Hyderabad Merger With India: 17 सितंबर 1948 इतिहास का वो दिन है कि जब हैदराबाद (Hyderabad) के निजाम (Nizam) का घमंड चूर-चूर हो गया था और उसको मजबूरन हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के लिए मानना पड़ा था. जान लें कि आजादी के बाद भारत में 600 से ज्यादा रियासतों का विलय किया गया. इन सब रियासतों में से हैदराबाद का भारत में विलय करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी क्योंकि हैदराबाद का निजाम चाहता था कि उसकी रियासत स्वतंत्र रहे. लेकिन उसने बाद में पाकिस्तान से भी संपर्क कर लिया. जिसके बाद भारत ने हैदराबाद का भारत में विलय करा लिया था और निजाम को अभिमान को अर्श से फर्श पर ला दिया था. आइए जानते हैं कि हैदराबाद के भारत में विलय की पूरी कहानी क्या है?


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भारत में विलय को तैयार नहीं था हैदराबाद


बता दें कि हैदराबाद भारत के बड़े राजघरानों में से एक था. हैदराबाद रियासत का एरिया यूरोप के इंग्लैंड और स्कॉटलैंड से भी बड़ा था. अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद अधिकतर रियासतें, राजे-रजवाड़े भारत में शामिल हो गए थे. पर कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद हमारे भारत देश में विलय के लिए तैयार नहीं थे. वो अगल देश के तौर पर रहने की मांग कर रहे थे.


क्या चाहता था हैदराबाद का निजाम?


हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान आसिफ ने निर्णय किया था कि उनकी रियासत ना तो भारत और ना ही पाकिस्तान में शामिल होगाी. अंग्रेजों ने भारत छोड़ने के वक्त हैदराबाद रियासत को या तो भारत या फिर पाकिस्तान में शामिल होने का प्रपोजल दिया था. हालांकि, हैदराबाद के पास अंग्रेजों की तरफ से स्वतंत्र राज्य बने रहने का भी प्रपोजल मिला था.


हैदराबाद में क्या थी मुश्किल?


हैदराबाद रियासत की सबसे बड़ी समस्या ये थी कि यहां शासक वर्ग के रूप में यानी निजाम और वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम धर्म के लोग थे. वहीं आबादी की बात करें तो हिंदुओं की जनसंख्या करीब 85 फीसदी थी. हैदराबाद के निजाम रियासत को स्वतंत्र बनाना चाहते थे. लेकिन वहां की अधिकतर आबादी भारत में शामिल होने के पक्ष में थी.


जब निजाम ने पाकिस्तान से साधा संपर्क


बताया जाता है कि भारत में हैदराबाद का विलय निजाम बिल्कुल भी नहीं चाहते थे. के. एम. मुंशी की किताब 'ऐंड ऑफ एन एरा' में लिखा है कि मोहम्मद अली जिन्ना से भी निजाम ने संपर्क साधा था और उनकी मंशा जानने की कोशिश की थी कि क्या वह भारत के खिलाफ हैदराबाद का समर्थन करेंगे. हालांकि, इस पर पाकिस्तान से बात नहीं बन पाई थी. फिर भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद के सामने भारत में विलय होने का प्रस्ताव रखा लेकिन निजाम ने इसे खारिज कर दिया.


निजाम ने कैसे टेके घुटने?


फिर खबर मिली कि निजाम हथियार खरीद रहे हैं. वो पाकिस्तान की मदद लेने की कोशिश में भी लगे हुए हैं. जैसे ही सरदार वल्लभभाई पटेल को इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने ऐसी रियासत को देश के पेट में कैंसर की तरह बताया और तुरंत इसकी सर्जरी करने की बात कही. 13 सितंबर, 1948 को ऑपरेशन पोलो चलाकर हैदराबाद पर कार्रवाई की गई और 5 दिन में ही निजाम घुटने टेकने के लिए मजबूर हो गया. आखिरकार 17 सितंबर को हैदराबाद का भारत में कामयाबी से विलय हो गया.