नई दिल्ली: भारत (India) ने चीन (China) के कब्जे से सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण जमीन वापस ले ली है. 34 वर्षों बाद भारत ने अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में सुमदोरोंग चू फ्लैशपॉइंट (Sumdorong Chu flashpoint) के पास 202 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है, इस जमीन पर चीन की वर्षों से नियत खराब थी. 1986 में इसी जमीन को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद हुआ था. तब दोनों देशों की सेनाएं आठ महीने तक आमने-सामने रहीं. उस समय इस क्षेत्र में 200 भारतीय सैनिक तैनात रहे.


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1980 में हुई विवाद की शुरुआत
सुमदोरोंग चू अरुणाचल प्रदेश के तवांग (Tawang) जिले में बहने वाली नदी है. यह नामका चू और न्यामजंग चू के संगम स्थल से उत्तर-पूर्व की ओर बहती है. चीनी सेना ने 1986 में इसी नदी के तट पर लुंगरो ला दर्रे के पास 202 एकड़ मैदान को अपने कब्जे में ले लिया था. 1980 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) सरकार के दौरान सुमदोरोंग चू विवाद शुरू हुआ.


इंदिरा गांधी सरकार में हुई कोशिशें
इंदिरा गांधी हर हाल में तवांग को बचाना चाहती थीं. वर्ष 1982-83 में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन जनरल केवी कृष्णा राव की योजना को मंजूरी दी. जिसमें भारत-चीन सीमा (LAC) पर ज्यादा से ज्यादा सैनिकों की तैनाती का प्रस्ताव था. दरअसल, इंदिरा गांधी चीन के साथ युद्ध की स्थिति में अरुणाचल प्रदेश के तवांग को बचाना चाहती थीं. इस पर, 1984 की गर्मियों में भारत ने सुमदोरॉन्ग चू पर चैक पोस्ट बनाई. गर्मियों में सैनिक यहां तैनात रहे और सर्दियों में यह इलाका खाली हो गया.


चीन को दी ती चेतावनी
अगले दो वर्षों तक शांति रही. जून 1986 में भारत की पैट्रोलिंग पार्टी ने देखा कि चीनी सैनिक इस क्षेत्र में स्थायी पोस्ट बना रहे हैं. चीन ने अपना हेलीपैड भी बना लिया था. इस पर, भारत ने स्थायी रूप से अपने 200 सैनिकों को तैनात कर दिया. भारत ने चीन को सर्दियों में इस क्षेत्र से अपनी सेना हटाने का प्रस्ताव दिया लेकिन चीन नहीं माना.


लुंगारो ग्राउंड पर किया कब्जा
दोनों देशों के बीच भूमि का यह हिस्सा विवाद का कारण बन गया. 1987 में, दोनों देशों के बीच ऐसी स्थित रही कि भारतीय और चीनी सेना आठ महीने तक आमने-सामने रही. तब से दोनों देशों के बीच 202 एकड़ भूमि का यह विवाद चला आ रहा था. चीन की शुरू से ही नियत खराब रही. क्योंकि चीन की सीमा से लगे सुमदोरोंग चू क्षेत्र का सामरिक महत्व का है. चीन ने 1986 में लुंगारो ग्राउंड पर कब्जा कर लिया और सुमदोरोंग चू घाटी पर कमांडिंग पोजिशन हासिल करने की कोशिश में जुट गया.


चीन की सीमा तक पहुंचना होगा आसान
चीन को मात देने के लिए मई की शुरुआत में कुछ स्थानों पर सैनिकों को तैनात किया गया. एक ओर सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी गई थी दूसरी तरफ भारत द्वारा चीन की सीमा तक अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए सभी प्रकार की तैयारी की गईं. यही कारण है कि भारत ने चीन सीमा के पास तवांग शहर से 17 किमी दूर, बोमदिर गांव में लुंगरो ग्राजिंग ग्राउंड (जीजी) की 202.563 एकड़ जमीन पर एक नया रक्षा ढांचा विकसित करने की योजना बनाई है. यही वजह है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 12 अक्टूबर को तवांग जाने वाली एक महत्वपूर्ण सड़क पर नेचीफू सुरंग की आधारशिला भी रखी है. इसका निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा किया जाएगा. इस सुरंग के बन जाने के बाद सेना के लिए चीन की सीमा तक पहुंचना आसान हो जाएगा.


इस तरह निकला रास्ता
सूत्रों के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में गृह मंत्रालय के माध्यम से ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत भूमि संसाधन विभाग को एक प्रस्ताव भेजा था. 2013 के अधिनियम के अनुसार रक्षा उद्देश्यों, रेलवे और संचार आवश्यकताओं के लिए स्थानीय पंचायत की अनुमति के बिना किसी भी भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है. इसीके बाद इस सामुदायिक चरागाह के बारे में भारतीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अब नई अधिसूचना जारी कर दी है. भूमि अधिग्रहण के लिए पुनर्वास अधिनियम 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के तहत रक्षा मंत्रालय के पास उचित अधिकार हैं. रक्षा मंत्रालय को अब बोमदिर गांव के इस चरागाह पर कब्जा दे दिया गया है.


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