Antibiotics Health Warning: लैंसेट प्लैनेट्री रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन के पानी में एंटीबायोटिक मौजूद है और लोगों के शरीर में पहुंच रहे हैं. इस स्टडी को करने के लिए लैंसेट के वैज्ञानिकों ने 2006 से 2019 के बीच अलग अलग देशों की स्टडी का एक मेटा एनालिसिस किया. ये अलग अलग स्टडी उन देशों में ग्राउंड वाटर में मौजूद प्रदूषित कणों पर की गई थी. कुल 240 स्टडी को परखा गया. ज्यादातर ऐसे शोध चीन और भारत के पानी पर किए गए थे. 


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पानी के साथ एंटीबायोटिक्स 


स्टडी में सामने आया है कि भारत में वेस्ट वॉटर और इस पानी को पीने लायक बनाने के लिेए लगाए गए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स से नलों तक पानी की जो सप्लाई हो रही है उसमें एंटीबायोटिक के ट्रेसिस मौजूद हैं. और पानी के पानी के ज़रिए इंसान के शरीर तक एंटीबायोटिक पहुंच रहे हैं. स्टडी में ये भी सामने आया कि कई ट्रीटमेंट प्लांट्स ऐसे तत्वों को हटा ही नहीं पा रहे जो ऐसे बैक्टीरिया को मार सके जो एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पैदा करता है.


क्या होता है एंटीबायोटिक वाले पानी का असर? 


भारत में अलग अलग अस्पतालो में की गई स्टडी ये बताती हैं कि भारत के अस्पतालों में आईसीयू में मौजूद 40 से 70 प्रतिशत मरीजों पर जान बचाने के लिए इस्तेमाल की जा रही एंटीबायोटिक दवाएं काम ही नहीं कर रही हैं, और मरीज बेमौत मरने को मजबूर हैं. क्योंकि इंसान के शरीर में अलग अलग तरीकों से एंटीबायोटिक पहुंच रहा है और इससे शरीर में मौजूद इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया धीरे धीरे एंटीबायोटिक के खिलाफ मजबूत हो जाते हैं. ऐसे में असल में जब कोई गंभीर इंफेक्शन हो जाता है तो मरीज पर एंटीबायोटिक दवाएं काम करना ही बंद कर चुकी होती हैं. 


क्या कहा विशेषज्ञ ने?


गंगाराम अस्पताल के गैस्ट्रोएंट्रोल़ॉजिस्ट डॉ पीयूष रंजन के मुताबिक पहले हम नई जेनरेशन की लेटेस्ट एंटीबायोटिक दवाएं इस्तेमाल करते हैं - लेकिन हम देख रहे हैं कि कई मरीजों पर उन दवाओं का असर ही नहीं होता. तब हम उन दवाओं को इस्तेमाल करते हैं जो 30 से 40 साल पहले प्रयोग हो रही थी. क्योंकि वो लंबे समय से इस्तेमाल से बाहर हैं तो आजकल कुछ मामलों में वो काम कर रही हैं. पानी जिसे हम रोज पीते हैं - उसके जरिए अगर चाहे अनचाहे हमारे शरीर में एंटीबायोटिक दवा पहुंच जाती है तो आप समझ सकते हैं कि इससे भविष्य में बीमारी होने पर दवाएं काम ना करने का खतरा कितना बढ़ रहा है. डॉक्टर अक्सर मरीजों को सलाह देते हैं कि जब तक जरुरत ना हो तब तक एंटीबायोटिक दवा का प्रयोग ना करें. कई डॉक्टरों को भी एंटीबायोटिक दवाएं लिखने की जल्दबाजी रहती है जिससे बचने की सलाह समय समय पर दी जाती रही है. 


न्यूट्रीशनिस्ट ने क्या कहा?


लेकिन Antibiotics  केवल दवा के रुप में ही हम तक नहीं पहुंच रहे. पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों को, डेयरी फार्म में गाय भैंसों को इंफेक्शन से बचाने के लिए उन्हें एंटीबायोटिक दिए जाते हैं. एंटीबायोटिक ग्राउंड वॉटर में घुल रहे हैं - अस्पताल का कचरा, इंडस्ट्री का वेस्ट और एंटीबायोटिक का सेवन किए हुए पशुओं और लोगों का वेस्ट भी ग्राउंड वाटर में मिल जाता है. न्यूट्रीशनिस्ट मुक्ता वशिष्ठ के मुताबिक पानी से हमें जरुरी मिनरल, नमी और कैल्शियम जैसे तत्व मिलते हैं, साफ और शुद्द पानी दिल की सेहत के लिए और ब्लड प्रेशर को काबू में रखने के लिए भी जरुरी है - लेकिन अगर पानी प्रदूषित है तो वो टायफायड और हैपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियां दे सकता है. गंदा पानी पेट में इंफेक्शन पैदा कर सकता है लेकिन इस इंफेक्शन से लड़ने के लिए जब हमें एंटीबायोटिक की जरुरत पड़ती है तो हमारे शरीर के बैक्टीरिया दवा से ज्यादा ताकतवर हथियार बना चुके होते है. 


वाटर प्लांट्स पर ध्यान देना जरूरी


भारत जैसे देशों में शहरी इलाकों में आमतौर पर नगर निगम और नगरपालिकाएं लोगों को नल के पानी की आपूर्ति करती हैं. इस पानी को पहले ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है. प्लांट तक पहुंचने वाले पानी में कई स्रोतों का योगदान होता है. मसलन, अस्पताल, मवेशीपालन की जगहें, दवा बनाने वाली जगहों से निकलने वाला पानी. इस पानी में मौजूद एंटीबायोटिक अगर ट्रीटमेंट प्लांट से होकर गुजरने के बाद भी मौजूद रहा, तो सप्लाई होने वाले पानी में भी एंटीबायोटिक होगा.


काम नहीं कर रहीं एंटीबायोटिक दवाएं!


एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने को दुनिया पर मंडरा रहे 10 बड़े खतरों में माना गया है. लैंसेट के मुताबिक 2019 में दुनिया भर में 12 लाख 70 हज़ार लोगों की जान एंटीबायोटिक दवाओं के काम ना करने की वजह से हो गई. यानी ये वो दौर है जिसमें मरीज़ अस्पताल में भर्ती होगा, तो उसे अस्पताल से बैक्टीरिया वाले इंफेक्शन के संक्रमण का खतरा होगा. मरीज को दवाएं तो लिखी जाएंगी लेकिन दवाएं काम नहीं करेंगी और मरीज़ बेमौत मरने को मजबूर हो जाएगा.  


खून तक पहुंच रहा इंफेक्शन


दुनिया के 127 देश अपने यहां का ये डाटा WHO से साझा करते हैं कि उनके देश में Anti microbial resistance यानी एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने की स्पीड क्या है. इसी डाटा के आधार पर इस रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया है कि फिलहाल क्या हालात हैं. रिपोर्ट का नाम है Global antimicrobial resistance and use surveillance system (‎GLASS)‎ report: 2022 यानी GLASS REPORT. इसके नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं. पहली बार रिपोर्ट में पाया गया है कि अस्पतालों में भर्ती गंभीर मरीजों में से 50 %को Klebsiella pneumonia (क्लैबसेला निमोनिया) और Acinetobacter (एसिनेटोबेक्टर) sppनाम के दो बैक्टीरिया अपना शिकार बना रहे हैं. और इंफेक्शन खून तक भी पहुंच रहा है.


लेटेस्ट एंटीबायोटिक्स भी काम नहीं कर रही


रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि 8% मरीजों पर (Carbapenem) कार्बापेनम ग्रुप की दवाएं यानी लेटेस्ट एंटीबायोटिक्स भी काम नहीं कर रही हैं और मरीज की मौत हो जाती है. कार्बापेनम एंटीबायोटिक दवाएं Broad Spectrum दवाएं होती हैं. ये वो लेटेस्ट जेनरेशन एंटीबायोटिक दवाएं हैं जो मोटे तौर पर कई सारे बैक्टीरियल इंफेक्शन्स पर एक साथ काम करती हैं. कार्बापेनम ग्रुप में imipenem, meropenem, ertapenem, and doripenem जैसी स्ट्रांग और लेटेस्ट एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं. Neisseria gonorrhea के 60% इंफेक्शन दवाओं से बेअसर हो चुके हैं. ये एक STD यानी sexually transmitted disease है. E.coli बैक्टीरिया के 20%मामलों में बहुत सी एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही. E coli (ई कोलाई) बैक्टीरिया Urinary Tract infections में सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस इंफेक्शन के इलाज में 1st और 2nd जेनरेशन की एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही.


2017 से अबतक बहुत कुछ बदल गया


रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया कि 2017 से अब तक यानी 2022 तक कितने बदलाव हुए हैं. पहले के मुकाबले इंफेक्शन के खून में पहुंचने तक के मामलों में 15% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.


क्या कदम उठाने चाहिए?


-जानवरों में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को कम किया जाए.
-पानी में मौजूद एंटीबायोटिक की रेगुलर टेस्टिंग हो
-भारत में एंटीबायोटिक दवाओं को मरीज को लिखने पर पॉलिसी है लेकिन उसे लागू करने में किसी की दिलचस्पी नहीं है.
-केमिस्ट बिना प्रिस्क्रिप्शन के एंटीबायोटिक दवाएं नहीं बेच सकते लेकिन भारत में इस नियम का पालन एकाध जगह ही होता होगा. 
-भारत में 2017 में एंटीबायोटिक दवाओं के बेवजह इस्तेमाल को रोकने की पॉलिसी केवल कागजों में ही दर्ज है. 


एंटीबायोटिक पर आईसीएमआर की गाइडलाइंस


नवंबर के आखिरी हफ्ते में आईसीएमआर ने एंटीबायोटिक दवाओं के सही तरीके से इस्तेमाल को लेकर जो गाइडलाइंस जारी की है वो डॉक्टरों के लिए हैं. आईसीएमआर (ICMR) ने एंटीबायोटिक दवाओं के सही तरीके से इस्तेमाल को लेकर गाइडलाइंस जारी की हैं जिसमें सिलसिलेवार तरीके से ये बताया गया है कि एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल कहां करना है और कहां नहीं. गाइडलाइंस में खासतौर पर डॉक्टर्स के लिए सलाह है कि किस आधार पर एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाए.  


भारत में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग?


ये रिपोर्ट इसलिए भी जारी करनी पड़ रही है क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है. भारत के अस्पतालों में भर्ती कई गंभीर मरीजों की जान केवल इसलिए जा रही है क्योंकि गंभीर इंफेक्शन के केस में उन पर कोई एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर पा रही. दवाओं के बेअसर होने और अस्पतालों और पर्यावरण में सुपरबग्स यानी बैक्टीरिया के ताकतवर होते जाने के सिलसिले में लोग जान गंवा रहे हैं. डॉक्टरों के लिए गाइडलाइंस – केवल बुखार, रेडियोलॉजी रिपोर्ट्स, White Blood Cells काउंट के आधार पर ये तय ना करें कि एंटीबायोटिक दवाएं देनी ज़रुरी ही हैं.  


किन मामलों में ना दें एंटीबायोटिक दवाएं  


-वायरल bronchitis यानी गला खराब होने के साधारण मामलों में एंटीबायोटिक दवाएं ना दें.  
-Viral pharyngitis एंटीबायोटिक दवाएं ना दें.
-Viral rhinosinusitis के मामले में भी एंटीबायोटिक दवाएं ना दें.  
-स्किन इंफेक्शन, स्किन में सूजन जैसी परेशानी में भी नहीं.
-हल्के बुखार के मामलों में एंटीबायोटिक दवाएं ना दें.  


किन मामलों में एंटीबायोटिक दवाओं की थेरेपी का पीरियड कम करना चाहिए?


-निमोनिया (कम्युनिटी से मिली हो तो) – 5 दिन दें एंटीबायोटिक दवा का कोर्स 
-निमोनिया (अस्पताल से हुआ हो तो) – 8 दिन दें एंटीबायोटिक दवा का कोर्स 
-स्किन या टिश्यू का इंफेक्शन – 5 दिन दें एंटीबायोटिक दवा का कोर्स 
-कैथेटर से इंफेक्शन – 7 दिन  
-कॉम्प्लिकेशन यानी बीमारी बिगड़ने का खतरा कम हो तो दो हफ्ते और ज्यादा कॉम्प्लिकेशन हो तो 4 से 6 हफ्ते तक एंटीबायोटिक दवाएं दे सकते हैं.
-पेट का इंफेक्शन हो तो 4 से 7 दिन तक एंटीबायोटिक दवा का कोर्स दें.  
-गाइडलाइंस के मुताबिक एंटीबायोटिक का कोर्स शुरु करते वक्त ही डॉक्टर उसे रोकने की तारीख दर्ज कर लें. 


सही एंटिबायोटिक की पहचान करें


एंटीबायोटिक सीमित मात्रा में हैं, ऐसे में बेहद सावधानी से एंटीबाय़ोटिक दवा चुनें. एंटीबायोटिक दवा का डोज, ड्यूरेशन, और रुट सही चुनें. मसलन एंटीबायोटिक दवा intra muscular दी जानी है, intra venus या मुंह के ज़रिए दवा दी जानी है – इसका चुनाव भी सही करें. उसकी सही डोज दी जा रही है, इसका भी ख्याल रखें. Broad Spectrum empiric Antibiotics का चुनाव कल्चर रिपोर्ट आने के बाद उस आधार पर तय करें. ये वो दवाएं हैं जो कल्चर रिपोर्ट आने से पहले अनुमान के आधार पर दी जा रही होती हैं. मरीज को कौन सा इंफेक्शन है और उसका शरीर पर किसी एंटीबायोटिक दवा का असर होगा या नहीं, इसके लिए कल्चर टेस्ट करवाए जाते हैं जिसके नतीजे आने में कई बार 2 से 4 दिन लग जाते हैं. तब तक अनुमान के आधार पर दवा दी जाती है. 


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