नई दिल्ली: सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में सड़क दुर्घटनाओं में साल 1990 की तुलना में 65 प्रतिशत अधिक लोग अस्वस्थ हुए या उन्होंने अपने अंग गंवा दिये अथवा उनकी मौत हो गई. भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्युएशन (आईएचएमई) द्वारा तैयार की गयी इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 के बाद से अधिकतर राज्यों में लोगों के बीमार होने के मामलों में सड़क दुर्घटनाओं की हिस्सेदारी बढ़ गयी है.


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रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्घटनाओं में चोटिल होने की वजह से रुग्णता का शिकार होने वाली सबसे बड़ी आबादी युवाओं की है और इसे वर्ष 2016 में अस्वस्थता के कारणों में 10वें स्थान पर रखा गया. अध्ययन में कहा गया कि भारत में लोगों के घायल होने के मामलों में सड़क दुर्घटनाएं और आत्महत्या से खुद को नुकसान पहुंचाने के मामलों का बड़ा योगदान है.


साल 2016 में भारत के राज्यों में रोगों के बोझ या विकलांगता से जुड़े जीवन वर्ष (डीएएलवाई) की रेंज सड़क दुर्घटनाओं के मामले में तीन गुना तक बढ़ गयी और खुद को नुकसान पहुंचाने के मामलों में यह छह गुना हो गई. रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2016 में 1990 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं से डीएएलवाई का स्तर 65 प्रतिशत से अधिक रहा.