Delhi Bloody Gate Khooni Darwaza: दिल्ली का खूनी दरवाजा बहादुरशाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट (Delhi Gate) के नजदीक स्थित है. पुरानी दिल्ली की इस जगह का इतिहास खून से सराबोर रहा है. आज इसके एक ओर फिरोज शाह कोटला का मैदान है तो दूसरी ओर इसके पश्चिम में मशहूर मौलाना आज़ाद डेंटल कॉलेज और चिकित्सीय महाविद्यालय का गेट है. भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है.


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खूनी दरवाजे का इतिहास


खूनी दरवाजा की हकीकत और इतिहास जानकर आप हैरान हो जाएंगे, क्योंकि ये दरवाजा अपने आप में कई राज और कहानियों को समेटे हुए है. इसे शेरशाह सूरी ने बनवाया था. ये दरवाजा फिरोज़ाबाद की शान में निर्माण किया गया था. इसे काबुली बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है. इसका नाम काबुली दरवाजा इसलिए रखा गया था, क्योंकि अफगानिस्तान से आने वाले लोग इस दरवाजे से होकर गुजरते थे. आइये अब आपको बताते हैं खूनी दरवाजे से जुड़े तीन बड़े 'कांड' जिसके बाद कहा जाता है कि यहां मारे गए लोगों और उनके परिजनों की ऐसी हाय लगी कि आगे चलकर मुगलों का विनाश होकर उनका नामोनिशान मिट गया वहीं मुगलों को हराने वाले अंग्रेजों को भी हिंदुस्तान को छोड़कर इंंग्लैंड लौटना पड़ा था. 


कैसे नाम पड़ा खूनी दरवाजा? तीन सबसे बड़े 'कांड'


मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर कलम कर इसी खूनी दरवाजे पर लटका दिया था. कवि अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के दो बेटों को मुगल बादशाह जहांगीर ने मार डाला था. इस खूनी दरवाजे के पास खूनी हिंसा की एक और घटना 1857 के दौरान हुई जब ब्रिटिश नेता विलियम हडसन ने बहादुरशाह जफर के दो बेटों और पोते की गोली मारकर हत्या कर दी थी. बहादुरशाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल व मिर्जा सुल्तान और बहादुरशाह जफर के पोते अबू अकबर के कत्ल के बाद न सिर्फ ये जगह बल्कि पूरा इलाका ऐसा बदनाम हुआ कि लोग इसके नजदीक से निकलने में भी डरते थे. 


इस दरवाजे पर 1947 में विभाजन के दौरान ही इसी दरवाजे पर सैकड़ों शरणार्थियों की हत्या कर दी गई थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां  रातों को चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं. यहां मारे गए लोगों के भूत आज भी इस इलाके में रहते हैं. इस दरवाजे के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि मॉनसून के समय में इस दरवाजे की छत से खून की बूंदे टपकती हैं. हालांकि, दावे को साबित करने के लिए वर्तमान में कोई सबूत नहीं है.


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