Jammu Kashmir Assembly Election in Hindi: जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद असेंबली चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियो में उठापटक का दौर शुरू हो गया है. महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) भी इससे अछूती नहीं है. असेंबली चुनाव से पहले ही कई नेता और कार्यकर्ता पीडीपी छोड़कर आवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) में शामिल होने लगे हैं. पीडीपी के एक नेता ने बताया कि पार्टी की हालिया एरिया इंचार्ज की सूची ने इस राजनीतिक बदलाव को और बढ़ा दिया है, जिससे व्यापक असंतोष पैदा हुआ है.


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दक्षिण कश्मीर बन रहा विद्रोह का क्षेत्र


दक्षिण कश्मीर क्षेत्र, जिसमें अनंतनाग, पुलवामा और शोपियां शामिल हैं, इस विद्रोह का केंद्र बन रहा है. सूत्रों के मुताबिक, ये सब तब शुरू हुआ, जब महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में पीडीपी नेतृत्व ने कई प्रमुख पूर्व विधायकों और जिला विकास परिषद (डीडीसी) के सदस्यों को विधानसभा टिकट देने से इनकार कर दिया. सोमवार और मंगलवार को जारी की गई तीन निर्वाचन क्षेत्र इंचार्ज सूचियों ने इस निराशा को और बढ़ा दिया है, जिससे पीडीपी के कई प्रमुख सदस्य पार्टी छोड़कर चले गए हैं.


पार्टी छोड़ कर जाने वालों में पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुहैल बुखारी, वाची से पूर्व विधायक एजाज मीर, त्राल से डॉ. हरबख्श सिंह और 12 से अधिक डीडीसी सदस्यों सहित दर्जनों अन्य शामिल हैं. डॉ. हरबख्श सिंह, काकपोरा (पंपोर) से अब्दुल कयूम मीर, त्राल से एडवोकेट जीएन शाहीन और डॉ. एआर खादिम आज श्रीनगर में इंजीनियर राशिद के नेतृत्व वाली एआईपी में शामिल हुए. उनका जाना पीडीपी के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर दक्षिण कश्मीर में, जहां पार्टी को हमेशा से मजबूत समर्थन मिला है. 


कम अनुभवी लोगों को मौका देने से निराश


पूर्व विधायक एजाज मीर ने महबूबा मुफ्ती के पूर्व पीए गुलाम मोहिद्दीन को उनकी जगह लाने के पार्टी के फैसले के बाद पीडीपी छोड़ दी. इस फैसले के कारण मीर ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ इस्तीफा दिया. मीर का जाना पीडीपी के आंतरिक फैसलों से असंतोष को दर्शाता है, जिसमें अनुभवी नेताओं की जगह कम अनुभवी लोगों को लाना भी शामिल है. 


पीडीपी के खिलाफ विद्रोह को गंदेरबल के डीडीसी सदस्य बिलाल अहमद की हताशा ने और उजागर किया है. उनकी जगह किसी और को मैदान में उतारने के पीडीपी के फैसले के बाद अहमद ने पीडीपी छोड़ दी. उनके एआईपी में शामिल होने की संभावना है. राजनीतिक गलियारों में यह उथल पुथल व्यापक बदलाव को दर्शाता है और क्षेत्र में एआईपी के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है. राजनीतिक जानकारों का माना है की आने वाले दिनों में और भी पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक और पूर्व डीडीसी सदस्य एआईपी में शामिल होने की उम्मीद है. 


राशिद की पार्टी की बढ़ रही ताकत


पीडीपी के भीतर यह उथल-पुथल पार्टी की पिछली परेशानियों की याद दिलाती है, खासकर 2020 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, जब लगभग 40 नेताओं का सामूहिक पलायन हुआ था और अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व में अपनी पार्टी का गठन हुआ था. हाल के संसदीय चुनावों ने पीडीपी की स्थिति को और कमजोर किया, जिसमें महबूबा मुफ़्ती और वहीद पारा दोनों चुनाव हार गए थे. इसके अलावा, पीडीपी के फ़ैयाज़ मीर की उत्तरी कश्मीर में जमानत ज़ब्त हो गई थी.


राजनीतिक विषेयगियों का मानना ​​है कि मौजूदा विद्रोह से पार्टी का आधार और कमज़ोर होने की संभावना है. वही एआईपी की ताक़त  लगातार बढ़ रही है, जिसने पहले ही उत्तरी कश्मीर में महत्वपूर्ण लाभ हासिल कर लिया है. हाल के लोकसभा चुनावों में इंजीनियर राशिद का मजबूत प्रदर्शन, जहां उन्होंने 4.7 लाख से ज़्यादा वोट हासिल किए और उमर अब्दुल्ला और सज्जाद गनी लोन जैसे हाई-प्रोफाइल उम्मीदवारों को हराया, एआईपी की बढ़ती प्रमुखता को दर्शाता है.


विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, पीडीपी के भीतर विद्रोह और एआईपी की बढ़ती ताक़त जम्मू कश्मीर की बदलते राजनीतिक स्थिति को दर्शाती है, जिससे जम्मू-कश्मीर में संभावित रूप से एक बदलाव देखने को मिल सकता है.