Ram Mandir Pran Pratishtha: राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha) से पहले अयोध्या (Ayodhya) अपने नए स्वरूप में तैयार हो रही है. त्रेतायुग जैसा वैभव, त्रेतायुग जैसी संपूर्णता और त्रेतायुग जैसी अनुभूति राम भक्तों को आनंदित कर रही है. 22 जनवरी अयोध्या के बदलाव की एक और ऐतिहासिक तारीख बनेगी. लेकिन आज की अयोध्या ने कितने उतार चढ़ाव देखे हैं? कैसे मंदिर आंदोलन से लेकर अब तक अयोध्या ने करवट ली है? आंदोलन के साथ कैसे अयोध्या की अलग-अलग पीढ़ियां जुड़ती रहीं और कैसे कारसेवा ने मंदिर निर्माण का रास्ता तय किया? ये पूरी कहानी आज आप अयोध्या की तीन पीढ़ियों की जुबानी समझिए.


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अयोध्या की कहानी तीन पीढ़ियों की जुबानी


अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जारी है और पूरा देश 22 जनवरी का इंतजार कर रहा है. 500 साल की तपस्या के बाद राम मंदिर का सपना साकार होता देख हर कोई उत्साहित है. मंदिर बनता हुआ देख वो लोग सबसे ज्यादा आनंदित हैं जिन्होंने इसके लिए संघर्ष किया. जिनकी कई पीढ़ियां आंदोलन में खप गईं. जिन्होंने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, उनकी जुबानी आज आपको राम मंदिर की कहानी बताते हैं.


कैसे बचाई रामलला की मूर्ति?


राम मंदिर आंदोलनकारी स्वामी परमानंद बताते हैं कि जब ढांचा गिरा तब मूर्तियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया. बता दें कि 90 के दशक में जब आंदोलन चरम पर था तब स्वामी परमानंद समेत कई लोग इस संघर्ष का हिस्सा बने. रामलला की मूर्तियों को बचाने के लिए जितनी चुनौतियां आईं वो दौर आज भी इन्हें याद है. स्वामी परमानंद ने बताया कि ढांचा जब ढहा तो अफरातफरी मच गई. इसके बाद टेंट में स्थापित किया.


संगठन अलग पर सबका लक्ष्य था एक


गौरतलब है कि मंदिर आंदोलन के दौरान संघ, VHP और दूसरे हिंदूवादी संगठन अलग-अलग भूमिका निभा रहे थे, लेकिन सबका लक्ष्य एक ही था. उसी लक्ष्य को पाने के लिए सबने अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. राम मंदिर आंदोलनकारी कौशल्यानंद वर्धन ने बताया कि 40 साल तक जब तक समतलीकरण नहीं हुआ, तब राम कथा सुनाई.


कारसेवकों को करना पड़ा बहुत संघर्ष


आज पूरी अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर अलग ही उमंग है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी कारसेवकों को संघर्ष करना पड़ता था. संघर्ष से सफलता तक का ये दौर देखने वाले लोग खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं. राम मंदिर आंदोलनकारी  ऋषिकेश उपाध्याय ने बताया कि 15-16 साल की उम्र में आंदोलन में शामिल हो गए थे. संघ से नाता था, अलग-अलग जिम्मेदारी थी. मेहमानों के लिए इंतजाम करते थे.


जब मिला कारसेवकों की सेवा करने का मौका


बता दें कि अवधपुरी के तमाम संत-महात्माओं ने राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. पीढ़ी दर पीढ़ी सभी लोग राम काज में भागीदार बने और आज जब सपना साकार हो रहा है तो हर कोई प्रभु का गुणगान कर रहा है. राम मंदिर आंदोलनकारी महंत उमेश दास शास्त्री ने बताया कि दूसरी पीढ़ी है कारसेवकों की जिसको सेवा का मौका मिला. आज सपना साकार हो रहा है.


कैसे हुआ कारसेवकों के खाने-रहने का इंतजाम?


आंदोलन के दौरान छोटे-छोटे काम की भी बहुत अहमियत थी. अयोध्या की एक पीढ़ी ऐसी भी है जिसने खाने का इंतजाम करने से लेकर कारसेवकों के रहने तक की व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाई. राम मंदिर आंदोलनकारी विनय जायसवाल बताते हैं कि वह कारसेवकों को खाना पहुंचाते थे. वहीं, राम मंदिर आंदोलनकारी विकास पाण्डेय ने बताया कि उनकी तीन पीढ़ियां आंदोलन में शामिल है. बच्चों को खुशी है.


सांस्कृतिक विरासत की धरोहर के ध्वज वाहक हैं युवा


गौरतलब है कि रामलला का मंदिर आकार ले रहा है. पहला चरण पूरा होने के साथ ही प्राण प्रतिष्ठा भी होगी. आंदोलन वाली पीढ़ी की अपनी यादें हैं लेकिन जो पीढ़ी मंदिर बनते हुए देख रही है उसकी सोच भी मायने रखती है. अयोध्या में संतों की नौजवान पीढ़ी भी है जो मंदिर बनते देख रही है. युवा पीढ़ी के ये संत सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत की धरोहर के ध्वज वाहक हैं.


मंदिर के लिए सैकड़ों वर्षों तक संघर्ष हुआ. बीता हुआ कल बड़े आंदोलन का गवाह रहा है, वर्तमान पीढ़ी मंदिर का निर्माण देख रही है और सबकी कामना यही है कि आने वाली पीढ़ी भी इतिहास याद रखे ताकि भविष्य में वो सनातन परंपरा की विरासत आगे बढ़ा सकें.