सुबह-सुबह X (पहले Twitter) स्क्रॉल करते हुए एक वीडियो पर नजरें थम गईं. वीडियो पुरुष अधिकारों की वकालत करने वाले एक अकाउंट ने शेयर किया था. मैंने कैप्शन पढ़े बिना ही वीडियो चला दिया. एक व्यक्ति किसी हाईराइज सोसायटी की तरफ बढ़ता नजर आता है. उसके कंधे पर कोई बच्ची सोई हुई है. व्यक्ति गेट तक पहुंचता है, तब तक भीतर से एक महिला आती है. वह बच्ची को अपने कंधे से लगा लेती है और वापस जाने लगती है. वह शख्स वहीं खड़ा होकर कुछ कहता है, महिला पलटती है, तेजी से वापस लौटती है. बच्ची को फौरन नीचे उतार कर उस व्यक्ति से भिड़ जाती है. हाथापाई होने लगती है.


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वीडियो का फोकस लड़ रहे जोड़े पर है लेकिन मेरी नजर उस बच्ची पर है. वह तो गहरी नींद में लग रही थी, यूं अचानक उठाकर खड़ा कर दिए जाने से सकपका गई. सामने लड़ रहे महिला और पुरुष शायद उसके मां-बाप होंगे. वह बच्ची एक बार आंखें मींचते हुए बाल सही करती है. झगड़ा और बढ़ जाता है, कुछ लोग जमा हो जाते हैं. इतने में कोई भली महिला उस बच्ची को भीतर ले जाती है.


इधर सिक्योरिटी वाले उस व्यक्ति को घेर लेते हैं. अगले कुछ सेकेंड पूछताछ और बहस है, फिर वीडियो खत्म हो जाता है. अब मेरी नजर वीडियो के कैप्शन पर पड़ती है. पहली लाइन पढ़ते ही बदन में सिहरन सी दौड़ जाती है. उस बच्ची पर तरस आने लगता है. उस महिला और पुरुष से भिड़ जाने का मन होने लगता है. अचानक से खुद को बड़ा असहाय महसूस करने लगता हूं. 



ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित है बच्ची


कैप्शन के मुताबिक, यह व्यक्ति NRI है और वह बच्ची उसकी बेटी है. बेटी ऑटिस्टिक है. ऑटिज्म से पीड़ित लोग दूसरों से घुल-मिल नहीं पाते... उन्हें अपने जेहन में चल रही बातें नहीं बता पाते... दूसरों के मन में क्या चल रहा है, यह समझ भी नहीं पाते... तेज रोशनी या आवाज से घबरा जाते हैं... अचानक कुछ घटे तो असहज हो उठते हैँ... उन्हें समझने में वक्त लगता है... कई बार वे एक ही चीज बार-बार करते या कहते हैं.


दोबारा वह वीडियो चलाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई. मैं उस झगड़े पर नहीं जाऊंगा जो इस बच्ची के मां-बाप के बीच हुआ. वजह जो भी हो, परिस्थितियां कैसी भी हों, अपनी संतान के साथ ऐसा कौन करता है! वह भी वैसी बच्ची के आगे जिसे दुनियादारी तो छोड़िए, यह भी समझने में तकलीफ होती है कि उसे जन्म देने वाले अचानक लड़ क्यों रहे हैं.


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उन बच्चों पर क्या बीतती होगी...


वह बच्ची उस वीडियो में बस कुछ सेकेंड के लिए नजर आई, लेकिन मेरे मन में गहरी चोट कर गई. मैं सोचने लगा कि जिन बच्चों के सामने उनके माता-पिता ऐसे झगड़ते हों, उन पर क्या बीतती होगी. जिनके माता और पिता आपसी सहमति से अलग हो चुके हों, वह उन्हें झगड़ता देख क्या सोचते होंगे. जिनके मां और बाप अदालत में तलाक के लिए लड़ रहे हों, उन पर क्या गुजरती होगी. या उन बच्चों के दिमाग में क्या चलता होगा जिनकी कस्टडी के लिए मां और बाप में तलवारें खिंची होती हैं. उन बच्चों का क्या जो ऑटिज्म जैसी बीमारी से पीड़ित हैं और बात समझने में ही परेशान हो जाते हैं.


इतना सब कुछ सोच नहीं सकता. इतना दर्द महसूस करने का माद्दा नहीं है. मगर किसी न किसी को तो सोचना होगा. किसी न किसी को महसूस करना होगा. मां-बाप के बीच पिस रहे इन बच्चों की सोचनी होगी. उन्हें ऐसे माहौल से दूर रखने का इंतजाम करना होगा. नहीं तो शायद ये बच्चे फिर कभी 'नॉर्मल' महसूस ही न कर पाएं!