Azimullah Khan Pathan History: भारत के इतिहास में एक से बढ़कर एक शूरवीर योद्धा हुए हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने जान तक की परवाह नहीं की. भारतीय इतिहास में पठानों के बहादुरी के किस्से बहुत सुनने को मिलते हैं. आपको बता दें भारत में एक ऐसा बहादुर पठान भी हुआ है जिसने सन् 1857 की क्रांति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. इस पठान का नाम अजीमुल्ला खां था. अजीमुल्ला खां का नाम भारत के इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि इन्हें सन् 1857 की क्रांति के आधार स्तंभों में शामिल किया जाता है. वीर सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) भी मानते थे कि अजीमुल्ला खां अपने दौर के 'महानायक' थे. 'कानपुर का इतिहास' किताब में इस वीर योद्धा के बारे में कई जानकरी मिलती हैं. 'कानपुर का इतिहास' के लेखक लक्ष्मी चंद्र त्रिपाठी और नारायण प्रसाद सन् 1857 की क्रांति का श्रेय अजीमुल्ला खां को देते हैं. कई साक्ष्य बताते हैं कि इनके बिना यह क्रांति नहीं हो सकती थी.


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अजीमुल्ला का खां का इतिहास


एक साधारण परिवार में जन्में अजीमुल्ला खां की जिंदगी इतनी आसान भी नहीं थी. इनकी शुरूआती पढ़ाई कानपुर के एक स्कूल में हुई थी लेकिन उस दौरान इन्हें एडमिशन के लिए लेने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. अजीमुल्ला खां पढ़ाई में काफी अच्छे थे, जिसके लिए इन्हें स्कॉलरशिप भी मिली. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस स्कूल से इनकी पढ़ाई हुई, उसी स्कूल में इन्होंने बतौर शिक्षक अपनी सेवा भी दी. अपने इलाके में बढ़ता हुआ अजीमुल्ला खां का प्रभाव नाना साहेब के कानों तक जा पहुंचा और नाना साहेब इनसे इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि इन्हें अपना मंत्री बना लिया.


फैलाई क्रांति की आग


अजीमुल्लाह खां ने नाना साहेब के साथ मिलकर भारत के तमाम तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया और जगह-जगह पर क्रांति का प्रसार किया. एक वक्त पर अजीमुल्ला खां का प्रभाव इतना ज्यादा था कि नाना साहब ने उन्हें अपना दूत बनाकर इंग्लैंड के लिए भी भेजा था. 4 जून को उत्तर प्रदेश के कानपुर में क्रांति का बिगुल बजा जिसका नेतृत्व खुद नाना साहब ने किया जिसमें अजीमुल्ला खां ने बड़ा रोल अदा किया. सन् 1857 की क्रांति में अजीमुल्ला खां उन प्रमुख विचारकों में से एक थे जिनसे बड़ी संख्या में लोग प्रभावित थे.


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