नई दिल्ली / अमृतसर / इस्लामाबाद: पाकिस्तान की इमरान खान (Imran Khan) सरकार ने करतारपुर गुरुद्वारे (Gurudwara Kartarpur Sahib) के रख-रखाव का काम पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Gurudwara Prabandhan committee) से छीन कर Evacuee Trust Property Board (ETPB) को दे दिया है. इस इकाई के प्रमुख तारिक खान हैं और कुल 9 सदस्य हैं, जबकि इनमें से कोई भी सिख नहीं है. पाक सरकार के इस फैसले की भारत ने कड़ी निंदा की है.


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भारत ने जताया विरोध
भारतीय विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) ने विज्ञप्ति जारी कर जोरदार तरीके से विरोध जताया और कहा, 'पाकिस्तान का एकतरफा फैसला करतारपुर साहिब कॉरिडोर और बड़े पैमाने पर सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है.' विदेश मंत्रालय ने कहा, 'इस तरह की कार्रवाई केवल पाकिस्तानी सरकार और उसके नेतृत्व की वास्तविकता को उजागर करती हैं, जो अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और कल्याण के संरक्षण के लंबे दावे करते हैं.'


भारत ने फैसला बदलने की मांग की
भारत ने पाकिस्तान से उसके मनमाने फैसले को बदलने के लिए कहा है, जो सिख समुदाय को पवित्र गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के मामलों का प्रबंधन करने के अधिकार से वंचित करता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, 'करतारपुर का प्रबंधन सिख समुदाय से लेना एक गलत फैसला है. हमारी मांग हैं कि पाकिस्तान करतारपुर साहिब के लिए इस फैसले को फौरन वापस ले.'


करतारपुर गुरुद्वारे का इतिहास
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब (Gurudwara Kartarpur Sahib) का इतिहास करीब 500 साल से भी पुराना है और यह पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है. कहा जाता है कि 1522 में सिखों के गुरु नानक देव ने इसकी स्थापना की थी और उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 18 साल यहीं बिताए थे. भारत के गुरदासपुर बॉर्डर से करतारपुर साहिब की दूरी करीब 7 किलोमीटर है. भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने आपसी सहमति से गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक और करतारपुर गुरुद्वारे को जोड़ने के लिए कॉरिडोर का निर्माण किया है. गुरुनानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर 9 नवंबर 2019 को इसे जनता को समर्पित किया गया था.