Article 370: जम्मू-कश्मीर के मामले में इस तरह संसद का बढ़ता गया अधिकार,विपक्ष का विरोध सिर्फ सियासी
Jammu Kashmir Article 370: अनुच्छेद 370 अब इतिहास के पन्नों में दर्ज है. ये बात अलग है कि केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में है. जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने जब विलय पत्र पर दस्तखत किए थे उस समय भारत सरकार का विदेश, रक्षा और संचार को छोड़ किसी मामले में दखल नहीं था लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है.
Article 370 issue in Supreme Court: 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. इसकी जिम्मेदारी तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के कंधों पर थीं. 200 से अधिक रियासतों में किसी तरह की परेशानी नहीं आई लेकिन जम्मू कश्मीर रियासत का मसला थोड़ा अलग था. जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह थे और बहुसंख्यक प्रजा का वास्ता मुस्लिम धर्म से था. ऐसे में पाकिस्तान को लगने लगा था कि इस खास रियासत के जरिए वो भारत को अस्थिर कर सकता था और उसने ऐसा किया भी. जब कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना जम्मू कश्मीर में दाखिल हुई तो हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी और बदले में भारत में विलय वाले दस्तावेज पर दस्तखत किए. जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला जिसे अनुच्छेद 370 के जरिए संरक्षित किया गया लेकिन यह आर्टिकल बहस के केंद्र में साल 2019 तक रहा. इस अनुच्छेद को रहने देने या हटाने के मुद्दे पर 70 वर्षों तक सियासत चलती रही. हालांकि पांड अगस्त 2019 को संसद ने इस अनुच्छेद को हमेशा हमेशा के लिए हटा दिया. अब जम्मू कश्मीर पर पूरी तरह से भारत सरकार नियंत्रण है. बता दें कि 2019 के पहले विदेश, रक्षा और संचार को छोड़ सभी विषयों पर राज्य सरकार का अपना विधान था.
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने वाली याचिका के खिलाफ पांच जजों की पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल कुछ इस तरह घटना का वर्णन करते हुए महाराजा हरि सिंह के दर्द को बताते हैं. उन्होंने सुनवाई के दौरान बताया कि 1947 में जब पाकिस्तान की तरफ से जम्मू-कश्मीर को अशांत करने की नापाक कोशिश शुरू हुई उस वक्त महाराजा हरि सिंह ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन को चिट्ठी लिखकर बताया कि किस तरह से पाकिस्तानी घुसपैठिए घाटी को लहूलुहान कर रहे हैं. जिस तरह से बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ अत्याचार और रेप के मामले सामने आ रहे हैं उनका दिल पीड़ा से भरा हुआ है. जंगली लोग राज्य को तहस नहस करने के लिए आ रहे हैं.
1950 से 54 बार आदेशों में हुआ संशोधन
नेशनल कांफ्रेस के लीडर मोहम्मद अकबर लोन के पक्ष में दलील पेश करते हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि विलय पत्र के मुताबिक भारत सरकार का अधिकार सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलों तक सीमित था.बता दें कि जम्मू-कश्मीर आदेश संख्या 1950 में 53 से अधिक बार संशोधन किए जा चुके हैं. इसका अर्थ यह है कि विदेश,संचार और रक्षा को छोड़कर शेष मामलों में भी केंद्र की तरफ से पर्याप्त दखल रहा है. जबकि 1957 में जम्मू कश्मीर की संवैधानिक सभा ने खुद के लिए अलग संविधान लागू किया था. कुल 54 आदेशों में से (पहला 1950 लागू किया था) 52 आदेशों को 1996 तक लागू किया गया. इनमें से ज्यादातर आर्डर कांग्रेस के शासन के दौरान लागू किए गए. सिर्फ 2017 और 2019 वाले आदेश एनडीए सरकार से जुड़े थे. 2017 में शेष राज्यों की तरह जीएसटी जम्मू कश्मीर में भी लागू किया गया था और 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया.1950 के आदेश में कहा गया था कि भारत सरकार के पास ऐसे कानून बनाने की शक्ति होगी जो रक्षा और सशस्त्र बलों के सभी मामलों से संबंधित विषयों पर जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे.