Maa Vaishno Devi seat: मां वैष्णो देवी का दरबार सजा है. मान्यता है कि माता रानी सबकी मुरादें पूरी करती हैं. यही वजह है कि लोग यहां 'रोते-रोते आते हैं...हंसते हंसते जाते हैं'. भवन में श्रद्धालु 'जय माता दी' कहते-कहते, महामाई का गुणगान करते हुए आते जाते हैं. जम्मू-कश्मीर में चुनावी सीजन (Jammu Kashmir Elections) चल रहा है. इसलिए यहां आस्था और सियासत दोनों का संगम दिख रहा है. बीजेपी (BJP) के विरोधियों का कहना है कि भगवान, भाजपा वालों से नाराज हैं. इसलिए रामनगरी अयोध्या में कमल छाप वाले हार गए. अब सवाल उठ रहा है कि क्या जहां पर वैष्णो देवी माता का दरबार सजा है, उस विधानसभा सीट पर क्या माता रानी बीजेपी की झोली भरेगी? क्या 10 साल बाद राज्य में होने जा रहे चुनावों में मातारानी बीजेपी पर कृपा करेगी.


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मंदिर की राजनीति बीजेपी के लिए लकी?


जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हो रहे हैं. परिसीमन के बाद कई सीटों पर समीकरण बदल गए हैं. मंदिरों जाना और उपासना करना यूं तो व्यक्तिगत आस्था का विषय होता है. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो करीब-करीब सभी दलों के नेता मंदिरों की परिक्रमा करके जीत का आशीर्वाद मांगते हैं. ऐसे में बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के लिए मंदिर का मुद्दा हमेशा से ही महत्वपूर्ण और कई मायनों में 'गुडलक' से भी जुड़ा है. साल 2014 में बीजेपी के तत्कालीन PM पद के कैंडिडेट ने लोकसभा चुनाव कैंपेन की शुरुआत से पहले मातारानी के मंदिर में माथा टेक कर की थी.


कहीं अयोध्‍या की राह पर तो नहीं जा रही वैष्‍णो देवी सीट?


जम्मू-कश्मीर चुनाव के दूसरे चरण की हॉ़ट सीट माता वैष्णो देवी कटरा सीट थी. 


विधानसभा चुनावों की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर के दो अलग अलग दौरों  एक रियासी जिले की श्री माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट के कटरा शहर से राज्य के लोगों को  खुला संदेश दे चुके हैं. 19 सितंबर को, पीएम मोदी ने कटरा में एक रैली और रोड शो किया था. गौरतलब है कि कटरा, वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए बेस कैंप है. पीएम मोदी ने उस रैली में कहा था - 'जम्मू-कश्मीर में एक ऐसी सरकार की जरूरत है, जो हमारी आस्था का सम्मान करे और हमारी संस्कृति को बढ़ावा दे.'


उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा था- 'कांग्रेस चंद वोटों के लिए कभी भी हमारी आस्था और संस्कृति दांव पर लगा सकती है. उन्होंने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा, कांग्रेस के वारिस ने विदेश जाकर कहा कि हमारे ‘देवी-देवता’ भगवान नहीं हैं. यह हमारी आस्था का अपमान है. कांग्रेस को इसके लिए दंडित किया जाना चाहिए'. वे यह सब सिर्फ कहने के लिए या गलती से नहीं कहते हैं. यह एक सुनियोजित साजिश है. यह एक नक्सली मानसिकता है जो दूसरे धर्मों और दूसरे देशों से आयातित है. कांग्रेस की इस नक्सली मानसिकता ने जम्मू की डोगरा संस्कृति का अपमान किया है.


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धाम वाली सीट का सियासी गुणागणित


सियासी गुणागणति की बात करें तो इस बार, जहां माता रानी का दरबार सजा है उस क्षेत्र की विधानसभा सीट का महत्व दोगुना हो गया है. परिसीमन के बाद पहली बार श्री माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट अस्तित्व में आई है. पहले ये क्षेत्र रियासी विधानसभा में आता था. 2014 के चुनाव में यहां पर बीजेपी को जीत मिली थी. अब वैष्णो देवी बचाना पार्टी के लिए जैसे चुनौती बन गया है. यहां दूसरे चरण में वोटिंग हो चुकी है. जिसके बाद सीट के संभावित नतीजों की चर्चा का बाजार गर्म है. पक्ष हो या विपक्ष सभी के लोग यहां के नतीजों की तुलना रामनगरी अयोध्या के लोकसभा चुनावों से करने को बेताब दिख रहे हैं. 


गौरतलब है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में यूपी की फैजाबाद संसदीय सीट, जहां राम मंदिर के उद्घाटन को देश का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन बनाकर देशभर के लोगों को एकजुट किया बीजेपी वहीं चुनाव हार गई. सिर्फ वही सीट नहीं राम का नाम लगी एक महाराष्ट्र की रामटेक लोकसभा सीट भी बीजेपी हार गई. उत्तराखंड के बद्रीनाथ में भी बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. इन सीटों के हारने के बाद, विरोधियों को बीजेपी को घेरने का मौका मिल गया. वो धार्मिक महत्व वाली सीटों पर बीजेपी की हार को लेकर उस पर तंज कस रहे हैं. इसलिए तानों से बचने के लिए बीजेपी ने 'श्री माता वैष्णो देवी सीट पर पूरी ताकत झोंक दी है. बीजेपी का नेता छोटा हो या बड़ा किसी ने किसी भी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी है.


'बारीदर' की बगावत


इस सीट का एनलिसिस करें तो माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट के लिए सभी पार्टी के मिलाकर कुल सात उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं. यहां बीजेपी का मुकाबला आसान नहीं होगा. बीजेपी के लिए ये सीट निकालना मुश्किल दिख रहा है. यहां बीजेपी (BJP) कैंडिडेट बलदेव राज शर्मा, (रियासी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक) को बहुकोणीय मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है.


इस सीट पर बीजेपी का सबसे बड़ा सिरदर्द वैष्णो देवी मंदिर के पूर्व संरक्षक बारीदर साबित हो सकते हैं. पहले भाजपा का समर्थन करने वाले समुदाय ने इस बार अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा दिया है. अगर उनके कैंडिडेट को हिंदुओं के 14000 वोट भी मिल जाते हैं, तो वो बीजेपी को यहां तगड़ी चोट पहुंचाकर बड़ा सियासी डेंट लगा सकते हैं.


पीढ़ियों से वैष्णो देवी मंदिर में आरती-पूजा अर्चना करने वाले बारीदर, अपने अधिकारों की बहाली और श्राइन बोर्ड में अपने परिवार के सदस्यों के लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं. इस समुदाय के लोग अपनी समस्याओं का स्थायी समाधान मिलने में हुई देरी को 2014 में नरेंद्र मोदी का वादा पूरा न किए जाने से जोड़ रहे हैं.   


यहां कांग्रेस कांग्रेस कैंडिडेट भूपेंद्र सिंह बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. सिंह कटरा और वैष्णो देवी मंदिर के बीच ट्रैक पर काम करने वाले पोनीवालों और पिट्ठुओं के संगठन की कमान संभाल चुके हैं. उस आधार पर वो यहां के मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद कर रहे हैं.


तीसरी बड़ी चुनौती पूर्व मंत्री जुगल किशोर हैं, जो कांग्रेस छोड़कर गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी में चले गए थे, वो निर्दलीय लड़े, उन्होंने किसके वोटों में सेंध लगाई ये देखना दिलचस्प होगा. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बीजेपी कैंडिडेट अपनी जीत का जो दावा कर रहे हैं, वो जनता की कसौटी पर खरा उतरेगा या नहीं.