UCC: जमीयत ने कहा, ‘समान नागरिक संहिता मुस्लिमों को स्वीकार्य नहीं, देश की एकता के लिए है हानिकारक’
Uniform Civil Code: जमीयत-ए-उलेमा हिंद ने विधि आयोग को भेजी गई आपत्तियों में यह भी कहा है कि यूसीसी पर सभी धार्मिक और सामाजिक समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए तथा सुझाव आमंत्रित किए जाने की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए.
Uniform Civil Code News: देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत-ए-उलेमा हिंद ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से जुड़ी कवायद पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इसे लागू करने की मांग नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का एक सोचा समझा प्रयास है.
मौलाना अरशद मदनी के नेतृत्व वाले जमीयत ने विधि आयोग को भेजी गई आपत्तियों में यह भी कहा है कि समान नागरिक संहिता पर सभी धार्मिक और सामाजिक समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए तथा सुझाव आमंत्रित किए जाने की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए.
‘मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं’
जमीयत ने कहा कि समान नागरिक संहिता देश के मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है.
जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ‘समान नागरिक संहिता के संबंध में सरकार को सभी धर्मों, सामाजिक और आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरा करना चाहिए और उन्हें विश्वास में लेना चाहिए. यही लोकतंत्र की मांग है.’
‘राजनीतिक साजिश का हिस्सा’
संगठन ने अपनी आपत्तियों में कहा, ‘समान नागरिक संहिता पर दोबारा बहस शुरू करने को हम राजनीतिक साजिश का हिस्सा मानते हैं. यह मुद्दा सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं, बल्कि सभी भारतीयों का है.’
संगठन ने कहा, ‘पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है, जिसमें संशोधन नहीं किया जा सकता. यह कहकर हम कोई असंवैधानिक बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुच्छेद 25 ने हमें ऐसा करने की आजादी दी है.’
जमीयत ने आरोप लगाया, ‘समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के एक सोचे समझे प्रयास के अतिरिक्त कुछ और नहीं है.’
मदनी ने कहा, ‘कोई भी फैसला नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए, बल्कि कोई भी फैसला लेने से पहले आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि फैसला सभी को स्वीकार्य हो.’
(इनपुट- न्यूज एजेंसी: भाषा)