Kerala State as Keralam: केरल की खूबसूरती के बारे में आप सबने तो खूब किस्से सुने होंगे. सुंदर समुद्र तट, हरे-भरे जंगलों और धुंध भरी पहाड़ियों के लिए मशहूर केरल को अक्सर “ईश्वर का अपना देश” कहा जाता है. प्रकृति ने इस राज्य में ऐसी कृपा बरसाई है कि एक बार जो वहां जाएं तो लौटने का मन नहीं करता है. अब इसी केरल राज्य का नाम बदला जा रहा है. केरल सरकार ने राज्य का नाम बदलने का फैसला किया है. केरल विधानसभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र से राज्य का नाम ‘केरल’ से बदलकर आधिकारिक तौर पर ‘केरलम’ करने का आग्रह किया है.


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‘केरल’ से बदलकर ‘केरलम’ 
केरल राज्य की पिनाराई विजयन सरकार ने बीते दिन यानी 24 जून को सर्वसम्मति से केरल विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया है. इस प्रस्ताव में राज्य का नाम ‘केरल’ से बदलकर ‘केरलम’ करने के लिए संविधान संशोधन करने की बात कही गई. विधानसभा में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने पेश किए गए प्रस्ताव में पहली अनुसूची में इस बदलाव को लागू करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 को लागू करने का आह्वान किया है. 


केरल का नाम क्यों बदला जा रहा?
आप सबके मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर क्या वजह है कि केरल का नाम बदला जा रहा है. इसके लिए केरल के सीएम का वह बयान ही पढ़ते हैं जो प्रस्ताव पेश करते हुए कहा था,  मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि राज्य को मलयालम में ‘केरलम’ कहा जाता है और मलयालम भाषी समुदायों के लिए एकीकृत केरल बनाने की मांग राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही जोरदार तरीके से उठती रही है.


विजयन ने कहा, ‘लेकिन संविधान की पहली अनुसूची में हमारे राज्य का नाम केरल लिखा हुआ है. यह विधानसभा, केंद्र सरकार से अनुरोध करती है कि संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत इसे ‘केरलम’ के रूप में संशोधित करने के लिए तत्काल कदम उठाए तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भाषाओं में इसका नाम बदलकर ‘केरलम’ किया जाए.’


इसके पहले भी नाम बदलने की हुई कोशिश
ऐसा पहली बार नहीं है कि जब केरल सरकार कोई ऐसा प्रस्ताव लेकर विधानसभा में आई है, पिछले साल में राज्य सरकार ने इसे लेकर एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केंद्र सरकार ने वापस भेज दिया था। जानकारी दे दें कि केरल ने संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी भाषाओं के नामों को संशोधित करके ‘केरलम’ करने की मांग की थी. हालाँकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह के बाद, सरकार का ध्यान केवल पहली अनुसूची में संशोधन करने पर चला गया, और सरकार को 9 अगस्त 2023 को पारित प्रस्ताव को संशोधित करने के लिए प्रेरित होना पड़ा.


सरकार का नहीं हुआ विरोध
इस प्रस्ताव को सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ दोनों के सदस्यों ने स्वीकार किया है. यूडीएफ विधायक एन शम्सद्दीन ने प्रस्ताव में कुछ बदलाव करने का सुझाव दिया, जिन्हें सरकार ने खारिज कर दिया. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ए.एन शमसीर ने इसे सर्वसम्मति से पारित घोषित किया.


'केरल' नाम कैसे पड़ा, जानें इतिहास
एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक में यह प्रस्ताव पास किया गया कि नया राज्य सिर्फ क्षेत्रीय नहीं बल्कि भाषाई आधार पर भी बनना चाहिए. कहा जाता है कि यहीं से पहली बार केरल नाम की बुनियाद पड़ी. आगे इस क्षेत्र में रहने वाले मलयाली बोलने वाले लोगों ने आंदोलन ऐक्य (यूनाइटेड) केरल मूवमेंट के नाम से एक आंदोलन चलाया जिसका मकसद था- त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार में रहने वाले मलयाली लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करना. 


डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, 1 जुलाई 1949 को त्रावणकोर और कोचीन की दो पूर्ववर्ती रियासतों को मिलाकर संयुक्त राज्य त्रावणकोर और कोचीन बनाया गया था. अगले साल जनवरी में इसका नाम बदलकर त्रावणकोर-कोचीन राज्य कर दिया गया. वहीं ब्रिटानिका के मुताबिक 1956 में, मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के मालाबार तट और दक्षिण कनारा के कासरगोड तालुका (प्रशासनिक उपखंड) को वर्तमान केरल राज्य बनाने के लिए त्रावणकोर-कोचीन में जोड़ा गया था. खैर जैसा कि सब जानते हैं कि त्रावणकोर और कोच्ची बनने से बहुत से लोग खुश नहीं थे. तीस साल तक मलयाली भाषा के सभी लोगों के लिए अलग राज्य के लिए आंदोलन चला. आखिरकार 1956 में भाषाई आधार पर एक अलग राज्य बना. जिसका नाम केरल रखा गया.


केरल और केरलम को लेकर कई सारी कहानियां

तमाम मीडिया रिपोर्ट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक केरल नाम की उत्पत्ति को लेकर कई थ्योरी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पुराने दस्तावेजों के हिसाब से केरल नाम संबंधी सम्राट अशोक का  257 ईसा पूर्व का शिलालेख II है. इस शिलालेख में स्थानीय शासक को केरलपुत्र के रुप में दिखाया गया है. बता दें कि मलयालम बोलने वाले लोगों पर इस क्षेत्र के विभिन्न राजाओं और रियासतों द्वारा शासन किया गया था. 


दूसरी थ्योरी
एक और थ्योरी के मुताबिक 1872 में मलयालम-इंग्लिश डिक्शनरी को पब्लिश करने वाले जर्मन स्कॉलर डॉ. हरमन गुंडर्ट के मुताबिक ‘केरम’ शब्द कन्नड़ भाषा के ‘चेरम’ शब्द से आया है. कुछ विद्वानों का मानना है कि आज जहां तक केरल की सीमा है, वहां काफी ज्यादा नारियल की पैदावार होती है. नारियल के लिए केर शब्द इस्तेमाल होता है. इसलिए इसका नाम केरल पड़ा होगा.


केंद्र सरकार के हाथ में फैसला


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबित हाल के कुछ वर्षों की बात करें तो केंद्र की मोदी सरकार ने 2018 में राज्य विधानसभा के सर्वसम्मत प्रस्ताव को खारिज कर दिया. यह पश्चिम बंगाल था. वहीं इसके अलावा बीते कुछ सालों में राज्य और शहरों के नाम पर जो बदलाव हुए हैं, उनके बारे में आपको बताते हैं.


इन राज्यों और शहरों के बदले नाम
पश्चिम बंगाल सरकार राज्य का नाम बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी तीनों भाषाओं में 'बांग्ला' करना चाहती है. 2007 में केंद्र सरकार ने उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड करने के लिए एक बिल संसद में पारित किया. इस पर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हस्ताक्षर होते ही राज्य का नाम बदल गया. 2011 में, उड़ीसा ओडिशा बन गया था और उड़ीसा (नाम परिवर्तन) विधेयक, 2010 और संविधान (113 वां संशोधन) विधेयक, 2010 संसद में पारित होने के बाद इस राज्य की भाषा का नाम भी बदला था. बीते कुछ सालों में सिर्फ राज्यों का ही नहीं बल्कि कई शहरों का भी नाम बदला है. यूपी के कई शहरों के नाम बदले गए हैं.


इन शहरों के नाम बदलने की मांग
आंध्र प्रदेश के 'राजमुंदरी' शहर का नाम 2017 में संशोधित करके 'राजमहेंद्रवरम' कर दिया गया. झारखंड का एक शहर 'नगर उंटारी' 2018 में श्री बंशीधर नगर बन गया. 2018 में ही यूपी के 'इलाहाबाद' शहर का नाम बदलकर 'प्रयागराज' कर दिया गया. 2021 में मध्य प्रदेश के 'होशंगाबाद' शहर का नाम बदलकर 'नर्मदापुरम' कर दिया गया और 'बाबई' शहर का नाम 'माखन नगर' कर दिया गया. महाराष्ट्र से लेकर देश के कई शहरों के नाम बदलने की मांग चल रही है.