DNA Analysis: NIA ने बाटला हाउस से पकड़ा ISIS का संदिग्ध आतंकी, नेता फिर खेलने लगे `विक्टिम कार्ड`!
ISIS operative arrest from Batla House: NIA ने दिल्ली के बाटला हाउस इलाके से ISIS का एक संदिग्ध आतंकी पकड़ा है. उस पर देश में जिहादी विचारधारा फैलाने का आरोप है. उसकी गिरफ्तारी के बाद से AAP नेता अमानतुल्लाह खान इसके विरोध में आ गए हैं.
ISIS operative arrest from Batla House: हमारे देश में कई ऐसे नेता हैं जो अक्सर किसी ना किसी बात पर आपको रोते हुए मिलेंगे. सबसे खास बात ये है कि इनके आंसू भी बड़े सेलेक्टिव होते हैं. जब एक खास धर्म के व्यक्ति पर सवाल उठते हैं, तभी इन नेताओं को रोना आता है. फिर इसमें इन्हें सच या झूठ से कोई मतलब नहीं होता. इन्हें सही या गलत में अंतर भी समझ नहीं आता. ऐसे नेताओं का विक्टिम कार्ड एक धर्म तक सीमित होता है, तो फिर इसमें उन्हें किसी पर भी सवाल खड़े करने में परहेज नहीं होता.
अपने वोट बैंक को एड्रेस करने के लिये ये नेता देश के संविधान पर, सिस्टम पर, क़ायदे-क़ानून सब पर उंगलियां उठाते हैं. इसके अलावा इन नेताओं में आप एक और विशेषता देखेंगे. वो ऐसे कि ये किसी मामले में जांच एजेंसी के जांच करने से पहले, कोर्ट या जज के फ़ैसला सुनाने से पहले खुद ही फैसला सुनाने लगते हैं.
बाटला हाउस इलाके से संदिग्ध आतंकी गिरफ्तार
राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA ने दिल्ली के बाटला हाउस इलाके (Batla House) से ISIS के एक संदिग्ध आतंकी मोहसिन अहमद को गिरफ्तार किया था. सोमवार को मोहसिन अहमद को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जिसके बाद कोर्ट ने उसे 16 अगस्त तक NIA रिमांड पर दे दिया. यानी 10 दिन NIA उससे पूछताछ करके उसकी साजिश का पता लगाएगी. ये पता लगाएगी कि उसकी साजिश के तार कहां तक हैं और इसमें कौन-कौन लोग शामिल हैं.
मोहसिन अहमद पर क्या आरोप हैं और उसकी गिरफ्तारी क्या मायने रखती है, ये भी हम आपको बताएंगे. लेकिन उससे पहले आप उस राजनीति के लक्षण देखिये, जिसकी हम अभी बात कर रहे थे. चूंकि ISIS के इस संदिग्ध आतंकी को दिल्ली के बाटला हाउस से गिरफ्तार किया गया. इस पूरे इलाक़े में एक खास धर्म के वोटर ज्यादा हैं, इसलिये दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान (Amanatullah Khan) तुरंत एक्टिव हो गए. अमानतुल्लाह खान ने ना तो आरोपों की गंभीरता समझने की कोशिश की, ना ये देखा कि जिसने मोहसिन को गिरफ्तार किया है, वो देश की राष्ट्रीय जांच एजेंसी है.
विधायक अमानतुल्लाह खान ने शुरु किया विक्टिम कार्ड
अमानतुल्लाह खान ने तुरंत निष्कर्ष निकाल लिया कि मोहसिन को सिर्फ मुसलमान होने के कारण गिरफ्तार किया गया है. बाटला हाउस क्योंकि मुस्लिम बहुल इलाक़ा है, इसलिये वहां से गिरफ्तारी की गई है. हम आपको मोहसिन पर लगे आरोप बताएंगे. पहले अमानतुल्ला खान को सुनें कि उन्होंने क्या कहा. उन्होंने ट्वीट कर आरोप लगाया, 'NIA द्वारा जामिया के छात्र मोहसिन की गिरफ्तारी सरासर गलत और असंवैधानिक है. भाजपा और RSS वालों ने ISIS के नाम पर मुसलमानों को बदनाम और परेशान करने का नया तरीका निकाला है. मोहसिन बेकसूर है और उसका किसी भी असामाजिक तत्व के साथ कोई सम्बंध नहीं रहा है. मोहसिन को जल्द रिहा किया जाए.'
दरअसल NIA की सोशल मीडिया सेल ने जून में कुछ सोशल मीडिया साइट्स को सर्विलांस पर लिया था. इन सोशल साइट्स की गतिविधियां संदिग्ध थीं. लंबी निगरानी के बाद ये पाया गया कि इन सोशल साइट्स के जरिए युवाओं को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है और आतंकी गतिविधियों के लिये उकसाया जा रहा है. 25 जून को NIA ने खुद इस मामले में FIR दर्ज की. इसके बाद 31 जुलाई को 6 राज्यों में ISIS से जुड़े संदिग्ध लोगों और उनके 13 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की.
NIA ने कई शहरों में की थी छापेमारी
मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और यूपी के देवबंद में इन छापों के बाद NIA का शक और पुख्ता हुआ कि देश में ISIS का एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है. इन छापों में NIA ने कई संवेदनशील आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए थे. इस कार्रवाई से जो लीड मिली, उसी के बाद 6 अगस्त को NIA की टीम दिल्ली के बाटला हाउस में जापानी गली पहुंची, जहां से मोहसिन अहमद को गिरफ्तार किया गया.
मूल रूप से पटना के रहने वाले मोहसिन ने राजस्थान के कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी की थी और तीन महीने पहले ही उसने दिल्ली आकर जामिया यूनिवर्सिटी में बीटेक-फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था. मोहसिन बाटला हाउस के एक मकान में किराये पर रह रहा था.
NIA ने मोहसिन के लैपटॉप और दो मोबाइल फोन से मिले कई ई-मेल का ब्योरा भी कोर्ट में रखा. NIA ने कई वीडियो और दस्तावेज़ों का भी ज़िक्र किया, जो उसके मुताबिक़ मोहसिन पर ISIS का आतंकी होने और देश के खिलाफ़ काम करने का शक करने के लिये काफी हैं. आपको बताते हैं NIA ने कोर्ट से मोहसिन की रिमांड मांगते वक्त जो आरोप उसपर लगाए, वो कितने गंभीर हैं. NIA के मुताबिक मोहसिन ISIS का एक्टिव मेंबर है और भारत में नेटवर्क चला रहा था.
ISIS के लिए काम कर रहा था मोहसिन
मोहसिन और उसके साथी सोशल मीडिया पर ISIS का कैंपेन चलाते थे. मोहसिन का मुख्य काम युवाओं को भड़काकर उन्हें ISIS से जोड़ना था. वह सीरिया में सक्रिय ISIS संगठन के भी लगातार संपर्क में था. वह भारत के अंदर ISIS समर्थकों से फंड भी इकट्ठा कर रहा था. फंड इकट्ठा करने के बाद वो उसे क्रिप्टोकरेंसी के जरिये सीरिया भेजता था. मोहसिन अहमद पाकिस्तान और मालदीव में भी कुछ लोगों के संपर्क में था.
NIA ने ये भी बताया कि मोहसिन यूनिवर्सिटी में अपने साथियों को ISIS के वीडियो और ऑडियो मैसेज फॉरवर्ड करता था. इसके अलावा ISIS से जुड़ी खबरें भी अक्सर शेयर किया करता था.
13 जुलाई की छापेमारी के बाद NIA ने तमिलनाडु में एक प्राइवेट कॉलेज के इंजीनियरिंग छात्र अनस अली को गिरफ्तार किया था. इस मामले में ये पहली गिरफ्तारी थी. NIA के सूत्रों से इस नेटवर्क में एक महिला के होने का भी पता चला है. बताया जा रहा है कि मोहसिन को ISIS के नेटवर्क से जोड़ने में इस महिला की अहम भूमिका है.
दक्षिण भारत की महिला लंबे समय से रडार पर
दक्षिण भारत की ये महिला लंबे समय से खुफिया एजेंसियों के रडार पर है. इस महिला का पति भी संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त होने की वजह से इस वक्त जेल में है. ये महिला लंबे समय से भारत में ISIS के लिये भर्तियां कर रही है. ISIS की भर्ती में ऐसे लोग चुने जा रहे हैं जो तकनीकी तौर पर मजबूत हैं.
NIA सूत्रों के मुताबिक ISIS सुनियोजित ढंग से ऐसे युवाओं को अपने साथ जोड़ रहा है जो तकनीकी तौर पर मजबूत हैं ताकि वो उनकी काबिलियत का फायदा उठाकर सोशल मीडिया पर अपना एजेंडा आगे बढ़ा सके और हाईटेक रास्तों से जांच एजेंसियों को चकमा देकर सीरिया में ISIS तक फंड इकट्ठा करके पहुंचा सके. मोहसिन अहमद को भी इस काम के लिये चुना गया था, साथ में उसे दूसरों को भी नेटवर्क से जोड़ने का टारगेट दिया गया था.
तो ये वो तथ्य और वो जानकारियां हैं जो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने अभी तक अदालत के सामने रखी हैं. जांच एजेंसी ने मोहसिन अहमद को आतंकी नहीं कहा है, बल्कि उसके आतंकी होने का शक जताया है. क्योंकि वो आतंकी है या नहीं, इस नतीजे पर पहुंचना जांच एजेंसी का काम भी नहीं है. उसका काम सिर्फ जांच करना और उससे जुड़े तथ्य अदालत के सामने रखना है. मोहसिन आतंकी है या नहीं, उसका कोई काम देशविरोधी है या नहीं, इसका फ़ैसला अदालत को करना है. इस लिहाज़ से जांच एजेंसी ने अपना काम पूरा किया. अब इसे परखना और इसमें सही-गलत का पता लगाने की ड्यूटी न्यायपालिका की है. सब के अपने-अपने काम तय हैं.
बिना जांच के अपना फैसला दे रहे नेता
लेकिन जैसा हमने शुरू में ज़िक्र किया था. देश में नेताओं की एक विशेष प्रजाति है जो पूरे सिस्टम को जानते- समझते हुए भी इसके खिलाफ़ खड़ी हो जाती है, क्योंकि उसके लिये वोट सबसे अहम है. लोकतंत्र, संविधान, न्यायपालिका. ये वो शब्द हैं जो आप इन नेताओं के मुंह से अक्सर सुनते होंगे. ये बात-बात पर लोकतंत्र की दुहाई देते हैं. इन्हें आप अक्सर कहते सुनेंगे कि उन्हें न्याय तंत्र पर पूरा भरोसा है और उनकी न्यायपालिका में पूरी आस्था है. लेकिन जैसे ही मोहसिन जैसा कोई मामला सामने आता है तो ये नेता अपने वोट बैंक को साधने के लिये आरोपी के आंसू पोंछने लगते हैं और खुद आंसू बहाने लगते हैं.
अपने वोट बैंक की हमदर्दी पाने के लिये ये नेता पूरी न्याय व्यवस्था को खारिज करने लगते हैं. संविधान पर अविश्वास जताने लगते हैं. विक्टम कार्ड खेलने लगते हैं. ये लोग खुलकर अपराधियों का बचाव करने लगते हैं, आतंकियों की पैरवी करने लगते हैं. और तो और किसी आतंकी की फांसी रुकवाने के लिये आधी रात को अदालत के दरवाजे खुलवाने पहुंच जाते हैं.
हर सरकारी काम में मजहब कार्ड खेलने में आगे
आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान (Amanatullah Khan) ने अदालत से पहले ही अपना फ़ैसला सुना दिया. वो जांच से पहले ही इस नतीजे पर पहुंच गए कि मोहसिन को सिर्फ मुसलमान होने की वजह से फंसाया जा रहा है. अमानतुल्लाह जांच एजेंसी से भी तेज़ निकल गए और उन्होंने क्लीनचिट दे डाली कि मोहसिन का किसी भी असामाजिक तत्व से कोई संबंध नहीं है.
कुछ दिन पहले जब दिल्ली में नगर निगम ने अतिक्रमण के खिलाफ़ कार्रवाई शुरू की थी, तब भी अमानतुल्लाह खान विक्टिम कार्ड खेलने पहुंच गये थे. जब तक नगर निगम का बुलडोजर दिल्ली के दूसरे इलाकों में चला, तब तक उन्हें कष्ट नहीं हुआ. लेकिन जैसे ही बुलडोज़र शाहीन बाग पहुंचा तो वो बुलडोज़र के आगे बैठ गये और आरोप लगाया कि मुसमलानों को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बुलडोजर इसलिये चलाया जा रहा है क्योंकि शाहीन बाग में मुसलमान बहुसंख्यक हैं.
यहां आपको राजनीति के बाटला हाउस (Batla House) पैटर्न को भी समझना चाहिये. दरअसल सोमवार को जो कुछ भी अमानतुल्लाह खान ने किया और कहा, वो उन्होंने देश के ही कुछ बड़े नेताओं से सीखा हुआ है. इसके लिये हम आपको 14 साल फ्लैशबैक में ले जाएंगे.
दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद हैं पुराने खिलाड़ी
आपको याद होगा कि 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में 4 जगह सीरियल बम धमाके हुए थे जिनमें 26 लोगों की मौत हुई थी और 133 लोग घायल हुए थे. ये प्रतिबंधित संगठन इंडियन मुजाहिदीन का काम था. इन धमाकों के बाद आतंकी जामिया नगर के बाटला हाउस में जाकर छिप गये थे. खुफिया सूचना के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस ने बाटला हाउस के मकान नंबर L-18 की घेराबंदी की थी. यहां आतंकियों से सीधी मुठभेड़ हुई जिसमें 2 आतंकी मारे गये, 1 गिरफ्तार कर लिया गया, और 2 आतंकी फ़रार हो गये थे. इस एनकाउंटर में आतंकियों की गोली से दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हो गये थे.
ये विशुद्ध रूप से आतंकी घटना थी. आतंकियों ने दिल्ली में बम धमाकों से आम लोगों की जान ली थी. ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला था. पुलिस ने 4 दिन के भीतर मुख्य आतंकियों का एनकाउंटर किया. अपने जांबाज़ अफसर की शहादत भी दी. लेकिन बजाए पुलिस की वीरता को सलाम करने के लिये कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से जुड़े कई नेताओं ने एनकाउंटर पर ही सवाल खड़े कर दिये. पूरे एनकाउंटर को फर्ज़ी करार दे दिया. यहां तक कि आंसू भी बहा दिया. किसलिये? सिर्फ़ वोट बैंक के लिये. इन नेताओं को आतंकियों में आतंकी नहीं, बल्कि एक मुसलमान दिखा. उन्हें बाटला हाउस में आम लोग नहीं बल्कि एक समुदाय विशेष का थोक में वोट बैंक दिखा. सिर्फ़ इसी के लिये पूरे एनकाउंटर पर सवाल उठा दिये गये और इसके लिये सहानुभूति के आंसू बहाए गए.
बाटला हाउस एनकाउंटर को बताया था फर्जी
एनकाउंटर के सिर्फ़ दो दिन बाद ही कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने इस पर सवाल खड़े कर दिए थे. उन्होंने कहा था कि... ये एनकाउंटर Fake है और आतंकवादियों के सिर में लगी गोलियों से साफ है कि इसे Encounter की तरह दिखाने की कोशिश हुई है. तब दिग्विजय सिंह ने इसकी न्यायिक जांच की भी मांग की थी.
वर्ष 2012, 2013 और 2016 में दिए अपने बयानों में उन्होंने यही बातें फिर से दोहराईं और बाटला हाउस (Batla House) एनकाउंटर को Fake बताया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि National Human Rights Commission ने 2009 में ही इस एनकाउंटर के Fake होने के दावों को खारिज कर दिया था. इसी रिपोर्ट को बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी एकदम सही ठहराया था.
इस राजनीति को आगे बढ़ाने वाले दूसरे नेता हैं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, जिन्होंने वर्ष 2012 में ये कहा था कि एनकाउंटर के बाद की तस्वीरें देख कर सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए थे. तब उन्होंने ये भी कहा था कि सोनिया गांधी ने इस मामले में जांच के लिए उनसे कहा था.
ममता बनर्जी और केजरीवाल ने भी लगाए थे आरोप
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उस समय दिल्ली पुलिस पर कई गम्भीर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने कहा था कि ये Fake Encounter है. अगर वो गलत साबित हुईं तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगी.
यहां पर अमानतुल्लाह खां (Amanatullah Khan) की पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का भी ज़िक्र करेंगे. जिन्होंने बाटला हाउस (Batla House) एनकाउंटर की जांच की मांग की थी. 2013 में दिल्ली के विधान सभा चुनाव से पहले उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को एक चिट्ठी लिख कर ये भी कहा था कि वो इस मामले में जांच की मांग का समर्थन करते हैं.
पिछले वर्ष यानी 2021 में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने भी बाटला हाउस (Batla House) एनकाउंटर के सच पर मुहर लगा दी थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये एनकाउंटर FAKE नहीं था. यानी जो आरोप लगाए गये वो राजनीति से प्रेरित थे. दूसरा ये कि दिल्ली स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा को एनकाउंटर के दौरान आतंकवादियों ने गोलियां मारी थी. और तीसरा सबसे अहम कि बाटला हाउस में छिपे लोग मासूम लड़के या छात्र नहीं थे, वो आतंकवादी ही थे.
कोर्ट सुना चुकी है अपना फैसला
तो आप समझ सकते हैं कि जब एक नहीं, कई-कई अदालतों ने अपना फ़ैसला दे दिया. और ये साफ कर दिया कि देश की न्यायपालिका एक बेगुनाह और एक आतंकी के बीच अंतर करने में सक्षम है, तब भी हमारे नेताओं का एक वर्ग सिर्फ़ तुष्टिकरण की राजनीति के लिये खुद फ़ैसले देने लगता है. खुद जज बन जाता है. ये नेता अपराधियों का और आतंकियों का धर्म देखकर जजमेंट देने लगते हैं. इस पर विक्टिम कार्ड खेलते हैं और वोट की सुविधानुसार आंसू बहाने लगते हैं. ये ट्रेंड कल भी ग़लत था और ये ट्रेंड देश के लिये आज भी ठीक नहीं है.
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