नई दिल्ली: देश के पूर्व CJI और अयोध्या के श्रीराम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला देने वाले राज्य सभा सांसद जस्टिस रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) फिर चर्चा में हैं. इसकी वजह उनकी लिखी ऑटोबायोग्राफी 'Justice for the Judge' है. इसमें उन्होंने अयोध्या पर फैसले, न्यायपालिका, यौन शोषण और सरकार से रिश्तों के बारे में कई बातें खुलकर लिखी हैं. Zee News के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी ने जस्टिस गोगोई का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया. पेश है इंटरव्यू के मुख्य अंश: 


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सुधीर चौधरी: आप 18 साल तक माय लॉर्ड रहे और माय लॉर्ड से मिस्टर गोगोई का ये जो सफर है. अब लोग आपको मिस्टर गोगोई, सांसद गोगोई कहते हैं तो ये सफर कैसा रहा?


जस्टिस गोगोई: ये सवाल मुझसे पहली बार किसी पत्रकार ने पूछा है. वैसे सुधीर जी मैं टीवी में कम आता हूं लेकिन किताब लिखने के बाद मैंने दो-तीन टीवी इंटरव्यू दिए हैं. इसका कारण है कि मैं किताब पब्लिक डोमेन में लाया. बहुत सारी चीजें पब्लिक डोमेन में लाया और बहुतों का बहुत सवाल या प्रश्न हो सकते हैं. इसलिए आपके माध्यम से सवालों के उत्तर देना मेरा फर्ज है. लेकिन कई इंटरव्यू में शुरू करते हैं अयोध्या या राफाल, सेक्सुअल हैरेसमेंट, राज्यसभा. आप पहले हैं, जिन्होंने कहा आपकी जिंदगी का दौर कैसा रहा. मैं इस सवाल के लिए बहुत थैंकफुल हूं.


सुधीर चौधरी: धन्यवाद सर, हम आपको और बेहतर ढंग से जानना चाहते हैं और जब आप एक माय लॉर्ड से इस जीवन में प्रवेश करते हैं तो वो भी एक बदलाव हुआ होगा, जो आपको भी महसूस हुआ होगा.


जस्टिस गोगोई: मेरे किताब में बैक साइड पर लिखा है सुधीर जी. यहां पर लिखा है essentially a family man is something about wanting, who has also kept a low profile away from the limelight.


सुधीर चौधरी: और आज आप लाइमलाइट में हैं.


जस्टिस गोगोई: लाइमलाइट सिर्फ माय लॉर्ड कहने से नहीं बनता है. 18-19 साल के माय लार्ड के कार्यकाल में मैंने बहुत ही साधारण फैमिली लाइफ जी है और अभी माय लॉर्ड हट जाने पर मुझे कोई भी परेशानी नहीं है. लोगों से मिलना, पब्लिक में शामिल होना, मीटिंग पर भाषण देना, मुझे कोई परेशानी नहीं है. मैं इसे पसंद करता हूं क्योंकि मैं लोगों के बीच में फ्री होकर जा सकता हूं, उनसे बात कर सकता हूं. ये जीवन का एक चरण है. जीवन का दूसरा दौर है जो अलग है. ये उतना ही जरूरी, उतना ही अच्छा है.  


सुधीर चौधरी: क्या आप खुद को स्वतंत्र महसूस कर रहे हैं पोस्ट मायलॉर्ड इरा में?


जस्टिस गोगोई: नहीं ये कोई लिबरेटेड फीलिंग की बात नहीं है. लिबरेटेड तो हम हमेशा थे. जज थे तब भी लिबरेटेड हैं. अब भी फ्री हैं तो इंडिपेंडेंट हैं. वैसे कुछ खास परेशानी और बदलाव मैंने महसूस नहीं किया है.


सुधीर चौधरी: आज ये  बुक मेरे पास है आपकी. उसका टाइटल आपने दिया है, जस्टिस फॉर द जज, अब जज तो पूरे जीवन लोगों को जस्टिस देता है. आपने जीवन भर लोगों को न्याय दिया और इसके टाइटल से लगता है कि अब जज ही शायद न्याय मांग रहा है?


जस्टिस गोगाई: नहीं, नहीं..कोई न्याय नहीं मांगा गया है. किताब में ये डिस्क्रिप्शन है, किताब के माध्यम से हम लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. अपने जजेस को दूसरे ढंग से देखो. अपने जजेस को जज मत करो. जज को सरकारी नौकर या पॉलिटिशिन की तरह मत देखो. ये जज की पोजिशन थोड़ी अलग होती है. जज की कुर्सी पर जो बैठते हैं, उनका अनुशासन होता है. वो बोलते नहीं हैं. आप एक जज की जितनी भी आलोचना करेंगे. उनके फैसलों की आलोचना करेंगे. उनके जजमेंट पर आप कितना भी कीचड़ उछालो, वो बोलता नहीं है. वो जवाब नहीं देता है.


लेकिन एक पॉलिटिशन जवाब देता है. पब्लिक फोरम में जवाब देता है. लेकिन जज चुप रहता हैं. इसका मतलब ये है कि वो न्यायिक अनुशासन का पालन कर रहे हैं, इसका आप फायदा मत लो. आप कमजोरी मत समझो कि आप कुछ भी बोले जाओ क्योंकि अगर आप इसको सही ढंग से नहीं देखोगे तो आप जज को तो नुकसान कर ही रहे हो, आप इंस्टिट्यूशन और न्याय व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहे हो. इस किताब में ये मैसेज है.


सुधीर चौधरी: तो मैं एक नया सवाल जोड़ रहा हूं क्योंकि आपने ऐसा कहा. आपको अपने कार्यकाल में कभी ऐसा लगा है? अखबार में आपके बारे में, आपके फैसलों के बारे में भी छपता रहता है, कभी अच्छा कभी खराब. ज्यादातर खराब क्योंकि मीडिया का नेचर है नेगेटिव पॉइंट्स को पहले पकड़ना, क्या आपको कभी घुटन हुई कि आप कुछ बोल नहीं पा रहे हैं?


जस्टिस गोगोई: नहीं ऐसा नहीं हुआ, जो आपके लिए करना उचित नहीं है, जो आप नहीं कर सकते उसके बारे में सोचना गलत है. फैसलों की आलोचना हेल्दी है क्योंकि ये जज को सीखने का मौका देती है. किस जजमेंट में क्या कमी रह गई, ये जानना जरूरी है that is how judges grow लेकिन आज मीडिया में जो हो रहा है ये पर्सनल अटैक हो रहा है इंडिविजुअल.  कहा जा रहा है कि फलाने जज ने फलाना जजमेंट दिया, इस वजह से ये गलत है. ये फर्क है दोनों का. अगर आप जजमेंट को क्रिटिसाइज करते हैं तो ये सिस्टम के लिए अच्छा है लेकिन अगर आप जज को क्रिटिसाइज करते हैं तो यह सिस्टम के लिए अच्छा नहीं है.


सुधीर चौधरी: जस्टिस गोगोई, जजेस आमतौर पर रिटायरमेंट के बाद बुक भी नहीं लिखते.


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, आपने कहा कि मैं मिस्टर गोगोई बन गया और आप मुझे जस्टिस गोगोई कह रहे हैं देखिए 18 साल की आदत. आपको कितनी मुश्किल होता है. हमारे लिए कोई मुश्किल नहीं है. आप मुझे गोगोई बुलाओ, हमें फर्स्ट नेम से बुलाओ, हमें जस्टिस बुलाओ, हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.


सुधीर चौधरी: आई एम फीलिंग लिब्रेटेड एक्चुअली, रंजन जी हम आपसे ये जानना चाहेंगे जजेस आमतौर पर बाद में बुक्स भी नहीं लिखा करते हैं लेकिन आपने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखने का फैसला किया. आप ने ये फैसला क्यों किया कि आप अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखेंगे और अपनी कहानी लोगों को बताएंगे?


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी मेरे कार्यकाल में कई मुद्दों पर, मेरे जजमेंट पर भी बहुत चर्चा हुई और ये चर्चा मेरे हिसाब से मिस इनफॉरमेशन, आधा सच और गलत तथ्यों पर आधारित थीं. ये किताब उनके लिए है जो सही तथ्य जानने की इच्छा रखते हैं. जिन लोगों के हिसाब से वो बिना मेरा पक्ष सुने सही तथ्य पहले से ही जानते हैं, ये किताब उन के लिए नहीं है. ये किताब उनके लिए है जो सही तथ्य जानना चाहते हैं, ये किताब उनके लिए लिखी गई है.


सुधीर चौधरी: आपने न जाने अपने जीवन में कितने जजमेंट दिए होंगे, न जाने कितनी लंबी-लंबी जजमेंट लिखी होंगी लेकिन जजमेंट लिखने में और किताब लिखने में फर्क क्या है और ये बदलाव आपके लिए कैसा रहा? जजमेंट के बाद ये किताब देखना कैसा अनुभव था आपका और क्या इसे आपने रीडर फ्रेंडली बनाया है?


जस्टिस गोगोई: मुझे ये नहीं पता था कि मैं अपनी किताब को रीडर फ्रेंडली बना सका या नहीं, मैंने कोशिश की है लेकिन मेरी किताब का लास्ट लाइन आप देखिए. मेरी किताब का लास्ट लाइन, पेज नंबर 218, द लास्ट सेंटेंस 218 पेज पर देखिए मैं आपको निकाल देता हूं.


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सुधीर चौधरी: “this has been my life, this is my story there are many other secrets opinion and sentiments that I may or may not take to my grave, only time will tell.  


जस्टिस गोगोई: जजमेंट लिखना आसान है क्योंकि जज का कोई पक्ष नहीं होता है, कोई ओपिनियन नहीं होती है, कोई पर्सनल इंटरेस्ट नहीं होता है. फैक्ट्स पर केस का जजमेंट होता है. मेरे हिसाब से सबसे आसान काम जजमेंट देना होता है लेकिन किताब और खासकर ऑटोबायोग्राफी जो मेरे बचपन से शुरू हो रही है, 1970 से 50 साल को कंप्रेस करके 200 पेजेज करना. 14 साल पुरानी घटनाओं को याद रखना.जो लास्ट लाइन आपने पढ़कर सुनाई है. इसमें सारी कहानी छिपी है कि किताब-लिखना कितना मुश्किल है. मैं पूरे 100 के 100 सीक्रेट्स या तथ्य आपके पास अभी नहीं लाया. बहुत वजह है, बहुत कारण है उसके तथ्य कभी बाहर आएंगे या नहीं आएंगे, मैं कह नहीं सकता.


सुधीर चौधरी: ये सवाल मैंने एक बार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी पूछा था कि उनके पास भी बहुत सारे राज़ थे क्योंकि वो इतने दिनों तक पब्लिक लाइफ में रहे. इतनी महत्वपूर्ण जगहों पर आप भी ऐसी पोज़ीशन पर रहे हैं. जिसके चलते आपके पास भी सीक्रेट्स बहुत होंगे लेकिन इसमें अभी आपने वो लिखे नहीं हैं. तो क्या आप उसे अपनी कब्र में साथ लेकर जाएंगे या फिर हम उन्हें कभी जान पाएंगे?


जस्टिस गोगोई: मैंने अपनी बुक में लिखा है कि समय ही बताएगा कि किताब लिखने में हमको अपनी स्टोरी लिखनी है, अपने जीवन के संस्थान के बारे में लिखना है. लोग जो संस्थान से जुड़े हुए हैं, उनके बारे में लिखना है. सबसे महत्वपूर्ण है कि ये सारी कहानियां लिखने में संस्थान को कोई डैमेज ना हो, संस्थान सुरक्षित रहना चाहिए किसी भी कीमत पर. भले ही मैं सब कहानियां सब राज़ पब्लिक डोमेन में न लाऊं, Let me make the sacrifice in my book. मेरी किताब अधूरी रह सकती है, मैं असंतुष्ट हो सकता हूं. मैं आधा संतुष्ट हो सकता हूं लेकिन संस्थान को कोई हानि नहीं पहुंचनी चाहिए. किताब लिखना और जजमेंट लिखना दो अलग चीज हैं.


सुधीर चौधरी: अब आप संस्थान के बारे में बात कर रहे हैं तो मैं आपको आपकी बुक के पेज नंबर 101 पर ले जाता हूं, जिसमें आप ने एक मशहूर प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र किया है. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को लोगों ने अलग-अलग तरीके से लिया था. कुछ ने कहा कि आपने संस्थान को डैमेज किया है. आपने लिखा है कि आप नहीं जानते थे कि वहां इतनी बड़ी प्रेस कॉ​न्फ्रेंस होने वाली है. आपको नहीं मालूम था इतना मीडिया वहां पर होगा. आपको बताया गया था कि दो-चार पत्रकार आने वाले हैं. क्या आपको इस बात का खेद है कि आप वहां पर गए? आप उस ग्रुप का हिस्सा बने.


जस्टिस गोगोई: मैं उस पल के लिए दुखी नहीं हूं, मुझे कोई खेद नहीं है. मैंने अपने जीवन में जो भी फैसला किया है, जो भी एक्शन किया है मुझे किसी पर खेद नहीं है. आप इसे सही कह सकते हैं, आप इसे गलत सोच सकते हैं लेकिन जब मैं फैसला करता हूं तो मैं स्ट्रिक्टली सही रहता हूं. प्रेस कॉन्फ्रेंस 12 जनवरी 2018 में हुई थी. मेरी असहमति मीडिया से मिलने में या बातचीत करने में नहीं थी. लेकिन इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का साइज बड़ा था. मुझे नहीं पता था कि कितने पत्रकार, कितनी वैन, कितने कैमरे आएंगे. अगर मैं जानता तो और तैयारी के साथ जाता. 


हमसे कहा गया जाइए बातचीत कीजिए. मुझे लगा था कि सुप्रीम कोर्ट में 20—25 मीडिया के लोग आते हैं, 2 प्रेस लाउंज हैं. उन्हीं में से कोई आएगा. थोड़ी बातचीत होगी, चाय-पानी होगा, फिर चले जाएंगे. लेकिन इस तरह की कॉन्फ्रेंस ये मैंने नहीं सोचा था. मुझे इससे कोई रिग्रेट नहीं है क्योंकि मुझे लगता है कि मैंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ पूरा न्याय किया. एक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को अगर उसके चार सीनियर जजेस बार-बार कहते हैं कि जब आप पीआईएल एलोकेट करते हो तो सीनियॉरिटी के आधार पर केस दो. कई बार कहने से भी ये नहीं हो रहा था. ऐसे में मेरे पास कोई विकल्प नहीं था.


सुधीर चौधरी: जब आप चीफ जस्टिस बने और आपके ब्रदर जजेस आपके साथ ऐसा करते हैं तो आपको कैसा लगता था. क्या आप चाहेंगे कि ये परंपरा एक वन टाइम इंसिडेंट बनकर खत्म हो जाए या आप चाहते हैं आगे भी ऐसा होना चाहिए?


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, जीवन एक अनुभव होता है. एक बार जब ये प्रेस कॉन्फ्रेंस हो गई और इसके कारण, किस वजह से हुआ मुझे लगता है कि इसके बाद हर मुख्य न्यायाधीश सतर्क रहेगा. ये मॉरल ऑफ द स्टोरी है क्योंकि अगर 5 जज उनको जाकर कहेंगे कि आप ये मत कीजिए आप ही करोगे, ये विकल्प है, ये आप सोच लो. ये भी कंसिडर हो सकता है. जहां तक प्रेस कॉन्फ्रेंस का सवाल है, मुझे लगता है कि मैं कॉन्फिडेंट हूं. ऐसा दोबारा ऐसा नहीं होगा. संस्थान में एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग है. मेरे कार्यकाल में हम सब मिलकर रहते थे.


सुधीर चौधरी: क्या चीज आपको दूसरों से अलग बनाती है? आपने अपने करियर में बहुत बड़े जजमेंट है, जिसमें सबसे बड़ी जजमेंट की बात आती है अयोध्या को लेकर. जजमेंट डेढ़ सौ साल पुराना विवाद जिसके बारे में हर जज ने सोचा कि हमसे जो आगे आएगा ,वो देखेगा वो सोचेगा. हम अभी किसी तरह इसमें से निकलते हैं. आपने ये सोचा, डेडलाइन रखकर इसको निपटाना है. आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो आप उस जजमेंट को लेकर कैसे देखते हैं क्योंकि देश को भी विश्वास नहीं हुआ था कि बाबरी मस्जिद और अयोध्या मंदिर का मामला कभी सुप्रीम कोर्ट से निपटेगा और 50 साल तक इस मुद्दे पर चुनाव लड़ते जाएंगे.


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं आश्चर्यचकित होता हूं. ये मैंने क्या किया, मैंने एक केस डिसाइड किया अयोध्या. हाई कोर्ट के जजमेंट 4000 पेज प्रिंटेड थे, 4000 पेजेस का 4 वॉल्यूम आया था.  


सुधीर चौधरी: इस बुक से कहीं बड़ा.


जस्टिस गोगोई: हाई कोर्ट का जजमेंट 4000 पेज का है. जो सबूत ​थे, वो 14000 पेज के थे. डॉक्यूमेंट 12 से 13 हजार पेज के थे. दस्तावेज उर्दू, अरबी और पर्शियन भाषा में भी थे. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के कई वीडियो रिकॉर्डिंग थे. ये केस पुराने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मुझे सौंपा. उन्होंने रिटायरमेंट के पहले जुडिशियल ऑर्डर (28 या 29 अक्टूबर 2018 में) ये दिया. मैंने ये केस कहीं से निकालकर नहीं डाला.


सुधीर चौधरी: या कह लीजिए ये डेस्टिनी थी कि आपके हाथ से होना था ये.


जस्टिस गोगोई: डेस्टिनी अब शुरू होती है. मेरे सामने दो विकल्प हैं, मैं छिप जाऊं या मैं इसको फाइट करूं. अब छिप जाने की तो आदत है नहीं तो दूसरा विकल्प था इससे लड़ो और हमने वही किया. अब इस जंग में एक समस्या थी मेरे रिटायरमेंट की. फिर जब मैंने केस शुरू किया तो अपना हिसाब किया तो मुझको लग रहा था कि ये हो सकता है, ये किया जा सकता है. ये बहुत बड़ा चैलेंज हो गया था लेकिन हम पांचों जज ने मिलकर इस चैलेंज को ओवरकम किया और मेरे रिटायरमेंट के 10 दिन पहले इस केस का जजमेंट आ गया.


सुधीर चौधरी: आपके साथ जो इस बेंच में जज थे, वो इस बात से सहमत थे कि आपके रहते-रहते इस केस का जजमेंट हो सकता है? या वो किसी आउटकम को लेकर सशंकित थे?


जस्टिर गोगोई: मैं इस बारे में नहीं जानता. मेरे किसी भी सहयोगी ने ये सवाल कभी नहीं खड़ा किया था कि जज साहब आपकी रिटायरमेंट से पहले क्या हम इस केस को खत्म कर पाएंगे. ये सवाल उनके बीच में किसी ने भी खड़ा नहीं किया. हम सब को अपना काम करना था कानून के लिहाज से, प्रोसीजर के लिहाज से. हमने सुनवाई शुरू की और सभी पक्षों को सुनकर केस क्लोज किया.


सुधीर चौधरी: बाद में आरोप तो बहुत से लगे जजमेंट को लेकर दबाव था. आप प्रभावित हो गए या आपने कुछ अपने हिसाब से सोचा था. क्या आपके ऊपर अयोध्या फैसले पर किसी भी तरह का दबाव था?


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी एक बार सोच लीजिए कि कोई दबाव था. हम सोच लेते हैं. बाकी चार जज का क्या? बोबडे साहब जो सीजेआई होकर अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. चंद्रचूड़ साहब जो सीजेआई बनने जा रहे हैं. जरा बेंच की संरचना देखिए. मौजूदा सीजेआई, अगले सीजेआई, फिर अगले सीजेआई और दो वरिष्ठ जज. आपने गोगोई को प्रभावित कर लिया. बाकी चारों का क्या? जजमेंट गोगाई का नहीं है, बेंच का है. 


गोगोई ने कुछ जादू किया, मान लीजिए. गोगोई के ऊपर आपने कोई जादू किया या आपने उन चारों पर भी जादू किया. चारों को प्रभावित किया. हमें ये सब बात नहीं कहनी चाहिए. ये एक महान संस्थान है, महान सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया है.


सुधीर चौधरी: इस जजमेंट के बाद में एक बात बहुत अखबारों में पढ़ रहा हूं कि आप आप अपने ब्रदर जजेस को ये पूरा जजमेंट देने के बाद एक होटल में ले गए. आपने वहां पर साथ डिनर किया. लोग इसे इस तरह से रह रहे हैं कि ये सेलिब्रेट करने के लिए डिनर था और आप लोगों ने सेलिब्रेट किया. उसके बारे में आप बताइए कि ये डिनर जो आप लेकर गए अपने ब्रदर जज को वह क्या था?


जस्टिस गोगोई: अयोध्या पर सुनवाई 6 सितंबर को शुरू हुई, जजमेंट आया नवंबर को. अगस्त, सितंबर-अक्टूबर-नवंबर लगभग साढे 3 महीने ये पांचों जज रोजाना लगभग 10 घंटे साथ रहते थे. सुबह 10:00 से शाम 6:00 बजे तक कोर्ट के चेंबर में. बीच-बीच में वीकेंड पर डिस्कशन. जब ये जजमेंट खत्म हुआ तो हमने कहा चलो आज काम नहीं करते. हम रोजाना काम कर रहे थे, मेहनत से काम कर रहे थे. कुछ जज रात को 1:00 बजे तक 2:00 बजे तक काम कर रहे थे. काम खत्म हो गया तो सोचा कि चलो आज एक ब्रेक लेते हैं और शाम को काम नहीं करते हैं. कल शनिवार है जजमेंट आ जाएगा. चलो आज बाहर चलते हैं, इसमें और कुछ नहीं है. 


क्या सेलिब्रेशन करना है? इसमें सेलिब्रेट करने वाला क्या है? आपके जो सवाल हैं, आप जो कह रहे हो लोग बोलते हैं ये बोल रहे हैं कि सेलिब्रेट कर रहा है अयोध्या जजमेंट. ये बहुत खतरनाक चीज है कि पांचों जज एक लाइन पर कमिटेड थे, वो एक खास जजमेंट देना चाहते थे और जिस दिन उन्होंने ऐसा किया वो सेलिब्रेट करते हैं. ये गलत बात है, ऐसा नहीं बोलना चाहिए. आप किसी इंडिविजुअल को कुछ कहते हैं तो कहिए ये मुझे पसंद नहीं लेकिन मैं इसे टॉलरेट करता हूं. संस्थान को कुछ नहीं कहना चाहिए.  


सुधीर चौधरी: आपने इस पर जजमेंट दे दिया और ये डेढ़ सौ साल पुराना विवाद था. ये पूरा स्टडी करने के बाद क्या आप ये कहेंगे कि ये ओवर हाईप्ड था. इसके अंदर इतना कुछ नहीं था, जितना इसको प्रेस ने पब्लिसिटी दी. जितना इसके बारे में एक माहौल बनाया गया. जितना बड़ा इसे चुनाव में मुद्दा बना दिया गया?


जस्टिस गोगोई: देखिए सुधीर जी, मुझे लगता है मेरे और बाकी जजेस के लिए भी अयोध्या केस एक दूसरे केस की तरह था. यह एक बड़ा केस था, कानून और इश्यू के तौर पर बड़ा नहीं बल्कि आकार में बड़ा था. जैसा कि मैंने बताया कि 4000 पेज का इसका जजमेंट आया था, सबूत भी 14000 पेज में थे. ये इस मायने में एक बड़ा केस था. इसके अलावा यह 500 साल पुराना मुद्दा है, ये 200 साल पुराना मुद्दा है. इसमें धर्म इन्वाल्व है, पॉलिटिकल है. ये सब अगर जज के माइंड में आने लगेगा तो वो फैसला नहीं कर पाएगा. फलाने केस में ये पॉलिटिकल इंप्लीकेशंस हैं. मैं अगर इस ढंग से डिसाइड करूं तो ये होगा, ये करूं तो ये होगा, ये कभी जज के दिमाग में नहीं आता. जज का माइंड एक खास अनुशासित तरह से सोचता है.


सुधीर चौधरी: इस केस में लोग कहते थे कि दंगे हो जाएंगे. देश जल उठेगा, कुछ भी हो सकता है. देश में एक नए तरह का बंटवारा हो जाएगा. अगर कुछ भी ऐसी बात सुप्रीम कोर्ट ने कह दी तो एक डर लगता था. हम लोगों को ऐसा लगता था कि जब आप फैसला सुनाएंगे तो ना जाने क्या होगा. उसके बाद कभी आपके ऊपर ये प्रेशर आया, आपकी कलम में इतनी ताकत है कि एक शब्द इधर से उधर हुआ तो देश जल सकता है.


जस्टिस गोगोई: एक क्षण के लिए भी ये सोच में कभी भी नहीं आना चाहिए था. हमारे दिमाग में ऐसा कभी आया, ये मैं नहीं जानता हूं. अयोध्या केस दो पार्टियों के बीच सिविल विवाद था.


सुधीर चौधरी: अयोध्या पर मेरा आखिरी सवाल आपसे ये रहेगा कि आपका जो भी फैसला उस पर रहा होगा, उसने आपके secularism के क्रिडेंशियल थे, धर्मनिरपेक्षता का जो आपका था उस पर जरूर डेंट लगेगा ये लोगों ने कहा और आपने एक पक्ष के लिए फैसला दे दिया तो दूसरा पक्ष नाराज. आपको ऐसा लगा कि आपने एक तरफ ये जो फैसला दिया, उसके चलते धर्मनिरपेक्षता को लेकर लोगों ने आप को निशाना बनाया और एक खास पार्टी जिसने इसे अपना मुद्दा बना रखा था, उसके साथ आपकी निकटता को लेकर उसको इश्यू बनाया?


जस्टिस गोगोई: कौन सी पार्टी?


सुधीर चौधरी: बीजेपी


जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, आप जानते हैं कि मैं एक राजनीतिक पार्टी से संबंध रखता हूं. मैंने एमएलए, मंत्री, चीफ मिनिस्टर अपने घर में देखे हैं. मेरे पास राजनीति में जाने का भी विकल्प था लेकिन मैं राजनेता नहीं बनना चाहता था. कोई सेकुलर एस्पेक्ट ऑफ द implication ऑफ जजमेंट के बारे में लोग कहते हैं. बहुत कुछ कहते हैं, दुख होता है. मन में कष्ट होता है लेकिन ये इंडिया की वाइब्रेंट डेमोक्रेसी है, आप कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं. अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन मैं एक्सप्रेस करने के लिए फ्री नहीं हूं क्योंकि मैं एक जज हूं.


सुधीर चौधरी: सही


जस्टिस गोगोई: आप पत्रकार हो मीडिया पर्सन हो, आप कुछ भी बोल सकते हो. आप वकील हो तो भी आप कुछ भी बोल सकते हो. आप एक्टिविस्ट हो तो आप जज को अपमानित करो, सिस्टम को कंडेम्न करो लेकिन हमें चुप रहना है. इसीलिए हम जजमेंट पर कमेंट नही करते, रिटायरमेंट के बाद मैंने अपनी किताब में लिखा है रिटायर्ड जज डू नॉट टॉक अबाउट द जजमेंट दे ओनली अटैक द जजमेंट. आप देखिएगा राफेल में रिटायर्ड जज का क्या कमेंट आया, अयोध्या में रिटायर्ड जजेस ने क्या कमेंट किया. इसीलिए मैंने लाइटर वे में कहा कि रिटायर जज जजमेंट पर कमेंट नहीं करते वो सिर्फ दूसरों के जजमेंट पर अटैक करते हैं.


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