टोक्यो : भारत और जापान ने शुक्रवार को ऐतिहासिक असैन्य परमाणु करार पर हस्ताक्षर किए। इस ऐतिहासिक करार पर हस्ताक्षर पीएम मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे की मौजूदगी में किया गया। पीएम ने कहा कि भारत-जापान असैन्य परमाणु करार स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी के निर्माण के हमारे संबंधों में एक ऐतिहासिक कदम है। पीएम मोदी ने कहा कि हमारा रणनीतिक सहयोग हमारे खुद के समाज की सुरक्षा के लिए ही अच्छा नहीं है बल्कि यह क्षेत्र में शांति, स्थिरता और संतुलन भी लाता है। पीएम ने कहा, 'हम आतंकवाद खासकर सीमा पार आतंकवाद के अभिशाप से लड़ाई के लिए अपने संकल्प के प्रति एकजुट हैं। 


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अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ विस्तृत बातचीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग से जुड़ा करार शामिल है जो स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी के निर्माण के संदर्भ में उठाया गया ऐतिहासिक कदम है। दोनों देशों के बीच छह साल से अधिक समय की गहन बातचीत के बाद दोनों देशों ने परमाणु करार पर हस्ताक्षर किए हैं।


मोदी के साथ साझा प्रेस वार्ता में आबे ने कहा कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से वह बहुत प्रसन्न हैं।


जापानी प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह समझौता एक कानूनी ढांचा है कि भारत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य को लेकर तथा परमाणु अप्रसार की व्यवस्था में भी जिम्मेदारी के साथ काम करेगा हालांकि भारत एनपीटी में भागीदार अथवा हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।’ आबे ने कहा, ‘यह (परमाणु करार) विश्व को परमाणु हथियारों से मुक्त बनाने की जापान की आकांक्षा के अनुरूप है।’ गौरतलब है कि परमाणु प्रसार को लेकर जापान का पारंपरिक तौर पर कड़ा रुख रहा है क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसने परमाणु बम हमले की त्रासदी झेली है। 


आबे ने कहा कि सितम्बर, 2008 में भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य का अपना इरादा जाहिर किया था और परमाणु परीक्षण पर स्वत: रोक लगाने का एलान भी किया था। मोदी ने कहा, ‘परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग से जुड़े करार पर आज किया गया हस्ताक्षर स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी के निर्माण के लिए हमारे संपर्क में ऐतिहासिक कदम का द्योतक है।’ इस करार में सहयोग के लिए आबे, जापान सरकार और संसद का धन्यवाद करते हुए मोदी ने कहा, ‘इस क्षेत्र में हमारे सहयोग से जलवायु परिवर्तन की चुनौती का मुकाबला करने में हमें मदद मिलेगी। मैं जापान के लिए इस तरह के समझौते के विशेष महत्व को स्वीकार करता हूं।’ 


भारत के साथ अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, फ्रांस, नामीबिया, अर्जेंटीना, कनाडा, कजाकिस्तान और आस्ट्रेलिया पहले ही परमाणु करार पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।


प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के तौर पर दोनों देश ‘खुलेपन, पारदर्शिता और कानून के राज’ का समर्थन करते हैं।


उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद, खासकर सीमापार आतंकवाद की समस्या का मुकाबला करने की अपनी प्रतिबद्धता को लेकर हम एकजुट हैं।’ बाद में आबे ने मोदी के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया। इस मौके पर मोदी ने कहा कि इसकी बहुत गुंजाइश है कि दोनों देशों न सिर्फ अपने समाज के लिए लाभ के लिए, बल्कि क्षेत्र एवं पूरी दुनिया के लाभ के लिए निकट साझेदार के तौर पर साथ काम कर सकते हैं।


उन्होंने कहा, ‘हमारी क्षमताएं दोनों देशों के सामने के मौजूदा अवसरों एवं चुनौतियों का जवाब देने देने के लिए मिलकर काम कर सकती हैं। वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर हम कट्टरपंथ, चरमपंथ और आतंकवाद के बढ़ते खतरों का मुकाबला कर सकते हैं और हमें करना चाहिए।’ आबे ने एनपीटी के सार्वभौमिकरण, सीटीबीटी के अमल में आने तथा विखंडनीय सामग्री संधि एफएमसीटी पर जल्द बातचीत शुरू करने की पैरवी की। शिखर स्तरीय वार्ता के बाद दोनों पक्षों के बीच नौ अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। इनमें कौशल विकास, सांस्कृतिक आदान प्रदान और आधारभूत संरचना जैसे क्षेत्र शामिल हैं।


पिछले महीने दिसंबर में आबे की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच इस बारे में व्यापक सहमति बनी थी लेकिन अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये जा सके थे क्योंकि कुछ तकनीकी एवं कानूनी मुद्दे सामने आ गए थे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले सप्ताह कहा था कि दोनों देशों ने करार के मसौदे से जुड़े कानूनी एवं तकनीकी पहलुओं समेत आंतरिक प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है। भारत और जापान के बीच परमाणु करार के विषय पर बातचीत कई वषरे से जारी थी लेकिन इसके बारे में प्रगति रूकी हुई थी क्योंकि फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में 2011 में दुर्घटना के बाद जापान में राजनीतिक प्रतिरोध की स्थिति थी।


(एजेंसी इनपुट के साथ)