Kheer Bhavani Temple News: माता खीर भवानी मंदिर में वार्षिक उत्सव के लिए तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है. मंदिर के आसपास का 5 किलोमीटर का क्षेत्र सुरक्षा बलों की निगरानी में रहेगा. ड्रोन से हवाई निगरानी की जाएगी और सीसीटीवी से हर गतिविधि पर नजर रखी जाएगी. रियासी जिले में तीर्थयात्रियों की बस को निशाना बनाने के बाद ऐसा लगता है कि आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में शांति भंग करने के लिए अपना तरीका बदल दिया है.


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माता खीर भवानी उत्सव के पहले आयोजन के साथ कश्मीर में त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है. अधिकारियों ने इस उत्सव को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया है. देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हजारों कश्मीरी पंडित एक सप्ताह पहले से ही मंदिर में पहुंचना शुरू कर देते हैं. इस बार अधिकारियों ने जम्मू से श्रद्धालुओं को गांदरबल जिले के तुलमुला शहर में स्थित मंदिर में सुरक्षित तरीके से लाने का फैसला किया है. काफिले को जम्मू से मंदिर तक एस्कॉर्ट कर ले जाया जाएगा. उत्सव समाप्त होने के बाद भी वही सुरक्षा अभ्यास किया जाएगा.


उत्सव से एक सप्ताह पहले ही मंदिर परिसर और उसके आसपास सुरक्षाबलों की तैनाती कर दी गई है. परिसर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक भक्त/यात्री की पूरी तरह से जांच की जा रही है और उन्हें एक्स-रे से गुजरना पड़ता है. साथ ही मंदिर में प्रवेश करने से पहले पूजा की सभी वस्तुओं की पुलिस द्वारा जांच की जाती है. जम्मू कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना मंदिर के अंदर और आसपास की सुरक्षा कर रही है. लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र को घेरे में रखा गया है. सुरक्षाबलों द्वारा पहरा दिया जा रह  है. मैनुअल सुरक्षा के अलावा किसी भी प्रकार के खतरे या अप्रिय घटना को रोकने के लिए तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.


एसएसपी गांदरबल संदीप गुप्ता ने कहा कि हमने सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. ताकि इस उत्सव में कोई अप्रिय घटना ना घटे. जम्मू कश्मीर पुलिस के अलावा सीआरपीएफ और सेना की भी मदद ली गई है. गुप्ता ने कहा आतंकी अगर रणनीति बदलते हैं तो हम लोग भी उसको ध्यान में रख कर अपनी तैयारी करते हैं.


माता खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडितों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध है. उनमें से अधिकांश उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. एक प्रसिद्ध मान्यता है कि मंदिर परिसर के अंदर देवी के झरने का रंग साल के बाकी दिनों में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी करता है. पंडितों का कहना है कि 1990 में जब स्थानीय पंडित घाटी से बाहर चले गए थे, तब झरने का रंग काला था. इसी तरह, बुजुर्गों का कहना है कि जब 1947 में कश्मीर पर कबायली आक्रमण हुआ था, उस साल भी पवित्र झरने का पानी काला हो गया था और कारगिल युद्ध के दौरान भी यह काला हो गया था. कोविड के दौरान यह लाल हो गया था. मान्यता है कि अगर इस पवित्र झरने का रंग लाल या काला हो जाता है तो दुनिया भर में मानवता के लिए कुछ बुरा होने वाला होता है. रंग हल्का नीला या सफेद है तो यह भविष्यवाणी करता है कि वह साल खुशियों और अच्छी घटनाओं से भरा रहेगा. इस साल इसका रंग हल्का नीला है.