नई दिल्ली/शिमला : हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में यूं तो हर सीट पर दिग्गज नेताओं के बीच कांटे की टक्कर है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं, जिन पर दोनों मुख्य पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हमेशा से दबदबा रहा है. इस सीटों पर आलम ये हैं कि विपक्षी दलों के लिए यहां जीत की गुंजाइश न के बराबर ही रहती है. ऐसी ही एक सीट है 'रोहडू', जिसे वीरभद्र सिंह की कर्मभूमि के नाम से जाना जाता है. इस सीट पर 2012 का चुनाव जीते कांग्रेस के मोहन लाल बराक्‍टा को पार्टी ने दोबारा मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी की तरफ से शशि बाला मैदान में हैं.


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मोहन लाल बराक्टा (कांग्रेस) : कांग्रेस का गढ़ रहे रोहडू में 2012 चुनाव में मोहन लाल बराक्टा ने पार्टी के बैनर तले चुनाव जीता था. 52 साल के मोहन कानून में स्नातक हैं. परिसीमन के बाद उन्हें यह सीट वीरभद्र की विरासत के रूप में मिली है. राजनीति का लंबा अनुभव न होने के कारण भी उन्होंने रोहडू पर आसानी से जीत दर्ज कर ली थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में मोहन ने भाजपा के बालक राम नेगी को रिकॉर्ड 28,415 मतों से हराया था. साधारण परिवार से ताल्लुक रखते मोहन अपनी सादगी के लिए जनता के बीच प्रसिद्ध है. 


शशि बाला (बीजेपी) : मुख्य विपक्षी दल भाजपा हमेशा से ही इस क्षेत्र में चुनौती पेश करने में विफल रही है. पहले वीरभद्र और अब मोहन भाजपा के लिए गले की फांस बने हुए हैं. भाजपा ने चुनाव में महिला प्रत्याशी शशि बाला को मैदान में उतारा. शशि बाला रोहडू विधानसभा से खड़ी होने वाली पहली महिला प्रत्याशी हैं और पार्टी में जिला महासू महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं. शशि रोहड़ू में कुछ माह पहले ही सक्रिय हुई हैं, जिसके बाद भाजपा ने उन्हें अपना विधानसभा प्रत्याशी घोषित किया.


इस सीट पर एक नज़र...


  • सीट संख्या-67 यानी रोहडू विधानसभा.

  • कुल आबादी 112,238

  • मतदाता - 68,568 

  • शिमला लोकसभा क्षेत्र और शिमला जिले का हिस्सा है रोहडू विधानसभा

  • रोहडू पर कांग्रेस का एक छत्र राज रहा है

  • 1977 को छोड़कर यहां हुए अब तक आठ चुनावों में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल कर भाजपा को इस क्षेत्र से महरूम रखा है.

  • इस क्षेत्र से अकेले ही छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पांच बार लगातार चुनाव जीता है.

  • इस क्षेत्र को वीरभद्र की कर्मभूमि के नाम से जाना जाता है.

  • 2008 में परिसीमन के बाद यह विधानसभा क्षेत्र अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया.

  • सीट आरक्षित होने के बाद वीरभद्र को यह सीट छोड़नी पड़ी और उन्होंने शिमला ग्रामीण से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.

  • वीरभद्र का साथ छूटने के बाद भी क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा और अगले चुनाव 2012 में भी कांग्रेस ने ही बाजी मारी.

  • वीरभद्र का नाम जुड़ा होने के कारण इस क्षेत्र में जाति समीकरण अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे हैं.