जमीयत ने EC से की अपील, अलीगढ़ में प्रस्तावित ‘धर्म संसद’ पर लगाई जाए रोक
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अगले सप्ताह प्रस्तावित ‘धर्म संसद’ पर रोक के लिए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है. जमीयत ने इस आयोजन को चुनाव से जोड़ते हुए कहा है कि ‘धर्म संसद’ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
नई दिल्ली: देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने गुरुवार को निर्वाचन आयोग (Election Commission) को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अगले सप्ताह प्रस्तावित ‘धर्म संसद’ (Dharam Sansad) पर रोक लगाने की मांग की है. संगठन का कहना है कि इस आयोजन का मकसद चुनावों के सांप्रदायिक आरोप-प्रत्यारोप को सार्वजनिक विमर्श में लाना है, इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. संगठन द्वारा जारी बयान के मुताबिक, जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी की ओर से आयोग के समक्ष ऑनलाइन प्रतिवेदन देकर इस आयोजन पर रोक लगाने की मांग की गई है.
जिलाधिकारी से भी किया आग्रह
जमीयत का कहना है कि उसने अलीगढ़ के जिला अधिकारी से भी ‘धर्म संसद’ पर आग्रह का किया है. इस मुस्लिम संगठन ने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख भी किया कि पिछले दिनों हरिद्वार में हुई ‘धर्म संसद’ में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है. उसने कहा कि विधानसभा चुनावों के समय ऐसे आयोजनों पर रोक लगाई जानी चाहिए.
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22-23 जनवरी को होनी है धर्म संसद
‘सनातन हिंदू सेवा संस्थान’ ने आगामी 22-23 जनवरी को अलीगढ़ के नौरंगाबाद स्थित सनातन भवन में ‘सनातन धर्म संसद’ के आयोजन का ऐलान किया है. हालांकि, जिला प्रशासन ने ऐसे किसी भी कार्यक्रम की जानकारी होने से इनकार किया है. हरिद्वार में पिछले साल 17 से 19 दिसंबर के बीच आयोजित धर्म संसद में वक्ताओं ने खुले मंच से कथित तौर पर नफरत भरा भाषण दिया था, जिसको लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ था.
Court ने मांगा था जवाब
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र, दिल्ली पुलिस और उत्तराखंड पुलिस से उस याचिका पर जवाब देने को कहा था, जिसमें हाल में हरिद्वार और राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित दो कार्यक्रमों के दौरान कथित रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता इस तरह की घटनाओं के संबंध में संबंधित स्थानीय अधिकारियों को एक प्रतिवेदन देने के लिए स्वतंत्र हैं.
इनपुट: पीटीआई