Kolkata Law College Hijab Row: दुनिया में धर्म को मानने वालों में तीन तरह के लोग होते है. एक होते हैं धार्मिक, दूसरे होते हैं अति धार्मिक और तीसरे होते हैं कट्टर धार्मिक. कोलकाता से एक ऐसी खबर आई है जो धार्मिक और अति धार्मिक व्यक्ति के बीच में कहीं आती है. खबर बताने से पहले हम आपसे कुछ पूछना चाहते हैं. एक शिक्षक की छवि को लेकर जब आप सोचते हैं, तो आपके दिमाग में किस तरह के शिक्षक की छवि सामने आती है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

क्या आपके दिमाग में शिक्षक की जो छवि बनी है, उसका लुक या कहें कि पहनावा, किसी कर्मकांड करने वाले पंडित, इस्लाम सिखाने वाले मौलाना, चर्च के पादरी या पारंपरिक पहनावे वाले सिख जैसा है? यकीन मानिए आपमें से ज्यादातर का जवाब ना में होगा. एक शिक्षक,अपने विद्यार्थियों को धर्म, जात-पात से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करता है. वो अपनी धार्मिक मान्यताओं को, अपने विचारों,अपने पहनावे या भाषा के जरिए व्यक्त नहीं करता है.


कोलकाता से जो खबर आई है, वो एक महिला शिक्षक के अचानक से अति धार्मिक बन जाने की है. कोलकाता के एक Private Law College में एक शिक्षिका ने अचानक हिजाब पहनकर आना शुरू कर दिया. पूछे जाने पर उसने इस्लामिक मान्यताओं का हवाला दिया. इस लॉ कॉलेज की प्रोफेसर संजीदा कादेर, पिछले काफी समय से कानून की पढ़ाई करने वाले बच्चों को पढ़ा रही हैं. इस दौरान वो एक professor की तरह Formal कपड़ों में विद्यार्थियों को पढ़ाने आती रहीं. लेकिन अचानक इस वर्ष रमज़ान के खत्म होने के बाद, वो हिजाब पहनकर कॉलेज आने लगीं थी. कॉलेज प्रशासन ने आपत्ति जताई तो उन्होंने इस्ताफा दे दिया.


इस्तीफे में उन्होंने हिजाब को उनका अनिवार्य धार्मिक पहनावा बताया है. उनके इस कदम के बाद विवाद की स्थिति बन गई. हमने संजीदा कादेर से इस विषय पर बात की. जिस कॉलेज में संजीदा कादेर पढ़ाती हैं.. वहां के विद्यार्थियों के लिए एक लिखित dress code है. जबकि शिक्षकों के लिए कोई लिखित नियम नहीं है, हालांकि कॉलेज प्रशासन की guidelines के मुताबिक पुरुष टीचर्स के लिए फुल बाज़ू की शर्ट, पैंट और formal जूते हैं, तो वहीं महिला शिक्षकों के लिए सलवार सूट,साड़ी और दुपट्टा वगैरह है.


हिजाब वाले विवाद पर स्थानीय विधायक के हस्तक्षेप के बाद समझौता हो सका. कॉलेज ने एक पत्र जारी करके कहा है कि संजीदा कादेर कॉलेज के तय ड्रेस कोड के मुताबिक ही परिधान पहनेंगी, वो स्कार्फ या दुपट्टा ओढ़ सकती हैं. देश में सभी को अपने हिसाब से अपने धर्म के पालन का अधिकार है. लेकिन इसका अर्थ ये भी नहीं हैं कि अति धार्मिकता का प्रचार करते हुए, अपने पहनावों से शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों को प्रभावित करने की कोशिश की जाए.