India Canada News: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक बार फिर भारत के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी है. बतौर पीएम, ट्रूडो के कार्यकाल में भारत और कनाडा के कूटनीतिक संबंध रसातल में पहुंच चुके हैं. हालिया विवाद की शुरुआत भले ही 2018 से हुई हो, लेकिन उसके बीज 1985 में ही पड़ चुके थे. सिख अलगाववादियों, जिन्हें खालिस्तानी कहा जाता है, ने कनाडा में अपना ठिकाना बना लिया था. भारत ने खूब जोर लगाया लेकिन कनाडा की तत्कालीन सरकारों के कान पर जूं तक न रेंगी. इन्हीं खालिस्तानी आतंकवादियों ने जून 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 को निशाना बनाया. 300 से अधिक लोग मारे गए जिनमें से ज्यादातर कनाडाई नागरिक थे. इस भयावह नरसंहार से भी कनाडा ने कोई सबक नहीं सीखा. उस आतंकी हमले ने भारत और कनाडा के रिश्‍तों में ऐसी दरार डाली, कि आज दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं.


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कनाडा का खालिस्तान प्रेम


भारत ने 1980 के दशक में उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाया. कड़ी कार्रवाई के बाद पंजाब के कई आतंकवादियों ने कनाडा में शरण ली थी. उन्हीं में से एक आतंकवादी था तलविंदर सिंह परमार. वह 1981 में पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद कनाडा भाग गया था. खालिस्तानी समूह 'बब्बर खालसा' का सदस्य परमार विदेशों में भारतीय राजनयिक मिशनों पर हमले और सामूहिक हत्या की वकालत करता था.


भारत ने परमार को प्रत्यर्पित करने के लिए कहा, लेकिन कनाडा ने उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. इसके अलावा, भारतीय खुफिया एजेंसियों की चेतावनियों पर भी ध्यान नहीं दिया गया. भारत की चिंताओं को अनसुना करने का नतीजा 23 जून, 1985 को सामने आया.


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एयर इंडिया की फ्लाइट 182


23 जून 1985 को, कनाडा से लंदन होते हुए भारत जा रहे एयर इंडिया के विमान में धमाका हुआ था. विमान में सवार सभी 329 लोग मारे गए. मरने वालों में 268 कनाडाई नागरिक शामिल थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के थे, और 24 भारतीय थे. विमान अभी हवा में ही था कि टोक्यो के नारिता हवाई अड्डे पर एक और धमाका हुआ जिसमें दो जापानी बैगेज हैंडलर्स की मौत हो गई थी. जांच के मुताबिक, टोक्यो का धमाका फ्लाइट 182 वाले हमले से जुड़ा था. वह बम एयर इंडिया की एक और फ्लाइट के लिए था, लेकिन उसमें समय से पहले ही धमाका हो गया.


किसने बहाया निर्दोष नागरिकों का खून?


कनाडाई जांच में सामने आया है कि इन धमाकों के पीछे सिख अलगाववादियों का हाथ था. खालिस्तानी 1984 में पंजाब स्थित स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना के घुसने का बदला लेना चाहते थे. 1985 हमले के कुछ महीनों बाद, कनाडाई पुलिस ने बब्बर खालसा के सदस्य तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण को गिरफ्तार किया. लेकिन परमार के खिलाफ मामला कमजोर था और उसे रिहा कर दिया गया.


परमार, पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोप के बाद कनाडा भाग गया था. भारत ने हमले के पहले ही परमार के प्रत्यर्पण की मांग की थी जिसे कनाडा ने ठुकरा दिया. परमार सात साल बाद पंजाब में मारा गया. अब कनाडा उसे 1985 के कनिष्क बम विस्फोट का कथित मास्टरमाइंड मानता है.


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बाद की जांच में यह भी सामने आया कि 1985 हमले से कुछ सप्ताह पहले, कनाडाई खुफिया सेवाओं के सदस्यों ने परमार और रेयात का वैंकूवर द्वीप के कुछ जंगलों तक पीछा किया था. उन्होंने 'एक जोरदार धमाके जैसी आवाज' सुनी थी, लेकिन उन्होंने इसे महत्वपूर्ण नहीं माना. 


एयर इंडिया बम धमाके के अधिकांश पीड़ित भले ही कनाडाई नागरिक थे, मगर उनमें से अधिकांश भारतीय मूल के थे और उनके रिश्तेदार देश में थे. भारत में व्यापक भावना यह है कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है. साथ ही कनाडा ने उन धमाकों से मिले सबक नहीं सीखे.


फ्लाइट 182 पर कनाडा के पब्लिक सेफ्टी मंत्री के स्वतंत्र सलाहकार बॉब रे अपनी रिपोर्ट में कहा कि एयर इंडिया विमान पर बम विस्फोट की साजिश कनाडा में रची गई.