Gujarat Elections: क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, गुजरात की BJP सरकार ने चुनाव से पहले UCC पैनल का क्यों किया ऐलान?
Gujarat Elections 2022: गुजरात सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए पैनल की घोषणा की है. आइये आपको बताते हैं यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है.
Gujarat Assembly Elections 2022: गुजरात सरकार ने शनिवार को यूनिफॉर्म सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के लिए एक पैनल बनाने के अपने फैसले का ऐलान किया है. विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नीत सरकार की कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया गया. पैनल की अध्यक्षता हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे और इसमें चार सदस्य होंगे. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल समिति के सदस्यों का चयन करेंगे. यहां ये जान लेना जरूरी है कि भाजपा के 2019 के एजेंडे में यूसीसी के कार्यान्वयन का उल्लेख किया गया था.
क्या कहा गुजरात सरकार ने?
सरकार ने कहा कि किसी भी समुदाय के मौलिक अधिकारों में कोई बाधा नहीं आएगी. हिंदू विवाह अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ को यूसीसी के तहत कवर किया जाएगा. गुजरात सरकार के एक मंत्री ने बताया कि हम लोगों के मौलिक अधिकारों को खत्म करने का इरादा नहीं रखते हैं. यूसीसी पति या पिता की संपत्ति पर पत्नी या बेटी के दावे जैसे नागरिक विवादों में उत्पन्न होने वाली विसंगतियों को हल करने के लिए है. हमें ऐसे मुद्दों के बारे में लोगों से कई शिकायती आवेदन प्राप्त हुए थे.
समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) क्या है?
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा सा अर्थ है देश के सभी लोगों के लिए धर्म, जाति, पंथ, जातीयता और लिंग के बावजूद समान कानून. इसका मतलब है कि जब शादी, तलाक, विरासत आदि की बात आती है तो सभी लोग समान कानूनों का पालन करेंगे. उदाहरण के लिए भारत में एक मुस्लिम पर्सनल लॉ है जिसके तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार शादी करने की अनुमति है. दूसरे समुदाय के लोग एक महिला से शादी कर सकते हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत पर आधारित है जबकि अन्य धर्मों के कानून संसद द्वारा. इसके अलावा अलग विवाह अधिनियम भी हैं.
यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी के लिए
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर है. लेकिन भारत में अभी तक ऐसी कोई कानून व्यवस्था नहीं है. इस समय देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक और संपत्ति के मामलों को अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से सुलझाते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों के अपने निजी कानून हैं, जबकि हिंदू पर्सनल लॉ हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के नागरिक मामलों से संबंधित है. ऐसे में भारतीय अदालतों ने कई मौकों पर समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर बल दिया है.
साल 1985 का शाह बानो केस..
साल 1985 में शाह बानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड देश को एक रखने में मदद करेगा. तब कोर्ट ने यह भी कहा था कि देश में अलग-अलग कानूनों से उपजा विचारधाराओं का टकराव खत्म हो जाएगा. इसके अलावा साल 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि संविधान के अनुच्छेद 44 को देश में लागू किया जाए.
किन देशों में क्या व्यवस्था..?
कई देशों के अपने-अपने समान नागरिक संहिताएं हैं. उदाहरण के लिए, फ्रांस में कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं. युनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम के भी अपने यूसीसी हैं. ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और उज्बेकिस्तान में भी ऐसे कानून हैं. हालांकि, केन्या, पाकिस्तान, इटली, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया और ग्रीस में समान नागरिक संहिता नहीं है.
ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर