Lakhimpur Kheri: प्रदर्शनकारियों ने दिखाई तलवार, जान बचाकर लौटे Zee News संवाददाता ने सुनाई आपबीती
Lakhimpur Kheri Violence: लखीमपुर खीरी में कुछ लोगों ने हमारी टीम के साथ धक्का-मुक्की भी की, जिसके बाद जाने बचाने के लिए हमारी टीम को घटनास्थल से कुछ दूर जा कर खड़ा होना पड़ा. हालांकि खतरे के बावजूद हमने ग्राउंड जीरो से इस पूरी हिंसा की पड़ताल की.
नई दिल्ली: लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) में रमन कश्यप नाम के एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई. ये पत्रकार वहां किसानों के प्रदर्शन की कवरेज कर रहा था, लेकिन हिंसा के दौरान उसके मारपीट की गई और मौत के बाद उसका शव भी काफी देर तक लापता था. ये भी दावा है कि किसानों ने बीजेपी का समर्थक समझ कर उसके साथ मारपीट की. वैसे तो ये प्रदर्शन लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर होते हैं, लेकिन जो न्यूज़ चैनल इन पर सवाल उठाते हैं, ये लोग उनके रिपोटर्स के खून के प्यासे हो जाते हैं और आज Zee News रिपोर्टर की जान भी मुश्किल से बची.
प्रदर्शनकारियों ने रिपोर्टर को तलवार-डंडे दिखाया
हमारी रिपोर्टिंग टीम आज जब इस हिंसा की पड़ताल करने के लिए लखीमपुर खीरी पहुंची तो उसे डंडे और तलवार दिखा कर वहां से जाने के लिए कह दिया गया. कुछ लोगों ने हमारी टीम के साथ धक्का-मुक्की भी की, जिसके बाद जाने बचाने के लिए हमारी टीम को घटनास्थल से कुछ दूर जा कर खड़ा होना पड़ा. हालांकि खतरे के बावजूद हमने ग्राउंड जीरो से इस पूरी हिंसा की पड़ताल की. हमने आपके लिए एक रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको इस खबर के सभी पक्ष बताएगी और ये भी बताएगी कि कैसे लखीमपुर खीरी यूपी चुनाव में वोटों का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गया है, जहां सारे विपक्षी नेता किसानों के नाम वोट की फसल उगाना चाहते हैं.
सीएम योगी ने दिया कड़ी कार्रवाई का भरोसा
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि इस पूरे मामले की जांच हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से कराई जाएगी. हिंसा में मारे गए लोगों के परिवार को 45-45 लाख रुपये और घायलों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा.
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने कही 2 बड़ी बातें
आज किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी दो बड़ी बातें कहीं. पहली बात ये कि जब केंद्र सरकार ने नए कृषि कानूनों को अभी लागू करने से इनकार कर दिया है तो फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं? और दूसरी बात ये कही कि किसानों को कोर्ट पर भी भरोसा नहीं है, क्योंकि कृषि कानूनों का मामला कोर्ट में लंबित होते हुए भी ये आंदोलन जारी है. सुप्रीम कोर्ट अब इस बात की समीक्षा करेगा कि जब कृषि कानून अदालत में लंबित हैं तो फिर आंदोलन किया जा सकता है या नहीं. देश में इससे पहले कभी इस सवाल पर बहस नहीं हुई है.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ये सारी बातें किसान महापंचायत की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं, जिसने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनमुति मांगी है. किसान महापंचायत का कहना है कि दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों से उनका कोई लेना देना नहीं है और अपना अलग आंदोलन चाहते हैं.
इस हिंसा के बाद Zee News के सवाल
- किसान सड़कों को कैसे जाम कर सकते हैं ?
- सड़क और हेलीपैड पर कब्ज़ा करना लोकतांत्रिक विरोध कैसे ?
- लखीमपुर खीरी में इतने सारे सिख किसान कहां से आए ?
- ये किसान हैं ही नहीं तो इन्हें समर्थन देने प्रियंका और अखिलेश क्यों पहुंच रहे हैं ?
हिंसा ने नए ट्रेंड की तरफ किया इशारा
इस हिंसा ने एक नए ट्रेंड की तरफ भी इशारा किया है, जिसमें बीजेपी नेताओं का विरोध किया जाता है, उनके काफिले और गाड़ियों पर हमला किया जाता है और पार्टी का झंडा लेकर चलने वालों को निशाना बनाया जाता है. ये हमने पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव से पहले और फिर चुनाव के बाद देखा. इसके बाद पंजाब में भी बीजेपी नेताओं की गाड़ियों पर हमले हुए. हरियाणा में तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के काफिले को निशाना बनाया गया और अब उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. ये एक Modus Operandi, जिसमें ऐसे लोग जो प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को सीधे नहीं हरा सकते, वो ऐसी घटनाओं से बीजेपी का झंडा लेकर चलना मुश्किल बना रहे हैं. ऐसे मामलों में अगर सरकार या पुलिस सख्ती भी करती है तो हिंसा करने वालों को ही सहानुभूति मिलती है, जैसे लखीमपुर खीरी में भी हुआ है.
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