NAS Report 2021: वक्त बीतने के साथ पढ़ाई का तौर तरीका भी बदल रहा है. हालात अब पहले से ज्यादा सहज हो रहे हैं. ऐसे में हर वर्ग और हर तबके के मां-बाप के लिए बच्चों की पढ़ाई प्राथमिकता बनती जा रही है. भले मां-बाप को खुद पढ़ाई के संसाधन और माहौल न मिल पाया हो, मगर वो अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शैक्षणिक संस्थान और लाइफस्टाइल मुहैया कराना चाहते हैं. अभिभावक बच्चों की बेहतर जिंदगी के लिए अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई खर्च करने में जरा भी संकोच नहीं करते. मगर क्या बच्चे, अपने मां बाप के समझौते की कीमत समझ रहे हैं? आपको हैरानी हो रही होगी कि इसपर बात करने का मकसद क्या है. आइये हम आपको इसे इत्मीनान से समझाते हैं.


सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा


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दरअसल इस सर्वे की पीछे की वजह तीसरी, पांचवी, आठवीं और दसवीं क्लास के बच्चों और शिक्षकों के पढ़ने-पढ़ाने और सीखने और सिखाने की क्षमता समेत स्कूल की शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन करना था. इस शिक्षा सर्वे में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के 1,18,274 स्कूलों के 34,01,158 लाख छात्रों और 5,26,824 टीचर्स को शामिल किया गया. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग की तरफ से देश भर के स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई को लेकर एक सर्वे किया गया. जिसे नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 कहते हैं. मगर इस सर्वे के परिणाम ने हम सभी को चिंता में डाल दिया. नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 के मुताबिक आपका बच्चा जैसे-जैसे कक्षा की सीढ़ी पार करता है, उसकी परफॉर्मेंस बिगड़ती जाती है.


मैथ्स में पिछड़ रहे बच्चे


बीते साल यानी 2021 नवंबर में किए गए इस नेशनल सर्वे में तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं क्लास के बच्चों को लेकर किया गया. सर्वे के नतीजे के मुताबिक छात्रों की एवरेज परफार्मेंस लगातार बिगड़ती चली गई. तीसरी क्लास के जिस बच्चे की लर्निंग स्किल दसवीं तक पहुंचते काफी घट चुकी थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी सर्वे के नतीजे सभी पेरेंट्स और टीचर के लिए चिंता का विषय है. इस सर्वे को आसान भाषा में समझें. मान लीजिए जिस बच्चे की तीसरी क्लास के मैथ्स में एवरेज नंबर 57 प्रतिशत था वो पांचवीं में 44 प्रतिशत, आठवीं में 36 प्रतिशत तो दसवीं में 32 प्रतिशत तक घटता चला गया. वहीं साल 2017 में कराए गए राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के मुकाबले 2021 के सर्वे में बच्चों का प्रदर्शन ज्यादा निराशाजनक है. आपको बता दें कि जहां मैथ्स का एवरेज स्कोर 2017 में 64 फीसदी था, अब वो घटकर महज 57 फीसदी रह गया है.


कोरोना महामारी कितना बड़ा फैक्टर?  


सर्वे के मुताबिक स्कूल में पढ़ने वाले 25 फीसदी बच्चों के मुताबिक कोरोना के दौरान पढ़ाई में उन्हें पेरेंट्स से सहायता नहीं मिली. वहीं, 24 फीसदी बच्चों के घर पर डिजिटल डिवाइस की सुविधा नहीं है. जो कि कोविड के दौरान उनके लिए सबसे बड़ा नुकसान साबित हुआ. 38 फीसदी बच्चों ने माना कि कोविड महामारी के दौरान पढ़ाई में उन्हें काफी मुश्किलें हुईं. वहीं, 80 फीसदी बच्चों के मुताबिक स्कूल में दोस्तों से मिलने वाली मदद के चलते चीजों को बहुत बेहतर तरीके से सीख पाए.


सर्वे में पंजाब का प्रदर्शन अच्छा


आपको बता दें कि इस सर्वे में पंजाब का प्रदर्शन उभर कर सामने आया है. वहां के 97 प्रतिशत टीचर्स ने अपनी जॉब को लेकर संतुष्टि जताई. यहां, दसवीं क्लास का एवरेज 46 पर्सेंट है. जबकि वहीं नेशनल एवरेज 35 पर्सेंट है.


लड़कों को पछाड़ लड़कियां निकलीं आगे


लड़कियों को लेकर पिछड़ी धारणा रखने वालों की आंखें इस सर्वे के परिणाम से खुल जाएंगी. सर्वे के लगभग सभी स्तर पर लड़कियां, लड़कों से बहुत आगे हैं. इंग्लिश और साइंस जैसे सब्जेक्ट में उन्होंने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है. जहां तीसरी क्लास की भाषा परीक्षा में लड़कियों के राष्ट्रीय औसत अंक 323 तो वहीं लड़कों के 318 थे. 10वीं क्लास के इंग्लिश में लड़कियों के औसत अंक 294 और वहीं लड़कों के 288 अंक ही रहे.


शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई का अंतर हुआ कम


सर्वे के नतीजों के मुताबिक 2021 में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच जो पढ़ाई का अंतर पहले बहुत ज्यादा हुआ करता था, अब वो कम हुआ है. मगर चिंता का विषय यह है कि इंग्लिश में गांव के बच्चों का प्रदर्शन शहर की तुलना में अभी भी कमजोर ही है.


और क्या कुछ रहा सर्वे का नतीजा?


सर्वे के हिसाब से स्कूल जाने वाले 18 फीसद बच्चों की मांओं की साक्षरता न के बराबर है. वहीं, 7 फीसदी की मां साक्षर तो हैं मगर कभी स्कूल नहीं गईं. सर्वे में 96 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना पसंद करने की बात कही, वहीं 94 फीसदी बच्चों ने बताया कि वो खुद को स्कूल में सुरक्षित महसूस करते हैं. 89 फीसदी बच्चे स्कूल में पढ़ाये गए सिलेबस को अपने गार्जियन के साथ साझा करते हैं. वहीं, 78 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिनके घर पर बोली जाने वाली भाषा स्कूल से मिलती जुलती है.


पैदल स्कूल जाते हैं देश में 48 प्रतिशत बच्चे


सर्वे के मुताबिक देश में 48 फीसदी बच्चे स्कूल पैदल ही जाते हैं. वहीं, 18 फीसदी बच्चे साइकिल से, 9 फीसदी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से, 9 फीसदी स्कूल की गाड़ी से, 8 फीसदी अपने टू व्हीलर से और 3 फीसदी अपने फोर व्हीलर से स्कूल जाते हैं.



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