नई दिल्ली: करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (Kartik Krishna Paksha Chaturthi) को मनाया जाता है. इस बार करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर को है. करवा चौथ (Karwa Chauth) पर महिलाएं सुबह सरगी खाकर व्रत शुरू करती है. पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद महिलाएं शाम को करवा चौथ की कथा सुनती हैं और फिर चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं.


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करवा चौथ पर बन रहा ये शुभ संयोग
इस बार करवा चौथ (Karwa Chauth) पर विशेष संयोग बन रहा है और करवा चौथ रोहिणी नक्षत्र में आ रहा है, जिसे शुभ संयोग माना जाता है. इस दिन चंद्रमा में रोहिणी का योग होने से मार्कण्डेय और सत्यभामा योग बन रहा है. बताया जाता है कि यही संयोग श्रीकृष्ण और सत्यभामा के मिलन के समय भी बना था.


करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Katha)
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक साहूकार के सात पुत्र और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. वीरावती सातों भाइयों के बीच अकेली बहन होने के कारण सबकी लाडली थी और सभी भाई जान से बढ़कर उसे प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह एक अच्छे घर में हो गया. विवाह के बाद एक बार जब वह मायके आई तो अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो गई.


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रात को जब सभी भाई खाना खाने बैठे तब उन्होंने बहन से भी खाने का आग्रह किया, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का व्रत है और चांद को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खा सकती है. बहन को भूख से व्याकुल देखकर भाइयों ने नगर से बाहर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख दिया. जिससे दूर से देखने पर प्रतीत हो रहा था कि चांद निकल आया है. इसके बाद एक भाई ने वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो. इसके बाद वीरावती अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई. व्रत भंग होने के कारण भगवान अप्रसन्न हो गए और जैसे ही वीरावती ने मुंह में भोजन का पहला टुकड़ा डाला, तो उसके पति की मृत्यु का समाचार मिल गया.


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इसके बाद वीरावती को उसकी भाभियों ने सच्चाई से अवगत कराया और बताया कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. इसके बाद एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी धरती पर आईं तो वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करने के लिए कहा. इसके बाद वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने वीरावती को सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेगा, उन्‍हें सभी प्रकार का सुख मिलेगा.


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