Beating Retreat Ceremony At Attari Border: आज 15 अगस्त के दिन देशभर के छोटे-बड़े संस्थानों में स्वतंत्रता दिवस का महापर्व मनाया जा रहा है. भारत आजादी की 77वीं वर्षगांठ माना रहा है. वहीं 15 अगस्त से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को पाकिस्तान में आजादी का जश्न मनाया जाता है. आजादी के इस जश्न में जगह-जगह पर परेड होती है, लेकिन राजधानी दिल्ली के बाद अमृतसर के अटारी बॉर्डर की परेड सबसे ज्यादा मशहूर है. यहां सैनिकों द्वारा परेड से ऐसा शमा बांधा जाता है जिससे ध्यान हटा पाना बेहद मुश्किल है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, आखिर अटारी बॉर्डर को यह नाम कहां से मिला?


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कैसे पड़ा अटारी नाम?


अगर इस सवाल का जवाब नहीं पता... तो बेचैन होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसका जवाब भी आपको यहां मिलने वाला हैं. आपको बता दें कि अटारी को वाघा बॉर्डर के नाम से जाना जाता था, लेकिन इसका नाम बदल दिया गया जिसे अटारी के महाराजा रंजीत सिंह की सिख वाहिनी के फेमस सेनापति शाम सिंह अटारीवाला के नाम पर रखा गया. अटारीवाला की वजह से इस जगह को अटारी नाम दिया गया. आपको बता दें कि वाघा बॉर्डर का नाम बदलकर अटारी करने की सिफारिश खुद पंजाब सरकार ने केंद्र से की थी. यह वही बॉर्डर है जहां से लोग भारत और पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हो सकते हैं.


पाकिस्तान में है वाघा बॉर्डर


नाम बदलने की एक और वजह ये है कि बंटवारे के बाद वाघा गांव पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था. जबकि, भारत में अटारी था लेकिन इसके बावजूद भारत के बॉर्डर को वाघा कहा जाता था. आपको बता दें कि आजादी के काफी साल बाद इसका नाम बदला गया है. नाम बदलने की प्रक्रिया को लेकर ज्यादातर लोग मानते हैं कि अटारी नाम सिर्फ सरकारी काम-काज तक रह जाएगा. आपको बता दें कि अटारी बॉर्डर अमृतसर शहर से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर है. हर दिन यहां सैकड़ों की संख्या में भारतीय और विदेशी पर्यटक बीटिंग रिट्रीट देखने पहुंचते हैं. यहां भारतीय सेना का दम-खम देख आप हैरान हो जाएंगे.