History of Qutub Minar: कुतुब मीनार के नीचे भी मंदिर है? अंग्रेजों के जमाने में मिल चुके हैं अहम सबूत
History of Qutub Minar: क्या दिल्ली की कुतुब मीनार के नीचे मंदिर दबा हुआ है, जिसे तोड़कर सल्तनत काल में इस स्मारक का निर्माण करवाया गया. आज हम आपको कुतुब मीनार की ऐसी कड़वी सच्चाई बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आपको किताबों में पढ़ाए गए मिलावटी इतिहास पर गुस्सा आने लगेगा.
History of Qutub Minar: पहले राम मन्दिर, फिर ज्ञानवापी मस्जिद और फिर मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद. आजकल पूरे देश में यही चर्चा हो रही है कि, हमारे देश की बड़ी बड़ी मस्जिदों के नीचे सैकड़ों और हजारों मन्दिरों के तबाही की कहानियां दबी हुई हैं. ये वो कहानियां हैं, जो हमारे देश के इतिहासकारों और सरकारों ने कभी भी हम तक पहुंचने नहीं दीं. अब जब भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करने वाला है, तब जाकर देश में जागृति आनी शुरू हुई है.
हम आपको दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार (Qutub Minar) की कहानी सुनाते हैं. कुतुब मीनार भी हमारे देश में ताजमहल की तरह ही मशहूर है. आपने स्कूल में इतिहास की किताबों में पढ़ा होगा कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. लेकिन किसी ने आपको ये नहीं बताया होगा कि इस कुतुब मीनार के नीचे भी मन्दिरों के दमन का एक और इतिहास दबा हुआ है.
तूल पकड़ रहा कुतुब मीनार का मामला
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के बाद अब दिल्ली के कुतुब मीनार (Qutub Minar) को लेकर मामला तूल पकड़ रहा है. ज़ी न्यूज ने इस ऐतिहासिक विवाद की जड़ तक जाने की कोशिश की है और इसके लिए कई पुस्तकों की मदद ली है. ASI के 150 वर्ष पुराने दस्तावेज़ों को पढ़ा है. कई इतिहासकारों से भी बात की है. इस विवाद की पृष्ठभूमि जानने के लिए पहले आपको ये समझना होगा कि यहां विवाद सिर्फ कुतुब मीनार को लेकर नहीं है.
ये विवाद 24 हजार वर्ग मीटर में फैले उस जमीन के टुकड़े को लेकर है, जिसे कुतुब मीनार Complex कहा जाता है. इस Complex में कुतुब मीनार के अलावा, एक मस्जिद भी है, जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहते है. इसे भारत की सबसे पुरानी मस्जिद भी माना जाता है. इसके अलावा इसी परिसर में दिल्ली सल्तनत के बादशाह इल्तु-तमिश का भी मकबरा है. यहां एक लौह स्तम्भ है. खिलजी वंश के दूसरे शासक, अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा भी इस क्षेत्र में बना हुआ है. यहां अलाई मीनार और अलाई दरवाजा भी है, जिनका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने 14वीं शताब्दी में करवाया था.
खिलजी से बचने के लिए पद्मावती ने किया था जौहर
अलाउद्दीन खिलजी भी हिन्दुओं से बहुत नफरत करता था. उसने अपने चाचा और दिल्ली सल्तनत के उस समय के बादशाह जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर इस राजगद्दी पर खुद को स्थापित किया था. वो पहला ऐसा मुस्लिम शासक था, जिसने दिल्ली सल्तनत का विस्तार दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों तक कर लिया था और कई हिन्दू राजाओं को निर्णायक लड़ाइयों में हराया था. इनमें चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह का नाम भी शामिल है, जिनकी पत्नी पद्मावती थीं.
पद्मावत काव्य के अनुसार, पद्मावती ने अलाउद्दीन खिलजी से ही खुद को बचाने के लिए जौहर कर लिया था. यानी वो राजा रावल रतन सिंह की मृत्यु के बाद आग में कूद गई थीं. अलाउद्दीन खिलजी ने भी भारत में कई मन्दिरों को तुड़वाया. उसके कार्यकाल में कुतुब मीनार परिसर का भी विस्तार हुआ. यानी 24 हजार वर्ग मीटर के इस क्षेत्र में कई तरह के स्मारक हैं और दावा है कि ये सभी उस स्थान पर बने हैं, जहां पहले 27 हिन्दू और जैन मन्दिर हुआ करते थे.
अनंगपाल तोमर ने की थी लाल कोट शहर की स्थापना
असल में 11वीं शताब्दी में तोमर वंश के शासक अनंगपाल तोमर ने दिल्ली के सबसे पुराने शहर लाल कोट की स्थापना की थी और कुतुब मीनार इसी लाल कोट क्षेत्र के दायरे में आता था. तोमर वंश के बाद पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर शासन किया और उनके कार्यकाल में इस लाल कोट शहर का काफ़ी विस्तार हुआ. ये बात 12वीं शताब्दी की है, जब किला राय पिथौरा का भी निर्माण हुआ था. आज ये किला, कुतुब मीनार से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है. तराइन की दूसरी लड़ाई में जब पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गौरी से युद्ध हार गए तो दिल्ली पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया और यहीं से हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़ने की शुरुआत हुई.
भारत सरकार खुद मानती है कि आज दिल्ली में जिस जगह पर कुतुब मीनार (Qutub Minar) मौजूद है, वहां पहले 27 हिन्दू और जैन मन्दिर हुआ करते थे. लेकिन वर्ष 1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तय किया कि वो इन सभी मन्दिरों को तोड़ कर यहां एक भव्य और विशाल मस्जिद का निर्माण कराएगा. कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का गुलाम सेनापति था और उसने वर्ष 1192 में ये सभी 27 मन्दिर नष्ट करा दिए थे और इनके मलबे से एक मस्जिद का निर्माण शुरू किया था, जिसे आज कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद कहा जाता है. ये बात हम अपनी तरफ़ से नहीं कह रहे हैं बल्कि इस मस्जिद के बाहर ये जानकारी Archaeological Survey of India द्वारा लिखी गई है.
वर्ष 1202 में बननी शुरू हुई कुतुब मीनार
अगर आप कुतुब मीनार गए हैं तो आपने भी इसके बारे में जरूर वहां पढ़ा होगा. इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1192 में शुरू हुआ था और 1198 तक ये मस्जिद बन कर तैयार हो गई थी. यानी ये मस्जिद कुतुब मीनार से पहले बनाई गई थी. मोहम्मद गौरी के अफगानिस्तान लौटने के बाद जब दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को स्वतंत्र सुल्तान घोषित किया, तब कुतुब मीनार का निर्माण शुरू हुआ. ये मीनार उसी जगह पर बनाई गई, जहां पहले मन्दिर हुआ करते थे.
भारत सरकार के मुताबिक़, ये मीनार वर्ष 1202 में बननी शुरू हुई थी और कुतुबद्दीन ऐबक के समय में इस मीनार का केवल निचला हिस्सा ही बन पाया था. इसके बाद जब इल्तु-तमिश दिल्ली सल्तनत का बादशाह बना तो उसने इस मीनार (Qutub Minar) की तीन और मंज़िलों का निर्माण कराया. बाद में जब फिरोजशाह तुगलक दिल्ली का बादशाह बना तो उसने भी 15वीं शताब्दी में इसकी पांचवीं और आखिरी मंज़िल का निर्माण कराया. हालांकि, ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा का कहना है कि कुतुब मीनार पहले विष्णु स्तंभ हुआ करता था, जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था.
क्या पहले विष्णु स्तंभ था ये स्मारक?
इस बात के कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी मौजूद हैं. माना जाता है कि विष्णु स्तम्भ, सूर्य और नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था. इसी वजह से कुतुब मीनार में 25 इंच का झुकाव है और ये मीनार 73 मीटर ऊंची है. एक और बात, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से ये बात भी स्पष्ट होती है कि आज कुतुब Complex में जितने भी स्मारक और मस्जिद हैं, वो मन्दिरों को तोड़ कर बनाए गए हैं.
आज़ादी से पहले ASI ने कुतुब मीनार Complex का तीन बार सर्वे किया था. इस दौरान हर सर्वे रिपोर्ट में ये बात दोहराई गई कि कुतुब मीनार (Qutub Minar) एक हिन्दू मीनार है और उसके पास बनी मस्जिद का ढांचा, तोड़े गए मन्दिरों के अवशेषों से हुआ है. वर्ष 1871 में हुआ सर्वे सबसे महत्वपूर्ण है, जिसका नेतृत्व ब्रिटिश इंजीनियर J.D. Beglar (जे.डी. बेगलर) ने किया. वो अपनी इस रिपोर्ट में पांच बड़ी बातें लिखते हैं.
कई अहम सबूत करते हैं इशारा
पहला- कुतुब मीनार के बाईं तरफ़ जो प्रवेश द्वार है, उस पर संवत 259 लिखा हुआ है. संस्कृत में संवत का अर्थ होता है साल. यानी कुतुब मीनार पर अंकित ये अक्षर बताते हैं कि इस स्मारक का निर्माण हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से वर्ष 259 में हुआ.
दूसरा- कुतुब मीनार की दीवारों पर अलग अलग आकृतियों वाले पत्थर लगे हैं, जिन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है. 1871 की इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़, ये पत्थर और आकृतियां जिस दीवार पर इस्तेमाल हुईं, उस पर घंटियां, कमल और त्रिभुज के आकार के निशान बने हुए थे, जो गुप्त राजवंश के समय के हो सकते हैं. इसलिए हो सकता है कि मुस्लिम शासकों ने इन निशानों को छिपाने के लिए ऐसा किया हो.
तीसरा- 1871 में कुतुब मीनार के पास खुदाई के दौरान ASI को हिन्दू देवी लक्ष्मी की दो मूर्तियां मिली थीं. चौथा- अरब के खोजी यात्री इब्न-बतूता ने खुद माना था कि कुतुब मीनार (Qutub Minar) के परिसर में पहले 27 हिन्दू और जैन मन्दिर हुआ करते थे और इसका ज़िक्र इस रिपोर्ट में भी है.
मध्य काल के इतिहास में अनेक खामियां
यानी मध्यकालीन भारत का जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है, उसमें बहुत खामियां थीं. ये इतिहास मुस्लिम शासकों के हिसाब से लिखा गया था. उस जमाने में हिन्दू इन मुस्लिम बादशाहों के गुलाम होने से ज्यादा कुछ नहीं थे.
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के साथ हमारी टीम ने कुतुब मीनार जाकर भी ये समझने की कोशिश की, कि क्या वहां मौजूद मस्जिद और मीनार में हिन्दू कलाकृतियां हैं. इसके लिए हमारी टीम लगातार कई दिनों तक कुतुब Complex गई और वहां हमने जो भी देखा, उसका हमने बारीकी से अध्ययन किया. और इसके लिए कुछ इतिहासकारों की भी मदद ली.
कुतुब मीनार कांप्लेक्स के लिए तोड़े गए मंदिर
इस मामले में दिल्ली की एक अदालत में भी याचिका दायर हुई है, जिसमें ये कहा गया है कि कुतुब मीनार Complex में स्थित तमाम स्मारक मन्दिरों को तोड़ कर बनाए गए हैं, इसलिए वहां हिन्दुओं और जैन धर्म के लोगों को धार्मिक अनुष्ठान करने की इजाजत दी जाए. हालांकि ASI ने अदालत में कहा है कि वो इस परिसर में किसी को भी पूजा करने का अधिकार नहीं देगा, क्योंकि ये परिसर ऐतिहासिक दृष्टि से संरक्षित सूची में आता है. हालांकि यहां विवाद इस बात को लेकर भी है कि इसी परिसर में एक और मस्जिद है, जिसे मुगलों ने बनवाया था. इस मस्जिद में पिछले कई दशकों से नमाज़ होती रही है. इसलिए यहां सवाल ये है कि जब मस्जिद में नमाज़ हो सकती है तो फिर मन्दिर की जगह पर पूजा क्यों नहीं हो सकती. फिलहाल इस मुगल मस्जिद में 13 मई से नमाज़ पढ़ने पर रोक लगा दी गई है और ये मामला अब पुलिस के पास भी पहुंच गया है.
4 दिसम्बर 1981 को कुतुब मीनार (Qutub Minar) में एक दर्दनाक हादसा हुआ था. उस समय दिल्ली और फरीदाबाद के कुछ स्कूलों के बच्चे कुतुब मीनार देखने के लिए पहुंचे थे. क्योंकि कुतुब मीनार के अन्दर की जो सीढ़ियां हैं, वो काफ़ी संकरी हैं, इसलिए एक साथ कई बच्चों के अन्दर जाने से वहां भीड़ हो गई. मीनार के अन्दर की खिड़कियां पहले से बन्द थीं और जब अचानक से उस दिन वहां बिजली गई तो अन्दर अंधेरा हो गया. जिसकी वजह से भगदड़ मच गई. इस भगदड़ में 30 बच्चों समेत 45 लोग मर गए थे. ये उस वक्त की सबसे बड़ी खबर थी.
मुगल काल में 1800 मंदिरों का हुआ ध्वंस
जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो कई बार कुतुब मीनार घूमने गए. हमें बताया जाता था कि ये मीनार कितनी अद्भुत है. इसे दिल्ली सल्तनत के बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. हम भी सोचते थे कि कुतुबुद्दीन ऐबक कितना महान बादशाह था कि उसने इतनी विशाल मीनार का निर्माण कराया. यानी बचपन से ही हमारे मन में ये बातें भर दी गईं और हमने भी मानसिक रूप से इन बातों और विचारों को स्वीकार कर लिया. हम इसी जानकारी के साथ बड़े हुए. लेकिन आज आपको पता चलेगा कि हमें मध्यकालीन भारत का इतिहास उस चश्मे से दिखाया गया, जिस चश्मे से मुस्लिम शासक महान नजर आते हैं.
वर्ष 1990 में एक पुस्तक आई थी, जिसका नाम था, Hindu Temples, What Happened to Them. इसे भारत के मशहूर इतिहासकार सीताराम गोयल ने लिखा है. इसमें वो बताते हैं कि दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासनकाल में भारत में 1800 से ज्यादा मन्दिर तोड़े गए. इनमें सबसे ज्यादा 299 मन्दिर उत्तर प्रदेश में तोड़े गए, दिल्ली में 72, गुजरात में 170, मध्य प्रदेश में 151 और राजस्थान में 170 मन्दिर तोड़े गए थे. इस पुस्तक में इन सभी मन्दिरों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. भविष्य में हो सकता है कि इन जगहों पर भी न्याय की मांग उठने लगे.
कौन हैं मुसलमानों के पूर्वज
आज भारत के मुसलमानों को भी ये तय करना है कि उनके असली पूर्वज कौन थे? इस्लाम धर्म का उदय सातवीं शताब्दी में हुआ था. इससे पहले भारत में केवल हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के लोग रहते थे. लेकिन वर्ष 712 में पहली बार मोहम्मद बिन कासिम यमन से संयुक्त भारत के सिंध प्रांत पहुंचा, जो आज पाकिस्तान में है. उस समय मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर अपना कब्जा कर लिया था.
इसके बाद 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और मोहम्मद गौरी के अफगानिस्तान लौटने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का बादशाह बन गया. ऐबक का जन्म, मध्य एशिया में तुर्की भाषा बोलने वाले एक परिवार में हुआ था. इसलिए भारत के कुछ मुसलमान खुद को ऐबक का वंशज भी मानते हैं.
हालांकि इसके बाद दिल्ली में वर्ष 1290 में खिलजी वंश की स्थापना हुई और जलालुद्दीन खिलजी के बाद अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का मुस्लिम शासक बना. फिर तुगलक वंश आया और 1325 से 1351 तक मोहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली पर राज किया. वर्ष 1412 में तुगलक वंश की समाप्ति के बाद सैयद तुगलक वंश की स्थापना हुई और फिर वर्ष 1451 में लोदी वंश के शासकों ने दिल्ली पर राज किया, जो अफगानिस्तान से भारत आए थे. इसलिए भारत के कुछ मुसलमान खुद को लोदी वंश का भी बताते हैं.
कब तक गफलत में रहेंगे मुसलमान?
लोदी वंश के बाद 1526 में मुगल भारत आए, जो तैमूर लंग के वंशज थे. तैमूर लंग मध्य एशिया का एक बड़ा मुस्लिम शासक था. मुगलकाल, बाबर की ताजपोशी से शुरू हुआ था. इसके बाद उसका पुत्र.. हुमायूं दूसरा मुगल बादशाह बना और हुमायूं के बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब का शासन आया. भारत में बहुत सारे मुसलमान औरंगजेब को भी अपना पूर्वज मानते हैं.
बहादुर शाह जफर आखिर मुगल बादशाह थे और कुछ मुसलमान उन्हें भी अपना पूर्वज बताते हैं. इसलिए आज भारत के मुसलमानों को भी ये तय करना है कि उनके असली पूर्वज कौन थे?