इंदिरा गांधी को हो गया था मौत का अहसास? हत्या से 1 दिन पहले दिया था भावुक भाषण
Zee News Time Machine: 31 अक्टूबर, 1984 का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है. ये वही दिन था जब देश ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री और पहली ताकतवर महिला नेता इंदिरा गांधी को खो दिया.
Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1984 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वही साल था जब दिन दहाड़े इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. इसी साल इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद देश में सिख विरोधी दंगे हुए थे. इन दंगों में हजारों लोगों की जान गई थी. तब सिखों के लिए फरिश्ता बनकर आए थे अटल बिहारी वाजपेयी. ये वही साल था जब पहली बार किसी भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा था. इसी साल भोपाल में गैस त्रासदी हुई, जिसने पूरी दुनिया में दहशत पैदा कर दी. आइये आपको बताते हैं साल 1984 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
इंदिरा गांधी की मौत
31 अक्टूबर, 1984 का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है. ये वही दिन था जब देश ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री और पहली ताकतवर महिला नेता इंदिरा गांधी को खो दिया. फौलादी इरादे और अपने फैसलों पर अडिग रहने वाली इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 में हत्या कर दी गई. इस हत्या को अंजाम उन्हीं के अंगरक्षकों ने दिया था. इंदिरा के लिए हत्या वाला दिन आम दिन की तरह ही था. उनकी मीटिंग्स और उनका बाकी काम जारी था. इंदिरा को अपनी मौत का अंदाजा शायद पहले ही हो गया था. उन्होंने मौत से एक दिन पहले ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में दोपहर में एक चुनावी सभा को संबोधित किया था.
इंदिरा गांधी का भावुक भाषण
यहां भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि, मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं. मेरा जीवन लंबा रहा और मुझे गर्व है कि मैंने मेरा जीवन देशवासियों की सेवा में बिताया. जब मैं मरुंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा. इंदिरा द्वारा कही गई ये लाइनें ऐसे लग रही थीं जैसे वो खुद कह रही हैं कि ये उनका आखिरी भाषण हैं. जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या की गई उस दिन इंदिरा सुबह अपना नाश्ता करके निकली ही थीं कि अचानक वहां तैनात उन्हीं के सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर किया. इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फायर किए. ये गोलियां उनकी बगल, सीने और कमर में घुस गईं. इसी बीच इंदिरा के दूसरे सुरक्षाकर्मी सतवंत सिंह ने भी 25 गोलियां इंदिरा के शरीर में दाग दीं. अचानक वहां अफरा तफरी मच गई. इंदिरा इस दौरान गोलियों से छलनी हो चुकी थीं और उनका शरीर का हर हिस्सा उस वक्त खून से लथ-पथ था. इंदिरा को तुरंत अस्पताल ले जाया गया और गोली मारे जाने के लगभग चार घंटे बाद इंदिरा गांधी को मृत घोषित कर दिया गया.
जब हुए सिख विरोधी दंगे
साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों को शायद इतनी जल्दी नहीं भुलाया जा सकता है. 1 नवंबर 1984 में दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में सिख विरोधी दंगे हुए. जिनमें ना जाने कितने घर, कितने परिवार बर्बाद हुए और ना जाने कितने लोग अनाथ हुए. लेकिन ये दंगे आखिर हुए क्यों? कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ये दंगे भड़के क्योंकि उनकी हत्या करने वाले सिख ही थे. इसके बाद लोग सिखों के खिलाफ भड़क गए थे. वैसे ये तो कुछ भी नहीं है. कहा तो ये भी जाता है कि इंदिरा गांधी ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर पर कब्जा करने का आदेश दिया था. इस दौरान मंदिर में घुसे सभी विद्रोहियों को मार दिया गया था, जो कि ज्यादातर सिख ही थे. इन सभी हथियारों से लैस विद्रोहियों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था. ये खालिस्तान नाम से अलग देश की मांग कर रहे थे. इसी दौरान ऑपरेशन ब्लू स्टार आया था. इसके बाद दिल्ली में दंगों की आग धधक उठी. दंगे में मारे गए लोगों में सबसे ज्यादा लोग दिल्ली के ही थे. गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया. दंगे में कितने लोगों की मौत हुई, इस पर अलग-अलग रिपोर्ट सामने आ चुकी है. लेकिन माना जाता है कि सिर्फ दिल्ली में ही करीब 2146 लोग मारे गए थे, जबकि देशभर में मरने वालों का आंकड़ा कहीं ज्यादा था.
1984 में सिखों के 'फरिश्ता' बने वाजपेयी
साल 1984 इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में दर्ज है. ये वही साल था जब देश जल रहा था. हर तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई थी. सिख विरोधी दंगों में ना जाने कितने लोग झुलसे. लेकिन इसी साल इन्हीं दंगों के बीच सिखों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी एक फरिश्ता बनकर सामने आए थे. 1 नवंबर, 1984 को अपने आवास 6 रायसेना रोड पर लगभग सुबह 10 बजे वाजपेयी ने अपने बंगले के गेट से बाहर का भयावह मंजर देखा. अटल बिहारी ने देखा कि, उनके घर के सामने टैक्सी स्टैंड पर काम करने वाले सिख ड्राइवरों पर हल्ला बोलने के लिए गुंडे-मवालियों की भीड़ जमा थी. इसके बाद वो बंगले से अकेले ही निकलकर टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए. जैसे ही वो वहां पहुंचे तो हत्याएं करने के इरादे से आई भीड़ भाग खड़ी हुई. क्योंकि भीड़ ने अटल बिहारी को पहचान लिया था. फिर वाजपेयी ने सभी को खूब सुनाया. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के गार्ड ने पुलिस को सूचित किया और बुलाया. इस घटना के बाद वहां मौजूद सिखों ने अटल बिहारी वाजपेयी का धन्यवाद किया. और माना कि अगर वो नहीं आते तो शायद सिखों की जान चली जाती.
भोपाल गैस त्रासदी...एक दर्द
साल 1984 में भोपाल में कुछ ऐसा हुआ कि जिससे पूरा देश ही नहीं दुनिया दहल उठी थी. और दिल दहलाने वाला हादसा हुआ था भोपाल में. भोपाल गैस त्रासदी को याद कर आज भी रूह कांप उठती है. 1984 को घटी ये घटना इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में दर्ज है. उस साल 2 दिसंबर की रात को मौत की गैस का ऐसा रिसाव हुआ कि हर तरफ तांडव मच गया. घटना भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नाम की एक कंपनी में हुई. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के पेस्टिसाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट यानी एमआईसी गैस लीक होने लगी. धीरे-धीरे ये गैस पूरे कारखाने में फैल गई. जो गैस लीक हुई उसका इस्तेमाल कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था. गैस ने धीरे-धीरे अपने आसपास के इलाके को अपनी ज़द में ले लिया. आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी. उधर पुलिस को सतर्क किया गया और देखते ही देखते भोपाल शहर में भगदड़ मच गई. लेकिन कारखाने के मालिकों ने ये कह दिया कि कोई गैस लीक नहीं हुई है. पुलिस की गाड़ियां क्षेत्र में लाउडस्पीकर से चेतावनी देने लगीं. शहर की सड़कों पर हजारों गैस प्रभावित लोग या तो दम तोड़ते जा रहे थे या जान बचाने के लिए बदहवास होकर इधर-उधर भाग रहे थे. अस्पतालों में लंबी-लंबी कतारें लग गईं. अगर आंकड़ों की मानें तो इस त्रासदी में करीब 5 लाख से ज्यादा लोगों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब साढ़े 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. हालांकि बाद में मौत के आंकड़े 2259 बताए गए थे.
चुनावी मैदान में उतरे अमिताभ
अमिताभ बच्चन, जहां खड़े हो जाएं, लाइन वहीं से शुरू होती है. कई बार आपने अमिताभ बच्चन के इस डायलॉग को सुना होगा. भारतीय सिनेमा में स्टारडम के सातवें शिखर पर महानायक अमिताभ बच्चन रहे हैं. लेकिन अमिताभ महज एक अभिनेता नहीं बल्कि राजनेता भी रहे हैं. साल 1984 में इलाहाबाद सीट से अमिताभ बच्चन चुनावी मैदान में उतरे थे. उस वक्त कांग्रेस ने आम चुनावों में अमिताभ बच्चन को हुकुम के इक्के के तौर पर नामांकन के एक दिन पहले ही चुनावी मैदान में उतार दिया. और ये सब हुआ राजीव गांधी के कहने पर. राजीव गांधी, अमिताभ बच्चन के बहुत अच्छे दोस्त थे. नामांकन के बाद अमिताभ चुनाव प्रचार करने सड़क पर आ गए. अपने रोड शो के लिए पहुंचे लेकिन रोड शो की शुरूआत 4 घंटे देरी से हुई. उस वक्त तक अमिताभ सुपरस्टार बन चुके थे. एंग्रीमैन बिग बी के लिए दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलती थी. आखिरकार अमिताभ ने अंतिम दिन अपना नामांकन दाखिल करने के साथ ही चुनाव में भारी मतों से जीत दर्ज की थी और हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया. ये तो कुछ भी नहीं है. उस वक्त अमिताभ के लिए फीमेल फैंस में भी जमकर क्रेज़ था. बताया जाता है कि, अमिताभ की फैंस महिला वोटर्स ने बैलेट पेपर पर मुहर की जगह लिपिस्टिक का ठप्पा लगाया. भले ही ये बिग बी फीमेल फैंस वोटर्स का प्यार था लेकिन अफसोस इसकी वजह करीब 4 हजार महिलाओं के वोट कैंसल करने पड़े थे. सबको लगा कि अमिताभ हार जाएंगे. पर ऐसा नहीं हुआ और अमिताभ भारी मतों से ये चुनाव जीते थे.
अंतरिक्ष में पहले भारतीय राकेश शर्मा
साल 1984 वो साल था, जब भारत ने एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की थी. ये वही साल था जब पहली बार किसी भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा था. हम बात कर रहे हैं अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा की. साल 1982 में उनका चयन अंतरिक्ष में जाने के लिए किया गया था. इसरो और सोवियत एजेंसी के ज्वाइंट स्पेस प्रोजेक्ट में राकेश शर्मा को भारत की ओर से चुना गया था. 2 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा ने टी-सोयुज 11 मिशन के तहत कजाकिस्तान से उड़ान भरी थी. मिशन में राकेश शर्मा के साथ सोवियत संघ के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल थे. अंतरिक्ष में राकेश शर्मा का काम बायो-मेडिसिन और रिमोट सेन्सिंग से जुड़ा हुआ था. अंतरिक्ष में राकेश शर्मा ने 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे. अंतरिक्ष से लौटने के बाद रूस ने राकेश शर्मा को 'हीरो ऑफ सोवियत यूनियन' से नवाजा. भारत में राकेश शर्मा को 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया था.
देश में चली पहली मेट्रो
मेट्रो, मतलब देश की आम जनता का अहम हिस्सा. या यूं कहें कि महानगरों में रहने वाले लोगों की ट्रेवल पार्टनर है मेट्रो. लेकिन क्या आपको पता है कि देश में पहली बार मेट्रो की शुरूआत कहां और कैसे हुई थी. देश में पहली बार मेट्रो का आगाज साल 1984 में हुआ था. देश की पहली मेट्रो कोलकाता में चली थी. इसे बनाने को लेकर विचार की शुरुआत ब्रिटिश इंडिया से ही हो चुकी थी. लेकिन इसके निर्माण कार्य में साल दर साल देरी होती रही. आखिरकार कोलकाता मेट्रो की शुरुआत 24 अक्टूबर 1984 को हुई. शुरुआत में इसे केवल 3.4 किलोमीटर के हिस्से में शुरू किया गया था. 1969 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया था. इसके बाद 1971 में मेट्रो का मास्टर प्लान तैयार किया गया और फिर आखिरकार इसकी शुरूआत 1984 में हो पाई. आज देश के कई छोटे बड़े शहरों में मेट्रो सुविधा मौजूद है. जिससे लोगों का यात्रा करना अब आसान हो गया है.
जब पीटी उषा पर भारी पड़ा 0.01 सेकेंड
अगर आपसे कहा जाए कि आपके लिए एक सेकेंड क्या मायने रखता है. तो शायद आप कहेंगे कि पलक झपकने के बराबर ही ये होता है. और शायद आपको 1 सेकेंड से इतना फर्क ना पड़े. लेकिन 1984 में ये एक सेकेंड पीटी ऊषा पर बेहद भारी पड़ा था. दरअसल 1984 में लॉस एंजिल्स गेम्स में पीटी उषा ने हिस्सा लिया था. पीटी उषा 400 मीटर में हिस्सा ले रहीं थीं और वो भी कुछ सेकंड की बदौलत टॉप तीन में अपनी रेस को ख़त्म नहीं कर पाईं. रेस के बाद पीटी उषा को पता लगा कि रोम की क्रिस्टियाना कोजोकारू ने उन्हें 1/100 सेकंड से मात देते हुए ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल किया. और इस रेस में पीटी उषा हार गईं.
टीवी पर आया पहला सीरियल 'हम लोग'
1984 में एक तरफ जहां देश में कई घटनाएं हुईं तो वहीं दूसरी ओर ये साल मनोरंजन जगत के लिहाज से भी बेहद खास रहा. क्योंकि इसी साल देश का पहला धारावाहिक यानी टीवी पर पहला सीरियल टेलिकास्ट किया गया. उस दौर में ना तो महंगे कॉस्ट्यूमस, ना कोई वैनिटी वैन और ना ही ज्यादा काम को लेकर एक्सपेरिमेंट था. खुद के कपड़े पहनना, एक ही शॉट में सीन देना और इस सबके लिए बेहद कम पैसे मिलना. बस यही हुआ करता था. 1984 में देश का पहला सीरियल हम लोग आया और तब ये सब कुछ होता था. टीवी पर हम लोग की शुरूआत मानो मनोरंजन जगत का एक बड़ा कदम. जिसके जरिए घर-घर तक एक कहानी को पहुंचाया जा सके. 7 जुलाई, 1984 को देश का पहला धारावाहिक 'हम लोग' दूरदर्शन पर शुरू हुआ. इस शो में मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की कठिनाइयों, परिश्रम, इच्छाओं और सपनों की कहानी को दिखाया गया. ये देश का पहला टीवी सीरियल था, जिसे संपूर्ण भारत में एक साथ टेलीकास्ट किया गया था. ये शो कुछ ही वक्त में बेहद पॉपुलर हो गया. इस धारावाहिक को देखने के लिए कई छोटे टीवी के सेट्स खरीदे गए. और टीवी पर ये धारावाहिक करीब 17 महीने तक चला. इस शो का आख़िरी एपिसोड 17 दिसंबर 1985 को प्रसारित हुआ था.
देश की पहली 3D फिल्म
भले ही आज जब आप किसी फिल्म को देखने के जाते हैं तो आप 3D 4D जैसी फिल्में देखते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में पहली बार 3D फिल्म कब आई थी. साल 1984 ही वो साल था. जब पहली बार देश में 3D फिल्म रिलीज़ की गई थी. देश में पहली 3D फिल्म मलयालम में बनी और फिल्म का नाम था, माई डियर कुट्टीचातन. ये फिल्म 24 अगस्त, 1984 में रिलीज हुई थी और इसकी कहानी काल्पनिक थी. फिल्म को जिजो पुनोनोस ने डायरेक्ट किया था. तो वहीं फिल्म को नवोदय स्टूडियो के बैनर तले बनाया गया था. बताया जाता है कि, फिल्म को बनाने में उस वक्त करीब 25 करोड़ रुपये लगे थे. इतना ही नहीं फिल्म के चाइल्ड एक्टर को बेस्ट चाइल्ड एक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद साल 1997 में हिंदी में इसी मलयाली फिल्म को छोटा चेतन के नाम से रिलीज किया गया.
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