा कि पारसी समुदाय के लोगों को शादी और बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है क्योंकि इस समुदाय में कुल प्रजनन दर करीब 0.8 प्रति दंपति है और हर साल औसतन 200 से 300 बच्चों के जन्म की तुलना में औसतन 800 लोगों की मौत होती है जो हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाइयों के मुकाबले बहुत खराब स्थिति है.


आंकड़े क्या कहते हैं


  • नए राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सर्वेक्षण के अनुसार, हिंदू समुदाय में कुल प्रजनन दर 1.94, मुस्लिम समुदाय में 2.36, ईसाई समुदाय में 1.88 और सिख समुदाय में 1.61 है.

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में पारसी समुदाय की आबादी 57,264 थी जो 1941 में 1,14,000 थी.

  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने पारसी समुदाय की आबादी का संतुलन बनाए रखने और कुल प्रजनन दर बढ़ाने के मकसद से नवंबर, 2013 में 'जियो पारसी' योजना की शुरुआत की थी जिसके लिए हर साल चार से पांच करोड़ रुपये का बजट मुहैया कराया जाता है. 

  • इस संस्था की शीर्ष पदाधिकारी शेरनाज कामा ने कहा, 'जियो पारसी योजना शुरू होने से लेकर अब तक (15 जुलाई तक) 376 बच्चे पैदा हुए जो हर साल पारसी समुदाय में पैदा होने वाले औसतन 200 बच्चों से अतिरिक्त हैं.'

  • उनका कहना है कि पारसी समुदाय में बच्चे कम पैदा होने की सबसे बड़ी वजह वयस्कों का अविवाहित रहना है.

  • उन्होंने कहा, 'स्टडी में यह बात सामने आई है कि पारसी समुदाय के करीब 30 प्रतिशत वयस्क अविवाहित हैं जबकि वे शादी योग्य हैं. 

  • शादी करने वालों में करीब 30 प्रतिशत लोगों के पास औसतन एक-एक बच्चे हैं. करीब 30 प्रतिशत लोग 65 साल से अधिक उम्र के हैं. पारसी समुदाय में शादी करने वाली लड़कियों की औसत उम्र 28 साल और लड़कों की 31 साल है.'


महिलाओं में स्वतंत्र रहने की भावना


उनके मुताबिक, 'शादी नहीं करने की बड़ी वजह युवाओं खासकर महिलाओं में स्वतंत्र रहने की भावना का प्रबल होना है. पारसी युवाओं पर बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी है जिस वजह से भी वे शादी नहीं कर पा रहे हैं. स्थिति यह है कि एक-एक युवा दंपत्ति पर आठ-आठ बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी है, हालांकि सरकार 10 लाख रुपये से कम आय वाले लोगों को बुजुर्गों की देखभाल के लिए चार-चार हजार रुपये की मासिक मदद देती है जो पर्याप्त नहीं है.'


कोविड काल में हुईं कई शादियां


लेडी श्रीराम कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर शेरनाज ने यह जानकारी भी दी कि कोविड काल के दौरान न सिर्फ कई शादियां हुईं, बल्कि अच्छी-खासी संख्या में बच्चे भी पैदा हुए. उन्होंने कहा कि जियो पारसी योजना के तहत हुए प्रयासों के कारण 2020 में 61 बच्चे पैदा हुए तो 2021 में 60 बच्चे पैदा हुए.


यह पूछे जाने पर कि पारसी नौजवानों को शादी के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से क्या प्रयास हो रहे हैं, उन्होंने कहा, 'कोविड काल में हमने ऑनलाइन डेटिंग की शुरुआत की जिसके अच्छे नतीजे आए. बीच में कुछ विराम लगा क्योंकि हमारे काउंसलर फील्ड में काम करने लगे. अब इस ऑनलाइन डेटिंग को फिर से शुरू कर रहे हैं.'


शादी के मकसद से ऑनलाइन डेटिंग के आयोजन के तौर-तरीकों के बारे में शेरनाज ने कहा, हमारे काउंसलर स्थानीय स्तर पर होने वाले सामुदायिक कार्यक्रमों में शादी के काबिल लड़कों और लड़कियों की पसंद-नापंसद, होने वाले जीवनसाथी से उम्मीद और कुछ अन्य निजी जानकारियां जमा करते हैं. इसके बाद ऑनलाइन तरीके से इन लोगों को मिलवाया जाता है. शादी को लेकर ये लोग अपने विवेक अनुसार फैसला करते हैं. हम इन्हें जीवनसाथी चुनने के लिए सिर्फ एक प्लेटफॉर्म देते हैं.


मैट्रीमोनियल मीट भी हो रही हैं


जियो पारसी योजना के तहत न सिर्फ ऑनलाइन डेटिंग, बल्कि शादी के लिए काउंसलिंग की सेवा भी मुहैया कराई जा रही है और आमने-सामने की मौजूदगी वाली मुलाकातें यानी ‘मैट्रीमोनियल मीट’ भी आयोजित हो रही हैं. शेरनाज ने कहा, जो पारसी लड़के शादी नहीं करने की ठान चुके हैं, उनकी शादी के लिए तैयार करने के मकसद से काउंसलिंग की जाती है. हमें इसमें भी ठीक ठाक सफलता मिलती है.


पारसी दंपतियों में बांझपन जैसी समस्याएं


उनका कहना है कि ज्यादा उम्र में शादी करने के कारण कई पारसी दंपतियों को बांझपन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, ऐसे में उन्हें ‘आईवीएफ’ और कई आधुनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए आठ-आठ लाख रुपये तक की वार्षिक मदद दी जाती है. पारसी समुदाय में आबादी का संतुलन बनाए रखने के लिए एक बड़ी चुनौती सामाजिक रुढ़िवादिता भी है. मसलन, अगर किसी पारसी महिला ने अन्य धर्म के पुरुष से शादी कर ली तो दंपति के चाहने के बावजूद उसकी संतान को पारसी समुदाय में नहीं गिना जाएगा. इस पर शेरनाज कामा कहती हैं, 'जो रूढ़िवादिता दिखती है, उसमें धार्मिक कुछ नहीं है. यह पुरुष प्रधान समाज के बनाए नियम हैं. इसमें धार्मिक संस्थाओं और अदालतों को भी निर्णय करना है.'


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