सरकार ने जस्टिस जोसफ पर कॉलेजियम के प्रस्ताव को लौटाया, कहा-उनकी पदोन्नति उचित नहीं होगी
न्यायमूर्ति मिश्रा को लिखे पत्र में केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायमूर्ति जोसफ का नाम सरकार की ओर से पुनर्विचार के लिये भेजने को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मंजूरी हासिल है. साथ ही पत्र में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है.
नई दिल्लीः सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने को कहकर न्यायपालिका के साथ नये टकराव को गुरुवार को जन्म दे दिया. सरकार ने कहा कि न्यायमूर्ति जोसफ को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करना ‘उचित’ नहीं होगा. सरकार को कॉलेजियम के मुखिया प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से तुरंत समर्थन मिला. न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कार्यपालिका को न्यायमूर्ति जोसफ का नाम पुनर्विचार के लिये वापस भेजने और दूसरे नाम को स्वीकार करने का पूरा हक है, भले ही दोनों नामों की सिफारिश एकसाथ कॉलेजियम ने की थी. वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति जोसफ की सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिये सिफारिश कॉलेजियम ने इस साल जनवरी में की थी.
न्यायमूर्ति मिश्रा को लिखे पत्र में केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायमूर्ति जोसफ का नाम सरकार की ओर से पुनर्विचार के लिये भेजने को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मंजूरी हासिल है. साथ ही पत्र में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है.
प्रसाद ने पत्र में कहा है, ‘‘इस मौके पर जोसफ की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति का प्रस्ताव उचित नहीं लगता है.’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘यह विभिन्न हाईकोर्ट के अन्य वरिष्ठ, उपयुक्त और योग्य मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ भी उचित और न्यायसंगत नहीं होगा.’’ सैद्धांतिक तौर पर कॉलेजियम सरकार के प्रस्ताव को अब भी खारिज कर सकती है और विधि मंत्रालय को न्यायमूर्ति जोसफ का नाम दोबारा भेज सकती है. विधि मंत्रालय उसके बाद भावी कार्रवाई पर फैसला कर सकता है.
न्यायमूर्ति जोसफ को पदोन्नत करने के प्रस्ताव का सरकार की ओर से विरोध किये जाने से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव गहराने की आशंका है. न्यायमूर्ति जोसफ ने 2016 में अपने फैसले के जरिये उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर दिया था और राज्य में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था. इस फैसले को उस वक्त केंद्र में बीजेपी नीत सरकार के लिये बड़े झटके के तौर पर देखा गया था.
न्यायमूर्ति जोसफ को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किये जाने के प्रस्ताव पर सरकार की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘निराशाजनक’ बताया जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है’ और वह अब एक स्वर में बोलेगी कि ‘बस बहुत हो चुका.’
इस बीच, शीर्ष अदालत ने मल्होत्रा की नियुक्ति के वारंट पर रोक लगाने की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह का अनुरोध अस्वीकार कर दिया. मल्होत्रा की नियुक्ति की घोषणा करने वाली अधिसूचना आज सुबह विधि मंत्रालय में न्याय विभाग ने जारी की.प्रसाद ने अपने पत्र में न्यायमूर्ति मिश्रा से कहा कि ---सरकार सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश को अलग करने पर मजबूर है--पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में कई प्रस्तावों को अलग किया गया है.
जून 2014 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढ़ा ने सरकार को पत्र लिखकर साफ किया था कि कार्यपालिका कॉलेजियम की पूर्व मंजूरी के बिना सिफारिशों को अलग-अलग नहीं कर सकती है. ऐसा तब हुआ था जब सरकार ने वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलीसीटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ फैसला किया था जबकि कॉलेजियम की अन्य सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश और शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं.
इस बीच, सुब्रह्मण्यम ने न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिये अपने नाम की सिफारिश के लिये दी गई अपनी सहमति वापस ले ली थी.प्रधान न्यायाधीश को गुरुवार सुबह भेजे गए अपने छह पन्नों के पत्र में केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में न्यायमूर्ति जोसफ 42 वें नंबर पर आते हैं.उन्होंने कहा, ‘‘हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में फिलहाल विभिन्न हाईकोर्ट के 11 मुख्य न्यायाधीश हैं, जो उनसे वरिष्ठ हैं.’’
देशभर के 24 हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के 1079 स्वीकृत पद हैं, लेकिन अभी सिर्फ 669 न्यायाधीशों से काम चल रहा है.पत्र में कहा गया है कि न्यायमूर्ति जोसफ के मूल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट का शीर्ष अदालत और अन्य हाईकोर्टों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. प्रसाद ने कहा कि कलकत्ता, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, मणिपुर और मेघालय हाईकोर्ट का सुप्रीम कोर्ट में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.पत्र में कहा गया है, ‘‘इस बात का यहां उल्लेख करना प्रासंगिक हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.’’
सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का उल्लेख करते हुए पत्र में यह भी कहा गया है कि हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किये जाने की उम्मीद रखनी चाहिये और सीजेआई और कॉलेजियम को इसे ध्यान में रखना चाहिये.सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत करने के लिये न्यायमूर्ति जोसफ के नाम की सिफारिश करते हुए कॉलेजियम ने कहा था, ‘‘वह अन्य मुख्य न्यायाधीशों और हाईकोर्टों के वरिष्ठ न्यायाधीशों की तुलना में सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने के लिये सभी मामले में अधिक हकदार और उपयुक्त हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट के पांच शीर्ष न्यायाधीशों के निकाय ने कहा था कि कॉलेजियम ने मुख्य न्यायाधीशों और हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों की अखिल भारतीय स्तर पर वरिष्ठता के साथ-साथ उनकी योग्यता और ईमानदारी पर गौर किया था.हालांकि, सरकार के सूत्रों ने कहा कि न्यायमूर्ति जोसफ को उत्तराखंड मामले में दिये गए आदेश का शिकार होने के अभियान को ‘परेशान’ करने वाला बताया. उन्होंने कहा, ‘‘यह निराधार है---न्यायमूर्ति जे एस खेहर ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को निरस्त किया था. उन्हें प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.’’
(इनपुट भाषा)