Jammu Kashmir Election: चुनाव बहिष्कार करने वाले अब चुनावी मैदान में.. कश्मीर की सियासी सोच और रुख में ऐतिहासिक बदलाव
Jammu Kashmir Election News: जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिल रहा है. लंबे समय से चुनावों का बहिष्कार करने वाले जमात-ए-इस्लामी के पूर्व सदस्यों ने अब आगामी विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेने का फैसला किया है.
Jammu Kashmir Election News: जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिल रहा है. लंबे समय से चुनावों का बहिष्कार करने वाले जमात-ए-इस्लामी के पूर्व सदस्यों ने अब आगामी विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेने का फैसला किया है. यह फैसला तब आया जब गृह मंत्रालय ने 2019 में जमात-ए-इस्लामी पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया, जिसे हाल ही में पांच और वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया. इस प्रतिबंध के चलते, जमात के नेता अब निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर में बड़ा बदलाव
जमात-ए-इस्लामी, जिसने पिछले तीन दशकों से चुनावी प्रक्रिया को लेकर विरोध का रुख अपनाया था. अब उसी प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गई है. यह बदलाव घाटी में नए राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है. जहां अब प्रतिबंधित संगठन के पूर्व सदस्य निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर रहे हैं. 18 सितंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए, जमात के तीन नेताओं ने अपने नामांकन दाखिल कर दिए हैं. जो इस नए दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हैं.
हमें कश्मीरियों के तौर पर भविष्य के बारे में सोचना होगा..
तलत मजीद, जो जमात के पूर्व सदस्य रहे हैं, ने इस बदलाव के पीछे का कारण बताते हुए कहा कि वह 2008 से राजनीति और भू-राजनीति का हिस्सा बने हैं. उनके अनुसार, “हमें कश्मीर को भू-राजनीति के चश्मे से देखने की जरूरत है और इसी तरह मेरी इसमें दिलचस्पी पैदा हुई. जमात इस्लामी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और हालात को देखते हुए, हमें कश्मीरियों के तौर पर भविष्य के बारे में सोचना होगा और इसे कैसे उज्ज्वल बनाया जाए.”
यहां बहुत अन्याय हुआ..
कुलगाम जिले के देवसर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए जमात के एक अन्य पूर्व सदस्य नजीर अहमद भट ने भी अपने नामांकन दाखिल किया है. भट का कहना है, “यहां बहुत अन्याय हुआ. पिछले साल मेरे दो भतीजों को गिरफ्तार किया गया और कई नेताओं से मदद मांगने के बावजूद किसी ने मदद नहीं की. उस समय मैंने लोगों की सेवा करने का फैसला किया.”
उमर अब्दुल्ला ने कसा तंज
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इस बदलाव पर तंज कसते हुए कहा, “अब तक चुनाव लड़ना जमात के लिए ‘हराम’ था, लेकिन अब यह ‘हलाल’ हो गया है. अगर वे चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, तो यह एक स्वागत योग्य कदम है. हम चाहते थे कि वे अपने चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ें, लेकिन प्रतिबंध के कारण ऐसा नहीं हो सका.”
कश्मीर में राजनीतिक सोच और रुख में एक बड़ा परिवर्तन
जम्मू-कश्मीर के इस विधानसभा चुनाव में कई नए और पुराने राजनीतिक दलों के साथ-साथ सैकड़ों निर्दलीय उम्मीदवार भी हिस्सा ले रहे हैं. इससे मतदाताओं के पास पहले से कहीं अधिक विकल्प हैं. सबसे बड़ा बदलाव यह है कि जिन पार्टियों और व्यक्तियों ने लंबे समय तक चुनावी प्रक्रिया में विश्वास नहीं किया था. अब वे भी चुनाव में हिस्सा लेने के लिए तैयार हैं. यह दर्शाता है कि कश्मीर में राजनीतिक सोच और रुख में एक बड़ा परिवर्तन हो रहा है.