Jarange Patil Movement for Maratha Reservation: विजयदशमी के मौके पर मंगलवार को शिवाजी पार्क में आयोजित दशहरा रैली में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की शिंदे सरकार पर बड़ा हमला बोला. उद्वव ठाकरे ने गुजरात के अहमदाबाद में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के स्वागत पर भी सवाल उठाए. उद्धव ठाकरे ने कहा कि गुजरात में नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में पाकिस्तान के क्रिकेटरों का स्वागत फूलों की वर्षा की गई. गरबा का नृत्य किया गया. ठाकरे ने कहा कि इन दृश्यों को देखने के बाद, उन्हें एक पल के लिए लगा कि पाक खिलाड़ी भाजपा में शामिल हो गए हैं क्या? वहीं दूसरी आजाद मैदान में दशहर रैली को संबोधित करते शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर पलटवार किया.


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पाटिल के बहाने शिंदे सरकार पर निशाना


इस दौरान उद्धव ठाकरे मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) को लेकर आंदोलन कर रहे जरांगे पाटिल (Jarange Patil) के बहाने शिंदे सरकार पर निशाना साधते नजर आए. उद्धव ठाकरे ने कहा, 'मैं मनोज जरांगे पाटिल का अभिनंदन करता हूं. वे सही तरीके से अपना आंदोलन कर रहे हैं. सरकार को मराठा, मुस्लिम और ओबीसी समाज को  न्याय देना ही चाहिए. हमारे नेता बालासाहेब ठाकरे का कहना था कि जातियों के तो पेट होते हैं लेकिन पेट की कोई जाति नहीं होती. ऐसे में इन सभी जातियों का पेट भरना राज्य सरकार का काम है. 


फिर भड़केगी आरक्षण आंदोलन की आग? 


राजनीतिक पंडितों के मुताबिक जरांगे पाटिल (Jarange Patil) की तलवार से उद्धव ठाकरे सोचे-समझे तरीके से एकनाथ शिंदे - फडनवीस पर वार कर रहे हैं. असल में मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) देने के लिए सरकार को 24 अक्टूबर तक का समय दिया था, जो मंगलवार को खत्म हो गया. पाटिल ने घोषणा कर रखी है कि अगर सरकार ने आरक्षण नहीं दिया तो वे 25 अक्टूबर यानी आज से अनशन शुरू कर देंगे. इस संवेदनशील मुद्दे पर शिंदे सरकार की उलझन बढ़ी हुई है. सरकार यह तो कह रही है कि हम आरक्षण देंगे लेकिन कोई भूमिका अभी तक सरकार की तरफ से साफ नहीं की गई है. ऐसे में माना जा रहा है कि मराठा आंदोलनकारी आरक्षण को लेकर आज से आंदोलन का नया चरण शुरू कर देंगे. 


मूल रूप से जिला बीड निवासी


बता दें कि 40 वर्षीय जरांगे पाटिल (Jarange Patil) मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं. आजीविका के लिए वे पहले एक होटल में काम करते थे. शुरू में वे एक कांग्रेस कार्यकर्ता थे लेकिन बाद में मराठा सशक्तिकरण के लिए अपना खुद का 'शिवबा संगठन' बना लिया. वे मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) को लेकर शुरू से मुखर रहे हैं और वर्ष 2014 से लगातार कई आंदोलन कर चुके हैं. उनके शुरुआती आंदोलन जालना में रहे हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं रही. 


आंदोलन से हिली हुई है सरकार


हालांकि इस साल जरांगे पाटिल (Jarange Patil) ने 29 अगस्त को जो भूख हड़ताल शुरू की, उसके फेवर में उमड़े जनसमर्थन से सरकार हिल गई. उनके समर्थकों और जालना पुलिस के बीच 1 सितंबर को झड़प हो गई, जिसमें कई आंदोलनकारी घायल हो गए. इससे मसला और तूल पकड़ गया और जरांगे पाटिल अपने समुदाय में एक हीरो की तरह उभरकर सामने आए. सरकार जहां उनकी मांग पर विचार का आश्वासन देते हुए आंदोलन (Maratha Reservation) खत्म करने का आग्रह कर रही है, वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार समेत कई प्रमुख विपक्षी नेता पाटिल से मिलकर उनकी हौंसलाअफजाई कर रहे हैं. 


कौन हैं मराठा?


मराठा महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली समुदाय है. इसकी तादाद राज्य में करीब 20-25 फीसदी मानी जाती है. वर्ष 1960 में नया राज्य बनने के बाद से महाराष्ट्र में अब तक हुए 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 इसी समुदाय से हुए हैं. मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे भी मराठा हैं. मराठा समुदाय का तर्क है कि वे ऊंचे वर्ग बल्कि कृषक वर्ग में आते हैं, जिन्हें महाराष्ट्र में कुनबी कहा जाता है. समुदाय के अधिकतर लोगों की आर्थिक-शैक्षिक स्थिति पिछड़ी हुई है. लिहाजा मराठा समुदाय को ओबीसी का आरक्षण (Maratha Reservation) मिलना चाहिए.


ओबीसी समाज करता रहा है विरोध


मराठा समुदाय की इस मांग का राज्य का ओबीसी समाज विरोध करता है. उनका कहना है कि प्रभावशाली मराठा समुदाय के ओबीसी लिस्ट में शामिल होने से उनका अनुपात और घट जाएगा. राज्य की पिछली फडणवीस सरकार ने इस मुद्दे पर बीच का रास्ता निकालते हुए मराठों को स्पेशल बैकवर्ड क्लास में शामिल करके 16 फीसदी आरक्षण दे दिया था, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने कम करके 13 फीसदी कर दिया था.


सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाया था फैसला


जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां पर मई 2021 में इस फैसले को रद्द घोषित कर दिया गया. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को लागू करने से 50 फीसदी की लिमिट का उल्लंघन होता है. साथ ही यह आरक्षण (Maratha Reservation) संविधान का भी उल्लंघन करता है. कोर्ट ने 50 फीसदी की सीमा को बढ़ाने की अर्जी पर भी विचार करने से इनकार कर दिया. 


अब क्या करेगी शिंदे सरकार?


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और राज्य के ओबीसी समाज के कड़े विरोध की वजह से अब महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार अपने आप को भंवर में फंसा महसूस कर रही है. वह समझ नहीं पा रही है कि इस समस्या (Maratha Reservation) का हल कैसे निकाला जाएगा. उसे डर है कि अगर वह फिर से मराठों को आरक्षण देने की घोषणा करती है तो ओबीसी समाज बिफर जाएगा. साथ ही उस पर कोर्ट की अवमानना का मामला भी बनेगा. वहीं अगर वह चुप्पी साधे बैठी रहती है तो उसे दबंग मराठा समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा.