Greater Tipraland Demand: त्रिपुरा विधानसभा चुनाव (Tripura Election Result) में बहुमत पाने के बाद बीजेपी (BJP) भले ही दोबारा राज्य में अपनी सरकार बना लेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव में पहली बार उतरी नई पार्टी टिपरा मोथा (Tipra Motha) ने सबसे ज्यादा लोगों को चौंकाया. टिपरा मोथा ने ग्रेटर टिपरालैंड (Greater Tipraland) के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और विधानसभा चुनाव में पहली बार में ही 13 सीटें हासिल कर लीं. जहां पिछले चुनाव बीजेपी+ ने त्रिपुरा में 44 सीटें जीती थीं, वो इस बार 33 पर रुक गईं. बहुमत के आंकड़े 31 से उसे 2 सीटें ही ज्यादा मिल पाईं. आइए जानते हैं कि ग्रेटर टिपरालैंड क्या है और टिपरा मोथा पार्टी इसकी मांग केंद्र सरकार से क्यों कर रही है?


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क्या है ग्रेटर टिपरालैंड?


बता दें कि त्रिपुरा में टिपरा मोथा पार्टी ग्रेटर टिपरालैंड की मांग पर ही बनी है. टिपरा मोथा मांग कर रही है कि ग्रेटर टिपरालैंड नाम से एक अलग राज्य बनाया जाए. लंबे समय से वह इसके लिए प्रदर्शन कर रहे थे. टिपरा मोथा की मांग है कि ग्रेटर टिपरालैंड में सिर्फ जनजाति के लोग ही रहें. संविधान के आर्टिकल 2 और 3 के तहत टिपरा मोथा केंद्र सरकार से अलग राज्य बनाने की मांग कर रहा है.


क्यों हो रही ग्रेटर टिपरालैंड की मांग?


जान लें त्रिपुरा की जनसंख्या में करीब 70 फीसदी हिस्सा बंगाली समुदाय के लोगों का है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, त्रिपुरा में जनजाति समुदाय 31.8 फीसदी ही रह गया है. टिपरा मोथा और यहां के जनजाति समुदाय से जुड़े लोग उनकी संस्कृति और परंपराओं को बचाने की मांग कर रहे हैं. टिपरा मोथा पार्टी की स्थापना करने वाले शाही वंशज प्रद्योत देबबर्मा लंबे समय से इसकी डिमांड कर रहे हैं. उनकी मांग है कि जनजाति की परंपराओं और संस्कृति की सुरक्षा के लिए त्रिपुरा से अलग एक नया राज्य होना चाहिए.


ग्रेटर टिपरालैंड पर कहां अटकी सुई?


बता दें कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा पहले ही कह चुके हैं कि ग्रेटर टिपरालैंड की मांग पूरी करना मुमकिन नहीं है. त्रिपुरा की सीमा सिर्फ अन्य राज्यों के साथ ही नहीं, बल्कि उसकी सीमा पड़ोसी देश बांग्लादेश से लगी हुई है. ये जनजाति और गैर-जनजाति लोगों में विभाजन पैदा करने की कोशिश है.


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