Justin Trudeau On India: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अनायास ही भारत के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला. कनाडाई पुलिस का प्रेस कॉन्फ्रेंस करना, फिर मंत्रियों का बयान और आखिर में ट्रूडो का मीडिया के सामने आना... हालिया घटनाक्रम के पीछे, एक सोची-समझी रणनीति नजर आती है. अपने देश में आलोचनाओं से घिरे ट्रूडो इसके जरिए सिख समुदाय को लुभाना चाहते हैं. कनाडा में सिख राजनीतिक रूप से प्रभावी हैं. कनाडा में 7.7 लाख से अधिक सिख हैं. वह देश का चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है. इस समुदाय का एक हिस्सा खालिस्तान की मांग का समर्थन करता है. अगले साल केंद्रीय चुनावों से पहले, ट्रूडो उन्हीं को साधने में जुट गए हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

चारों तरफ से घिरे हुए हैं जस्टिन ट्रूडो


कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार तमाम मुद्दों पर घिरी हुई है. रहन-सहन का खर्च काफी बढ़ गया है, स्वास्थय व्यवस्था चरमरा गई है और अपराध मे खासा इजाफा हुआ है. एक इप्सोस सर्वे से पता चला कि सिर्फ 26% लोग ही ट्रूडो को प्रधानमंत्री पद का सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार मानते हैं. ट्रूडो की रैंकिंग कंजरवेटिव नेता पियरे पोलीव्रे से 19 प्रतिशत अंक कम है. हाल के दिनों में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को दो चुनावी झटके लगे हैं. 



पिछले महीने, लिबरल पार्टी मॉन्ट्रियल में हार गई. इसे एक सुरक्षित सीट माना जाता था. तीन महीने पहले, पार्टी टोरंटो में एक विशेष चुनाव में भी हार चुकी है जहां तीन दशक तक सीट पर उसका कब्जा रहा था. हालात तब और बिगड़ गए, जब मॉन्ट्रियल की हार से कुछ दिन पहले जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने अल्पसंख्यक ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सिंह खालिस्तान के समर्थक रहे हैं.


यह भी देखें: अचानक कुछ नहीं बिगड़ा, 1985 में ही पड़ चुकी थी दरार... भारत और कनाडा के रिश्‍तों की पूरी कहानी


पार्टी के भीतर ट्रूडो को पद से हटाने की मांग उठी है. कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि कनाडा में लिबरल्स का वही हाल होगा जो यूके में कंजरवेटिव्स का हुआ. ट्रूडो संसद में दो अविश्‍वास प्रस्तावों का सामना करने के बाद किसी तरह कुर्सी से चिपके हुए हैं.


ट्रूडो प्रशासन पर भारत को नहीं भरोसा


ट्रूडो सरकार की नीतियां खालिस्तानी अलगाववादियों के समर्थन में रही हैं. 2018 में, पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत आए ट्रूडो से मुलाकात की थी. यह मुलाकात कारोबारी जसपाल अटवाल को कनाडाई उच्चायोग में डिनर के लिए निमंत्रण पर विवाद के बीच हुई थी. अटवाल को 1986 में वैंकूवर द्वीप में पंजाब के एक मंत्री की हत्या की साजिश रचने के आरोप में दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में बरी कर दिया गया था. हालांकि निमंत्रण वापस ले लिया गया था, लेकिन ट्रूडो ने विवाद से खुद को दूर करने की कोशिश की.


उस विवाद के बावजूद, कनाडाई सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया. ट्रूडो सरकार ने भारतीय वाणिज्य दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिनमें से कुछ में प्रदर्शनकारियों ने भारतीय ध्वज जला दिया. ऑपरेशन ब्लूस्टार की 40वीं वर्षगांठ पर, ओंटारियो और टोरंटो में जुलूसों में 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा की गई हत्या को दर्शाती झांकियां दिखाई गईं. ट्रूडो सरकार ने खालिस्तान पर जनमत संग्रह को रोकने से भी इनकार कर दिया, जिसका समर्थन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने किया था. SFJ को भारत ने एक आतंकी संगठन घोषित कर रखा है.


यह भी पढ़ें: कनाडा आखिर चाहता क्या है? पीएम ट्रूडो के मंसूबे पर अब भारत की 'सर्जिकल स्ट्राइक'


बार-बार विवाद को न्योता दे रहे ट्रूडो


ट्रूडो का खालिस्तान प्रेम भारत-कनाडा के रिश्‍तों पर भारी पड़ा है. पिछले साल, उन्होंने यह आरोप लगाकर सनसनी फैला दी कि कनाडा में सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट्स शामिल थे. भारत ने इन आरोपों को न सिर्फ सिरे से खारिज किया, बल्कि ट्रूडो सरकार से सबूत भी मांगे जो अब तक नहीं मिले हैं.  जांच से भारतीय राजनयिकों को 


कनाडाई नागरिक की हत्या के बारे में जानकारी सहयोगी देशों के साथ साझा की गई: ट्रूडो वाशिंगटन, 15 अक्टूबर (भाषा) कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि पिछले साल कनाडाई नागरिक की हत्या में भारतीय अधिकारियों की संलिप्तता के आरोपों से संबंधित उसके पास जो भी सूचनाएं हैं उन सभी को उसने विशेष रूप से अमेरिका सहित अपने निकट सहयोगियों के साथ साझा की हैं. ट्रूडो द्वारा जल्दबाजी में आयोजित यह संवाददाता सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है जब 


अब ट्रूडो सरकार ने निज्जर की हत्या की जांच से भारतीय राजनयिकों को जोड़कर नया विवाद पैदा कर दिया है. कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए भारत ने सोमवार को कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया तथा कनाडा से अपने उच्चायुक्त और 'निशाना बनाए जा रहे' अन्य राजनयिकों एवं अधिकारियों को वापस बुलाने की घोषणा की.


इधर कनाडा से तनाव बढ़ा, उधर अमेरिका पहुंच गई भारतीय टीम... खालिस्तान मामले में अचानक तेज हुई हलचल


विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक बयान में कहा कि भारत के खिलाफ उग्रवाद, हिंसा और अलगाववाद को ट्रूडो सरकार के समर्थन के जवाब में भारत आगे कदम उठाने का अधिकार रखता है. मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री ट्रूडो की भारत के प्रति बैरपूर्ण स्वभाव लंबे समय से स्पष्ट है. मंत्रालय ने कहा, 'ट्रूडो ने 2018 में भारत की यात्रा की थी जिसका मकसद वोट बैंक को साधना था, लेकिन यह उन्हें असहज करने वाली साबित हुई. उनके मंत्रिमंडल में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं, जो भारत के संबंध में चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से खुले तौर पर जुड़े हुए हैं. दिसंबर 2020 में भारत की आंतरिक राजनीति में उनका स्पष्ट हस्तक्षेप दिखाता है कि वह इस संबंध में कहां तक जाना चाह रहे थे.' (एजेंसी इनपुट्स)