नई दिल्ली: पिछले 50 साल से राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट पर जल रही अमर जवान ज्योति का नेशनल वॉर मेमोरियल स्थित अमर जवान ज्योति में विलय कर दिया गया है. सरकार के इस फैसले के बाद से ही राजनीति शुरू हो गई है. विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि ये उन सैनिकों का अनादर है जिन्होंने देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. आज हम आपको अमर जवान ज्योति के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं.


अमर जवान ज्योति क्या थी?


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मध्य दिल्ली में इंडिया गेट के नीचे अमर जवान ज्योति स्वतंत्रता के बाद से विभिन्न युद्धों और संघर्षों में देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को देश की श्रद्धांजलि का एक प्रतिष्ठित प्रतीक था.1971 के भारत- पाकिस्तान युद्ध में देश के 3,843 जवान शहीद हुए. उन शहीदों की याद में 1972 में इसे बनाया गया था. दिसंबर 1971 में भारत द्वारा पाकिस्तान को हराने के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गणतंत्र दिवस 1972 पर इसका उद्घाटन किया था.


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50 साल से लगातार चल रही है ज्योति


अमर जवान ज्योति के प्रमुख तत्वों में एक काले संगमरमर का प्लिंथ, एक सेनोटाफ शामिल था, जो अज्ञात सैनिक की कब्र के रूप में काम करता था. प्लिंथ में एक संगीन के साथ एक उल्टे L1A1 स्व-लोडिंग राइफल थी, जिसके ऊपर एक सैनिक का युद्ध हेलमेट था. स्थापना पर चार कलश थे, जिसमें चार बर्नर थे. सामान्य दिनों में चार में से एक बर्नर को जलाया जाता था, लेकिन गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिनों में चारों बर्नर जलाए जाते थे. इन बर्नरों को शाश्वत ज्वाला कहा जाता था, और इसे कभी बुझने नहीं दिया गया था.


ऐसे जलती थी अमर ज्योति


इंडिया गेट के नीचे 50 साल से बिना बुझे अमर ज्योति जल रही थी, लेकिन शुक्रवार को इसे बुझा दिया गया, क्योंकि इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में एक अन्य अमर ज्योति में विलीन किया गया.1972 में जब इसका उद्घाटन किया गया था तभी से इसे ल्विक्विड पेट्रोलियम गैस या एलपीजी के सिलेंडरों की मदद से जीवित रखा जाता था. एक सिलेंडर एक बर्नर को डेढ़ दिन तक जिंदा रख सकता है.


2006 में इसे बदल दिया गया था. हालांकि एक परियोजना जिसकी लागत लगभग 6 लाख रुपये थी, आग की लपटों के लिए ईंधन को एलपीजी से पाइप्ड प्राकृतिक गैस, या पीएनजी में बदल दिया गया था. इस पाइप गैस के माध्यम से भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वाली ज्वाला को हमेशा के लिए जीवित रखा गया था.


इसे इंडिया गेट पर क्यों बनाया गया?


इंडिया गेट को पहले भारतीय युद्ध स्मारक के तौर पर जाना जाता था, 1931 में अंग्रेजों ने इसे द्वारा बनाया गया था. इसे ब्रिटिश भारतीय सेना के लगभग 90,000 भारतीय सैनिकों के स्मारक के रूप में बनाया गया था, जो तब तक कई युद्धों और अभियानों में मारे गए थे. स्मारक पर 13,000 से अधिक शहीद सैनिकों के नामों का उल्लेख किया गया है. चूंकि यह युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए एक स्मारक था, इसलिए इसके तहत अमर जवान ज्योति की स्थापना 1972 में सरकार द्वारा की गई थी.


क्यों किया गया इसका विलय?


सरकारी सूत्रों के अनुसार, अमर ज्योति की लौ को बुझाया नहीं गया है, बल्कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अन्य अमर ज्योति के साथ विलय किया गया है. सूत्रों ने कहा कि इंडिया गेट पर 1971 के युद्ध में शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई है, लेकिन उनके नाम का उल्लेख नहीं किया. जबकि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में 1971 और इसके पहले और बाद के युद्धों के शहीदों के नाम लिखे गए हैं. इसलिए वहां शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करना एक सच्ची श्रद्धांजलि है.


इंडिया गेट पर लगेगी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज्योति जलाने के साथ ही घोषणा की कि इंडिया गेट के बगल में बने छत्र में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगेगी. नई प्रतिमा 28 फीट ऊंची होगी. प्रतिमा के पूरा होने तक मोदी ने कहा कि छत्र के नीचे बोस की एक होलोग्राम प्रतिमा रखी जाएगी, जिसका वे 23 जनवरी को अनावरण करेंगे. छत्र में काइंड जॉर्ज पंचम की प्रतिमा हुआ करती थी, जिसे 1968 में हटा दिया गया था.


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राष्ट्रीय युद्ध स्मारक क्या है?


नेशनल वॉर मेमोरियल, जो इंडिया गेट से लगभग 400 मीटर की दूरी पर है. इसका उद्घाटन पीएम मोदी ने फरवरी 2019 में किया था. ये लगभग 40 एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है. ये उन सभी सैनिकों को याद करने के लिए बनाया गया था जिन्होंने स्वतंत्र भारत की विभिन्न लड़ाइयों, युद्धों, अभियानों और संघर्षों में अपने प्राणों की आहुति दी थी. ऐसे सैनिकों के लिए कई स्वतंत्र स्मारक हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन सभी की स्मृति में कोई स्मारक मौजूद नहीं है.



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