IAS Success Story: सरकारी नौकरी किसी भी मेहनती छात्र का सबसे बड़ा सपना होता है. इसके लिए वे जी-जान से मेहनत करते हैं और पढ़ाई के सिवा उन्हें कुछ भी नहीं दिखता. कुछ ऐसे भी होते हैं जो तंग हालत में भी पढ़ाई कर श्रेष्ठ प्रशासनकि पद हासिल कर लेते हैं. हम आपको एक ऐसे ही जुझारू छात्र के संघर्ष के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने गरीबी के चरम को देखा.. और आज IAS अफसर है. 


IAS के संघर्ष की चौंकाने वाली कहानी


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हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के धुले जिले के डॉ. राजेंद्र भारूड़ की. राजेंद्र धुले जिले के आदिवासी भील समाज से आते हैं. उनके IAS बनने का सफर इतना मुश्किल है, जिसके बारे में आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. उन्होंने खुद अपने संघर्षों के बारे में बताया था कि वह एक ऐसे घर में पले-बढ़े जहां शराबियों का जमघट लगता था. खुद उनकी मां शराब बेचती थीं. 


मां को बेचनी पड़ी देसी शराब


दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक राजेंद्र ने बताया था कि जब वह मां के गर्फ में थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था. पिता के चले जाने के बाद उनके घर में कमाने वाला कोई नहीं था. आर्थिक तंगी झेलते हुए उनका 10 लोगों का परिवार एक वक्त का खाना भी जुटा पाने में असमर्थ रहता था. छोटी सी झोपड़ी में परिवार के 10 लोगों के साथ रहकर उन्हें गुजर-बसर करनी पड़ती थी. परिवार को पालने के लिए राजेंद्र की मां ने शराब बेचना शुरू किया.


खांसी होने पर दवा की जगह मिलती थी शराब


राजेंद्र ने बताया कि उनकी मां कमलाबहन मजदूरी करती थीं. मजदूरी से उन्हें सिर्फ 10 रु. मिलते थे, जो परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए नाकाफी था. इसलिए उन्होंने देसी शराब बेचना शुरू कर दिया. राजेंद्र ने बताया कि जब कभी भी उन्हें सर्दी-खांसी होती थी तो, उन्हें दवा की जगह दारू मिलती थी.


अपने दम पर की पढ़ाई


राजेंद्र ने बताया कि जब वह चौथी कक्षा में थे, तब घर के बाहर बने चबूतरे पर बैठकर पढ़ाई करते थे. उस घर में शराब पीने के लिए आने वाले लोग उन्हें स्नैक्स के बदले पैसे देते थे. उन पैसों से राजेंद्र ने किताबें खरीदीं और पढ़ाई की. राजेंद्र को 10वीं की परीक्षा में 95% अंक मिले थे. 12वीं में उन्हें 90% अंक मिले थे. 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर उन्होंने मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया.


2011 में राजेंद्र बने IAS अफसर


2011 में राजेंद्र को कॉलेज के बेस्ट स्टूडेंट के रूप में नवाजा गया. 2011 में ही राजेंद्र ने यूपीएससी का फॉर्म भरा और परीक्षा दी. इस परीक्षा में राजेंद्र अच्छे नंबरों से पास हुए और कलेक्टर भी बन गए. इस बारे में राजेंद्र की मां को तुरंत नहीं पता चला था. लोग जब घर पर बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला और वो बस रोती रहीं.



मेहनत से मिलता है प्रशासनिक पद, बहाने का कोई चांस नहीं


राजेंद्र भारूड़ उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो सुख-सुविधाओं का हवाला देकर मेहनत से बचते हैं. प्रशासनिक पदों के लिए पढ़ाई करने वाले छात्रों को बहानों से बचना चाहिए या फिर पढ़ाई छोड़कर अपनी मेधा के हिसाब से दूसरा ऑप्शन चुन लेना चाहिए.


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