Karnataka Hijab Case: कर्नाटक हिजाब मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम दलील दी है कि अगर हिजाब पर बैन जारी रहा तो स्कूली छात्राएं वापस मदरसे में जाने के लिए मजबूर होंगी. कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर बैन के बाद अभी तक 17 हजार छात्राएं स्कूल छोड़ चुकी हैं. वो परीक्षा में शामिल नहीं हुईं.


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'हिजाब बैन से स्कूल की पढ़ाई छूटेगी'


सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि वो मुस्लिम छात्राएं जो अभी मदरसों तक सीमित थी, वो संकीर्णता को छोड़कर स्कूली शिक्षा में शामिल हुई है. अगर आप उनसे हिजाब पहनने का अधिकार छीन लेते हैं तो वो फिर से मदरसे जाने के लिए मजबूर होंगे. ज्यादातर हिजाब पहनने वाली लड़कियां रूढ़िवादी समाज से आती हैं.


कोर्ट- क्या हिजाब के लिए मजबूर किया जा रहा!


वकील हुजेफा अहमदी की इस दलील पर जस्टिस सुधांशु धुलिया ने पूछा- क्या आप ये कहना चाहते है कि लड़कियां हिजाब नहीं पहनना चाहती, उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता है. हुजेफा ने जवाब दिया कि नहीं, मेरे कहने का मतलब है कि हिजाब की इजाजत न होने पर अभिभावक उन्हें स्कूल के बजाए मदरसा भेजने की कहेंगे. ये वो लड़कियां है, जो तमाम बंधनों को तोड़कर स्कूल पहुंची हैं.


'मसला सिर्फ स्कूल अनुशासन का नहीं'


इससे पहले हिजाब समर्थक पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन पेश हुए. धवन ने कहा यहां मसला ड्रेस कोड के जरिए स्कूल में अनुशासन का नहीं है. मसला दूसरा है. हम देख रहे हैं कि कैसे बहुसंख्यक समुदाय में अल्पसंख्यकों की बहुत सी चीजों को लेकर असन्तोष है. गाय के नाम पर लिंचिंग से लेकर 500 धार्मिक जगहों पर दावे को मुकदमेबाजी हो रही है. धवन ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद अखबारों में लिखा गया कि हिजाब पर बैन लगाया गया. अखबारों ने यह नहीं लिखा कि ड्रेस कोड को बरकरार रखा गया. अखबारों की हेडलाइन बताती है कि असल मुद्दा क्या है.


SC की धवन को नसीहत


राजीव धवन की ओर से रखी इन दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें टोका. कोर्ट ने कहा कि अखबार जो लिखते हैं, वो कोर्ट की सुनवाई का विषय नहीं है. बेहतर होगा, आप इन बातों पर जाने के बजाए कोर्ट में लंबित मसले पर ही केंद्रित रहकर अपनी दलील रखें.


'जज कोई मौलवी-पंडित नहीं'


राजीव धवन ने कहा कि जज कोई मौलवी या पंडित नहीं है, जो ये तय करें कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य धार्मिक परम्परा है या नहीं. उन्हें सिर्फ देखना है कि हिजाब जो पूरे देश में प्रचलित है, उसके पीछे कोई गलत मंशा तो नहीं है. अगर ये साबित हो जाता है कि हिजाब एक वाजिब अधिकार है तो फिर धार्मिक ग्रंथों पर कोर्ट को जाने की जरूरत ही नहीं है. धवन ने ये भी कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का इस आधार पर कि हिजाब न पहनने पर कोई दंड का प्रावधान नहीं है, हिजाब को अनिवार्य न करार देना गलत है. सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.



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