Khaki History: बेहद दिलचस्प है खाकी के 175 साल का सफर, इस तरह फैक्ट्री से निकलकर पुलिस और दुनिया तक पहुंची
Khaki Journey: 1989 में बेसल मिशन पर रिसर्च करने वाले विवेकानंद कॉलेज, पुत्तुर के प्रिंसिपल डॉक्टर पीटर विल्सन प्रभाकर बताते हैं, `1851 में हॉलर को फैक्ट्री के इंचार्ज का चार्ज दिया गया था. उसने यहीं खाकी डाई का आविष्कार किया. उसकी अगुवाई में कपड़ा फैक्ट्री ने 1852 से खाकी कपड़े बनाने शुरू किए.`
Interesting Facts About New York: खाकी का जिक्र आते ही पुलिस का ख्याल मन में आता है. पुलिस कही पहचान खाकी से ही होती है. यही वजह है कि कई बार लोग सिर्फ पुलिस की जगह खाकी ही कह देते हैं. वर्ष 1851 में कर्नाटक से इसकी शुरुआत भी भारत से ही हुई थी. जॉन हॉलर नाम के एक जर्मन टेक्सटाइल इंजीनियर और ईसाई मिशनरी शहर में बालमपट्टा के बाजल मिशन वीविंग इस्टेब्लिशमेंट (कपड़े बनाने की फैक्ट्री) में काम करता था. उसी ने पहली बार कपड़ों को रंगने के लिए खाकी डाई को ईजाद किया. इसके इजाद से लेकर आज तक का इसका सफर बहुत ही दिलचस्प है. आइए जानते हैं, उसी के बारे में.
1851 पहली बार बनी खाकी
1989 में बेसल मिशन पर रिसर्च करने वाले विवेकानंद कॉलेज, पुत्तुर के प्रिंसिपल डॉक्टर पीटर विल्सन प्रभाकर बताते हैं, '1851 में हॉलर को फैक्ट्री के इंचार्ज का चार्ज दिया गया था. उसने यहीं खाकी डाई का आविष्कार किया. उसकी अगुवाई में कपड़ा फैक्ट्री ने 1852 से खाकी कपड़े बनाने शुरू किए.' प्रभाकर ने कन्नड़ में 'भारतदल्ली बाजल मिशन' (भारत में बाजल मिशन) नाक की किताब भी लिखी है. खाकी का मतलब समझना है तो पहले उसका अर्थ समझना होगा. खाकी उर्दू का एक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है धूल का रंग. यह खाक शब्द से बना है.1848 में खाकी शब्द ऑक्सफर्ड डिक्शनरी में शामिल हुआ था. इसके 3 साल बाद इस नाम से पहली बार डाई बनी. हॉलर ने काजू के खोल का इस्तेमाल करते हुए इस डाई को बनाया. इसके बाद खाकी रंग की डाई जल्द ही तेजी से लोकप्रिय होती गई.
इस तरह खाकी बनी पुलिस की वर्दी
थियोलॉजिकल कॉलेज में आर्काइव दस्तावेज के मुताबिक, 'हॉलर की खाकी मिलिटरी के बीच अपने टिकाऊपन की वजह से तेजी से पॉपुलर होने लगी.' इसी बीच खाकी को तत्कालीन मद्रास प्रेजिडेंसी के केनरा जिले में पुलिस यूनिफॉर्म के रूप में अपनाया गया. इसके बाद कासरागोड, साउथ केनरा, उडुपी और नॉर्थ केनरा में खाकी पुलिस की वर्दी बन गई.
एक जगह से निकल पूरे देश तक का सफर
इसके बाद मद्रास प्रेजिडेंसी के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट्स ने जब खाकी के बारे में सुना तो उन्होंने इस टिकाऊ कपड़े के बारे में जानना चाहा. इसके लिए उन्होंने बलमट्टा की उस फैक्ट्री का दौरा किया जहां खाकी कपड़े बन रहे थे. यहां खाकी को देखकर वह बहुत संतुष्ट हुए और उन्होंने ब्रिटिश सरकार से सिफारिश की कि खाकी को आर्मी की वर्दी बनाई जाए. इसे मान भी लिया गया और खाकी मद्रास प्रेजिडेंसी के तहत आने वाले सैनिकों की वर्दी बन गई. धीरे-धीरे दुनियाभर के अपने उपनिवेशों में सैनिकों के लिए उसने खाकी ड्रेस ही तय कर दी.
दूसरे विभागों ने भी इसे अपनाया
अब खाकी काफी प्रचलित हो चुकी थी. सेनाओं के अलावा भारत सरकार के विभागों ने भी अपने जूनियर-लेवल स्टाफ के यूनिफॉर्म के लिए खाकी को अपना लिया. भारतीय डाक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट वर्करों की यूनिफॉर्म भी खाकी हो गई.
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