नई दिल्ली: लोग अच्छी नौकरी पाने के लिए मेहनत करते हैं,ताकि उनकी जिंदगी आराम से बीत सके. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने लोगों की मदद करने के लिए अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और खेती करने लगीं. ये कहानी है उत्तराखंड की हिरेशा वर्मा (Hiresha Verma) की. 


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हिरेशा देहरादून (Dehradun) की रहने वाली हैं और उन्होंने दिल्ली से आईटी की पढ़ाई की है. 2013 में जब केदारनाथ में बादल फटने से भयानक आपदा आई थी उस समय उन्होंने टीवी पर उसके दृश्य देखे थे. आपदा में सैकड़ों लोगों की मौत और हजारों की लापता की खबर ने उनको काफी प्रभावित किया, जिसके बाद हिरेशा ने इस आपदा में पीड़ित लोगों की मदद करने की ठान ली और दिल्ली छोड़ कर उत्तराखंड पहुंच गईं. लोगों को सहायता और राहत पहुंचाने के लिए वे एक एनजीओ के साथ काम करने लगीं.


महिलाओं की मदद में लगा दी पूरी जान


हिरेशा ने The Better India से बातचीत करते हुए बताया कि आपदा पीड़ित महिलाओं से जब उन्होंने बातचीत की तो पता लगा कि उनके पति लापता हो गए हैं. ये सभी महिलाएं पति के गायब होने के बाद काफी निराश थीं और उनके पास अपने पेट पालने का भी इंतजाम नहीं था. बिजनेस मेनेजमेंट में पीजी और केमिस्ट्री और बॉटनी में ग्रेजुएट हिरेशा ने अपना सारा ज्ञान इन महिलाओं की मदद करने में लगा दिया. इसके लिए उन्होंने महिलाओं को इस संकट से उबारने के लिए कई उपायों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया.


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मशरूम की खेती करने का लिया फैसला 


हिरेशा बताती हैं कि काफी सोचने के बाद उन्होंने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया. उत्तराखंड का मौसम इसके लिए उपयुक्त है और ये ऐसा उपाय है जिससे महिलाओं की प्रॉबलम काफी हद तक निपट सकती है. इसके बाद हिरेशा ने देहरादून में अपने घर पर मशरूम उगाने का प्रयोग शुरू करने के लिए 2,000 रुपये का निवेश किया. जब उनका ये प्रयोग सफल रहा तो उन्होंने हिमाचल प्रदेश में मशरूम अनुसंधान निदेशालय में इससे संबंधित ट्रेनिंग ली, जिसके बाद उसी साल उन्होंने 1.5 एकड़ जमीन पर पर मशरूम की खेती करने के लिए हैनजेन इंटरनेशनल (Hanzen International) की स्थापना की.


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2013 में हिरेशा ने अपनी नौकरी छोड़ दी और मशरूम की खेती शुरू करने के लिए देहरादून चली गई. उन्होंने इस क्षेत्र की 2,000 से ज्यादा महिलाओं को स्थायी आजीविका हासिल करने और उनकी आय में लगभग 30% की वृद्धि करने में मदद की है.



(फोटो साभार- ट्विट्टर)


मिला उत्तराखंड राज्य पुरस्कार


जैसे-जैसे उनकी कंपनी का काम लोगों तक पहुंचना शुरू हुआ, अन्य कई महिलाएं मशरूम की खेती की ट्रेनिंग करने के लिए उनके पास आने लगीं. ऐसी महिलाओं को हिरेशा ने ट्रेनिंग, स्पॉन और अन्य सामग्री मुफ्त में मुहैया कराई. वे कहती हैं कि कारोबार से होने वाला सारा मुनाफा महिलाओं की मदद करने में निवेश के रूप में चला गया. उनकी सफलता ने उन्हें 2015 में मशरूम की खेती के लिए उत्तराखंड राज्य पुरस्कार दिलाया.


1.5 करोड़ रुपये की सालाना बिक्री


मशरूम उगाने और किसानों की मदद करने के अलावा उनके स्टार्टअप ने हाल के वर्षों में फूड प्रोसेसिंग करना भी शुरू किया है. इसके साथ ही पिछले कुछ सालों में हिरेशा के स्टार्टअप से अचार, नगेट्स, सूप, प्रोटीन पाउडर, चाय, कॉफी और सॉस बनाना शुरू किया है, जिसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पौड़ी, घरवाल और इलाकों में बेचा जाता है. हिरेशा बताती हैं कि उनके कारोबार से कुल मिलाकर सालाना 1.5 करोड़ रुपये की बिक्री होती है.


कुछ भी असंभव नहीं 


हिरेशा के मुताबिक कोई भी व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है अगर वह उसमें दिल जान लगा दे. वे कहती हैं कि "जब मैंने पहल शुरू की, तो दोस्त और परिवार मुझ पर हंसे और उन्हें यकीन था कि मैं कभी सफल नहीं हो सकती. उन्होंने मेरा मजाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे गाय के गोबर में हाथ मलना होगा. लेकिन आज, मैंने अपने लिए और हजारों महिलाओं के लिए सफलता हासिल की है, जिस पर मुझे गर्व होता है.


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