Jammu Kashmir News: 1990 के दशक में आतंकवाद के कारण कश्मीर घाटी से पलायन करने के बाद, कश्मीरी पंडितों ने पहली बार पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाया है. विस्थापित पंडितों के एक समूह ने श्रीनगर में विस्थापित रेसिडेंट हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसायटी का पंजीकरण कराया है. इस सोसायटी में 11 कश्मीरी पंडित और 2 सिख सदस्य हैं, जिन्होंने सरकार से स्थायी निवास के लिए सब्सिडी दरों पर जमीन देने की मांग की है.


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दिल्ली में गृह राज्य मंत्री से मुलाकात


सोसायटी के तीन सदस्यों ने दिल्ली में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात की और पुनर्वास के लिए आवश्यक सहायता की अपील की. सोसायटी के सचिव सतीश महालदार ने कहा कि मंत्री ने उनकी मांगों को सकारात्मक रूप से सुना और हर संभव मदद का आश्वासन दिया. साथ ही, उन्होंने इस पहल का आकलन करने के लिए एक पैनल गठित करने का वादा भी किया.


“यह पहचान का सवाल है”


सतीश महालदार ने इस कदम को कश्मीरी पंडितों की सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित करने का प्रयास बताया. उन्होंने कहा, “यह केवल घर बनाने का विषय नहीं है, बल्कि हमारी पहचान और संस्कृति को दोबारा जीवंत करने का सवाल है. हमने स्वेच्छा से यह सोसायटी बनाई ताकि हम अपने वतन लौट सकें. हमने गृह राज्य मंत्री से सब्सिडी दरों पर जमीन और घर निर्माण के लिए समर्थन मांगा है.”


पुनर्वास की चुनौतियां और दृष्टिकोण


इस पहल को कश्मीरी पंडितों को मुस्लिम समुदाय के साथ एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. इससे पहले सरकार ने अलग टाउनशिप का प्रस्ताव दिया था, जिसका कई पंडितों और स्थानीय मुस्लिमों ने विरोध किया था. कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का मुद्दा जम्मू-कश्मीर में हालिया चुनावों में प्रमुख विषय रहा. लगभग हर राजनीतिक दल ने इसे अपने घोषणापत्र में शामिल किया, लेकिन अब तक ठोस नतीजे नहीं आए.


सरकारी योजनाओं की स्थिति


केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 और प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण योजना 2008 के तहत 6,000 नौकरियां दी थीं, जिनमें से 5,724 प्रवासियों को नियुक्त किया गया. इसके अलावा, 6,000 ट्रांजिट आवास भी बनाए गए या बनाए जा रहे हैं. इसके बावजूद, विस्थापित समुदाय को पुनर्वास के ठोस कदमों का इंतजार है.


समुदाय की आवाज


कश्मीरी पंडित माखन लाल भट्ट ने घाटी में मौजूदा स्थिति को सकारात्मक बताते हुए कहा, “लोग 90 के दशक की घटनाओं को भूल जाएंगे. पंडित और मुस्लिम समुदाय के बीच की दूरी घट रही है. हमारे बच्चे पीएम पैकेज के तहत काम कर रहे हैं और दूरदराज के इलाकों में शिक्षा दे रहे हैं.” वहीं, बबलू भट्ट ने कहा, “कोई भी अपने घर से दूर नहीं रहना चाहता. हर कश्मीरी पंडित वापस आना चाहता है और अपने भाईचारे के साथ रहना चाहता है.”


नई उम्मीद


यह पहल कश्मीरी पंडितों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है. लंबे समय तक सरकार की योजनाओं के ठंडे बस्ते में रहने से निराश समुदाय ने अब खुद अपनी वापसी की जिम्मेदारी ली है. उनका प्रयास केवल पुनर्वास नहीं, बल्कि घाटी में मिश्रित संस्कृति को पुनर्जीवित करना भी है. क्या यह पहल सफल होगी? यह काफी हद तक सरकार और समाज दोनों के सहयोग पर निर्भर करेगा.