NIA की मौत की सजा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई, दिल्ली HC ने यासीन मलिक को जारी किया नोटिस
Yasin Malik News: मलिक की सजा बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में एनआईए ने कहा कि अगर इस तरह के ‘खूंखार आतंकवादियों’ को दोषी होने पर मृत्युदंड नहीं दिया जाता है, तो आतंकवादियों को मृत्युदंड से बचने का एक रास्ता मिल जाएगा.
Delhi High Court News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अलगाववादी नेता और सजायाफ्ता आतंकवादी यासीन मलिक को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक अपील के बाद नोटिस जारी किया है. अपील में मांग की गई है कि मलिक को मौत की सजा दी जाए.
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा, ‘परिस्थितियों को देखते हुए यासीन मलिक इस अपील में एकमात्र प्रतिवादी है और उसे आईपीसी की धारा 121 के तहत दोषी ठहराया है जो वैकल्पिक मौत की सजा का प्रावधान करता है. हम दोनों आवेदनों में उसे नोटिस जारी करते हैं.‘ अदालत ने संबंधित तिहाड़ जेल अधीक्षक के माध्यम से मलिक को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई नौ अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दी.
निचली अदालत ने सुनाई मौत की सजा
गौरतलब है कि एक निचली अदालत ने 24 मई, 2022 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
एनआईए ने अपनी याचिका में क्या दलीलें दी हैं
मलिक की सजा बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में एनआईए ने कहा कि अगर इस तरह के ‘खूंखार आतंकवादियों’ को दोषी होने पर मृत्युदंड नहीं दिया जाता है, तो आतंकवादियों को मृत्युदंड से बचने का एक रास्ता मिल जाएगा.
एनआईए ने कहा कि उम्रकैद की सजा आतंकवादियों द्वारा किए गए अपराध के अनुरूप नहीं है, जबकि देश को सैनिकों की जान गंवानी पड़ी हो.
निचली अदालत ने ठुकराया दिया था एनआईए का अनुरोध
मृत्युदंड के लिए एनआईए के अनुरोध को खारिज करते हुए निचली अदालत ने कहा था कि मलिक का उद्देश्य भारत से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था.
निचली अदालत ने कहा था, ‘इन अपराधों का उद्देश्य भारत पर प्रहार करना और भारत संघ से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था. अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था. अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड़ में किया गया था.’ अदालत ने कहा था कि मामला ‘दुर्लभतम’ नहीं है, जिसमें मृत्युदंड की सजा दी जाए.
(इनपुट - एजेंसी)