India’s Census Set for 2025: देश में जनसंख्या की गणना शुरू होने की सुगबुगाहट है. कहा जा रहा है जनगणना 2025 में शुरू होकर 2026 में पूरी होगी. किताबों में पढ़ाया गया है कि जनगणना (census) क्यों क्यों कराई जाती है? बहुत लोगों को पता होगा तो कुछ भूल भी गए होंगे. समय के साथ बहुत सी चीजें बदल जाती हैं. सोशल मडिया के युग में दुनिया वैसे भी बदल गई है. ऐसे में आपको बताते हैं कि जनगणना न होने से कौन से काम रुके थे और गिनती होने के बाद देश में क्या बदलाव आएगा? उसका आप पर क्या असर पड़ेगा?


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परिसीमन 


मोदी सरकार की क्रोनोलॉजी समझें तो जनगणना के बाद आबादी के हिसाब लोगों की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने का काम होगा. पीएम मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राजनीतिक सुधारों और सियासत में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. जनगणना के बाद देश में परिसीमन का काम शुरू होगा. परिसीमन के जरिए आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी. कुछ राज्यों की विधानसभा सीटों में भी इजाफा होने का अनुमान है. ये काम 2028 तक खत्म होगा. जिससे पूरे भारत में राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा.


सांसदों की संख्या बढ़ेगी


नई संसद का निर्माण भी देश की आबादी को हिसाब से राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने के मकसद से हुआ है. पुराने भवन की तुलना में नई बिल्डिंग में सांसदों के बैठने के लिए करीब 150 फीसदी ज्यादा सीटें बनाई गई हैं. पुरानी लोकसभा में अधिकतम 552 व्यक्ति बैठ सकते हैं. नए लोकसभा भवन में 888 सीटों की क्षमता है. पुराने राज्यसभा भवन में 250 सदस्यों के बैठने की जगह है, वहीं नए राज्यसभा हॉल की क्षमता को बढ़ाकर 384 किया गया है. नए संसद भवन की संयुक्त बैठक के दौरान वहां 1272 सांसद बैठ सकेंगे.


नारी शक्ति वंदन अधिनियम फिलहाल लागू नहीं…महिलाओं को मजबूती मिलेगी?


महिला आरक्षण बिल पास हुआ है. जनगणना होने के बाद महिलाओं को उनकी आबादी के हिसाब से संसद और विधानसभाओं में सही प्रतिनिधित्व मिलेगा. उनके लिए नौकरियों में नए अवसर बढ़ेंगे. 2023 में महिला आरक्षण विधेयक हुआ था जिसका नाम था नारी शक्ति वंदन अधिनियम (Nari Shakti Vandan Adhiniyam). संविधान में हुए 106वें संशोधन में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गईं थीं जिसमें एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं. नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मुताबिक, महिला आरक्षण कानून अब आगे होने वाली जनगणना के बाद ही लागू होगा. आरक्षण लागू करने के लिए नए सिरे से परिसीमन होगा और इसी के आधार पर ही महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी. साथ ही, मौजूदा बिल में महिला आरक्षण को 15 साल (यानी कि आमतौर पर केवल तीन चुनाव) के लिए लागू किया गया है.


आपको क्या फायदा होगा?


पहले 593 सांसद 140 करोड़ लोगों के जीवन की दशा और दिशा तय करते थे. अब ये काम दोगुने से भी ज्यादा यानी करीब 1272 सांसद करेंगे. लोकसभा सांसदों की संख्या बढ़ेगी तो उस हिसाब से आप कम भीड़ में अपनी जरूरतों या मांग के बारे में अपने सांसद को बता सकेंगे. वहीं ज्यादा सांसद होने से ज्यादा सांसद निधि इश्यू होगी. जनता के काम जल्दी पूरे हुआ करेंगे. 


इसे काम पूरा होने की डेडलाइन कहा जाए या काम पूरा होने की टाइमलाइन, इस समयसीमा ने चुनावी प्रतिनिधित्व और जातिगत जनगणना के तथ्यों को लेकर विपक्षी दलों के चिंताएं बढ़ा दी हैं. दरअसल सरकार और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों और थिंक टैंक्स के अलावा हितधारक और प्रभावी संगठन देश में पारदर्शी शासन व्यवस्था और संसाधनों के समुचित आवंटन यानी बंटवारे के लिए सटीक जनगणना डेटा के महत्व पर जोर दे रहे हैं. वो इस काम में पारदर्शिता और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर विपक्ष 


जनगणना की समयरेखा


केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुष्टि की है कि जनगणना 2025 में शुरू होगी. ये जनगणना स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा समेत कई क्षेत्रों के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह नीतियों को बनाने के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करेगी. वहीं चुनावी सीमाओं का परिसीमन 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य है, जो देश भर में राजनीतिक प्रतिनिधित्व को और प्रभावित करेगा. 


पृष्ठभूमि और विलंब


ये जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के कारण ये काम चार साल टल गया. डेटा संग्रह के सारे प्रयास बाधित हो गए. कोरोना में कई परिवार खत्म हो गए. एक अनुमान के मुताबिक लाखों लोगों की मौत हुई. साल 2011 में हुई अंतिम जनगणना में कई महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलावों का पता चला. जिसके लिए इस आगामी सर्वेक्षण की बहुत बड़ी आवश्यकता है. 


विशेषज्ञों ने बताया है कि उभरते सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने और सरकारी नीतियों को वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए समय पर डेटा संग्रह महत्वपूर्ण है. तमाम  नागरिक समाज संगठनों ने जनगणना प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता के बारे में चिंता जताते हुए पारदर्शी व्यवस्था से इस काम को पूरा कराने की मांग की है.


FAQ - प्रश्न और उत्तर


1. भारत की आगामी जनगणना की समयसीमा क्या है?
भारत की जनगणना 2025 में शुरू होने वाली है और 2026 तक पूरी होने की उम्मीद है, जो 2011 में आखिरी जनगणना आयोजित होने के बाद होगी.


2. जनगणना क्यों स्थगित की गई और इस देरी के क्या निहितार्थ हैं?
जनगणना शुरू में 2021 के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन COVID-19 महामारी के कारण इसमें देरी हुई. देरी की वजह से जनसांख्यिकीय डेटा की सटीकता और शासन तथा संसाधनों के आवंटन पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताएं बदा दी गई हैं. 


3. जनगणना प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी क्यों महत्वपूर्ण है?
सामुदायिक सहभागिता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि डेटा संग्रह प्रक्रिया के दौरान भारत की हर आवाज को सुना जाए और उनका सही प्रतिनिधित्व किया जाए. पारदर्शिता और समावेशिता से लोगों का विश्वास बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसके साथ ही ये सुनिश्चित होगा कि
जनगणना भारत की विविध आबादी को सही और सार्थक रूप से दर्शाती है.


कांग्रेस की मांग


इससे पहले कांग्रेस ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि जनगणना से जुड़े विषयों पर स्पष्टता के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए. जयराम रमेश ने कहा, ‘दो अहम मुद्दों पर स्पष्टता नहीं है. 1951 से हर जनगणना में होती आ रही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना के अलावा क्या इस नई जनगणना में देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी?दूसरा सवाल ये कि क्या इस जनगणना का इस्तेमाल लोकसभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या निर्धारित करने के लिए किया जाएगा जैसा संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रावधान है (जो कहता है कि ऐसे किसी पुनर्गठन का वर्ष 2026 के बाद की गई पहली जनगणना और उसके रिजल्ट का प्रकाशन आधार होगा)? क्या इससे उन राज्यों को नुक़सान होगा जो परिवार नियोजन में अग्रणी रहे हैं?’