नई दिल्ली: भारतीय साहित्य के अग्रणी नामों में एक कृष्णा सोबती की याद में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा 'हम हशमत की याद में' (स्मृति सभा) का आयोजन यहां शुक्रवार को मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में किया गया, जिसमें जानेमाने कलमकार, पाठक, मित्र, परिवार के लोग काफी संख्या में अपनी चहेती लेखिका को श्रद्धांजलि देने पहुंचे . साहित्यकारों में अशोक वाजपेयी, अरुं धति राय, गिरिराज किशोर, गीतांजलिश्री, पुरुषोत्तम अग्रवाल, शाजी जमां, नंदकिशोर आचार्य, ओम थानवी, संजीव कुमार सरीखे लोग थे .


.(फोटो-Rajkamal Prakashan Samuh)

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इन लोगों ने कृष्णा सोबती की याद में उनके साथ बिताए अपने महत्वपूर्ण पलों को साझा किया . साथ ही परिवार एवं मित्रों में कृष्णाजी के मित्र राजेंद्र कौल, उनकी भतीजी बीबा सोबती और कृष्णाजी की घरेलू मददगार विमलेश ने भी उनके साथ बिताए पलों को साझा किया. प्रतिरोध की सशक्त आवाज रहीं कृष्णा सोबती का लंबी बीमारी के चलते 93 वर्ष की उम्र में 25 जनवरी, 2019 को निधन हो गया था. सभा की शुरुआत गायिका राधिका चोपड़ा द्वारा कृष्णा सोबती की याद में गायन से हुई . उन्होंने उनकी पसंद की गजलें प्रस्तुत कीं और बताया कि सोबती जी को बेगम अख्तर बहुत पसंद थीं. 


.(फोटो-Rajkamal Prakashan Samuh)

उन्हें सुनते वक्त वह रो देती थीं. कार्यक्रम का संचालन करते हुए लेखक संजीव कुमार ने कहा कि 90 वर्ष की उम्र के बाद भी उनकी 6 किताबें प्रकाशित हुईं . इससे यह पता लगता है कि वह दिमागी तौर पर कितनी सजग और रचनात्मक थीं . पिछले चार-पांच वर्षो में उन्होंने असहिष्णुता के खिलाफ लगातार बयान दिए और सभाओं में में भी गईं. 


बीबा सोबती ने कहा, "वह दृढ़विश्वासी, हिम्मती, सृजनात्मक और हमेशा सचेत रहने वाली औरत थीं. उन्हें बातें करने का बहुत शौक था, वह अपने बचपन के जमाने को अपनी बातों के जरिये जीवंत कर देती थीं." कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा, "कृष्णा सोबती ने एक लेखिका का जीवन बड़े दमखम के साथ जिया. 


 


.(फोटो-Rajkamal Prakashan Samuh)

उन्होंने कभी किसी से न तो कोई सिफारिश की और न ही किसी को कोई रियायत दी . हमारे बीच अगर ऐसा कोई लेखक हुआ, जिसे अपने लेखन पर अभिमान भी था, स्वभिमान भी था और आत्मसमान भी था तो वह केवल कृष्णा सोबती थीं." वरिष्ठ लेखक गिरिराज किशोर ने उनके साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "कृष्णा सोबती ने असल इंसानियत का दायित्व पूरी तरह निभाया. 


वे बहुत ही परफेक्टनिस्ट थीं. किसी भी चीज को वह हमेशा बेहतर से बेहतर करना चाहती थीं." लेखिका गीतांजलिश्री ने कहा, "आते दिनों में हम समझेंगे और समझते रहेंगे कि हमने किन्हें खो दिया है. उनका कहा, उनका लिखा हमेशा रहेगा." लेखक पुरुषोतम अग्रवाल ने कहा, "मैं कृष्णा सोबती के व्यक्तित्व और व्यक्तिगत जीवन के बारे में उतना ही जानता हूं, जितना एक सामान्य पाठक उनके बारे में जान सकता है."


.(फोटो-Rajkamal Prakashan Samuh)

नंद किशोर आचार्य ने कहा, "कृष्णा सोबती 'कोमलता और दृढता की प्रतीक थीं." शाजी जमां ने कहा, "कृष्णा सोबती में औरों की खूबिओं को ढूंढ़ने का बड़प्पन था, और यह वह खूबी है जो आज के समाज में वक्त के साथ कम से कमतर होती जा रही है." पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने कहा, "कृष्णा सोबती ने हमेशा साहित्य और अपनी तत्कालीन प्रतिक्रिया के बीच रेखा खींची हुई थी जो साफ दिखती थी और उनका यह गुण उन्हें एक महान लेखिका का दर्जा देता है."


राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कृष्णा सोबती के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "शुरुआती दौर में उनसे मिलने जाने में डर लगता था, क्योंकि उनसे काफी डांट सुनने को मिलती थी . 'चन्ना' उनकी पहली किताब थी जो उन्हें पहली ही नजर में अच्छी लगी. आज के समय के बारे में वह कभी परेशान रहती थीं और वर्ष 2019 के लिए वह काफी आशावादी थीं."


इनपुट आईएएनएस से भी